❖सभी हिंदी सबसे लोकप्रिय कहानियों✯, पुस्तकों📚✯और उपन्यास📙✯, मैंगजीन✯, ᴄᴏᴍɪx📖 पढ़ने के लिए शामिल हों... ❖ᴀᴅᴍɪɴ:- @MK_BHADIYA
वरदान — मुंशी प्रेमचन्द
#MunshiPremchand #Novel
रंगभूमि — मुंशी प्रेमचन्द
#MunshiPremchand #Novel
शतरंज के खिलाड़ी और अन्य कहानियां
#MunshiPremchand #Story
बड़े घर की बेटी और अन्य कहानियां
#MunshiPremchand #Story
मेरा छोटा-सा निजी पुस्तकालय (ललित निबंध)
— धर्मवीर भारती #DharamvirBharati
हरिशंकर परसाई की दुनिया
— डॉ. मनोहर देवलिया
#HarishankarParsaai
ये तेरे प्रतिरूप [कहानी-संग्रह]
— अज्ञेय #Agyeya #Story
मनोविश्लेषण और उसके जन्मदाता
(फ्रायड की जीवनी सहित)
वैज्ञानिक क्षेत्र में सिगमंड फ्राइड की महत्ता डार्विन, न्यूटन और आइंस्टीन से कुछ कम नहीं। वे युग-प्रवर्तक थे। उन्होंने ऐसे गुह्य मानसिक क्षेत्रों की सत्ता प्रमाणित की जिनका हमें आज तक ज्ञान भी न था। उनके धर्म, आचार, साहित्य, कला, स्वप्न, विवाह, बाल-शिक्षा, न्याय और दंड तथा अन्य सामाजिक विषयों की व्याख्या तथा विश्लेषण ने हमें एक सर्वथा नए दृष्टिकोण का दिग्दर्शन करवाया और हमारे मन में हीन-से-हीन के प्रति सहृदयता तथा स्नेह का संचार किया।
#SigmundFreud #Psychology
नाम - लालबहादुर शास्त्री
लेखक - राष्ट्रबन्धु
कुल पृष्ठ - 29
भाषा - हिन्दी
श्रेणी - जीवनी
➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖
Join👉🏻। @mkhindistory 👈🏻
📖📚📕
"मेरा कोई लेटर आया है?... घर में कदम रखते ही नेहा ने अपनी सास से पूछा।
" कोई लेटर नहीं आया है। देखो, राजेश कब से आया हुआ है ।उसे चाय- नाश्ता दो। उसे फिर दुकान भी जाना है ।"...उसकी सास बोली।
"आश्चर्य है ,मेरी दोनों सहेलियों के नौकरी का नियुक्ति पत्र आ गया है। मेरा अभी तक नहीं आया। मेरा पेपर उन लोगों से भी अच्छा गया था ।"
"ऐसा होता है कभी-कभी। ज्यादा परेशान होने की आवश्यकता नहीं ।"...सास में उसे समझाते हुए कहा।
नेहा की समझ में नहीं आ रहा था कि उसका नियुक्ति पत्र क्यों नहीं आ रहा है। उसने इस नौकरी के लिए कितना परिश्रम किया था। दिन में स्कूल की नौकरी ,घर के कामकाज और रातों में उसने जगकर इसकी तैयारी की थी ।उसका पेपर भी बहुत अच्छा के हुआ था ।वह बेहद हतोत्साहित और दुखी थी। उसका हरदम खिला रहने वाला मुखड़ा भी मुरझा गया था। वह उदास ,बेजान सी आकर अपने पति के हाथों में चाय- नाश्ता थमा गई ।उसका पति गौर से उसे देख रहा था। पत्नी की ऐसी दशा उसे सहन नहीं हो रही थी। उसने लपक कर उसकी कलाई को पकड़ लिया और उसकी हथेली पर एक कागज का टुकड़ा रख दिया। नेहा ने चौक कर उस कागज के टुकड़े को देखा, वह खुशी से झूम उठी... उसकी नौकरी का नियुक्ति पत्र था। लेकिन नौकरी दूसरे शहर में लगी थी।
" तुमने मुझे पहले क्यों नहीं बताया ?"...उसने शिकायत भरे स्वर में कहा।
" माँ ने मना किया था ।वह बोली कि अगर तुम चली जाओगी तो इस घर को कौन संभालेगा ? हम सभी को बहुत परेशानी होगी।लेकिन मैं तुम्हें नहीं रोकूँगा। तुमने इतनी अच्छी नौकरी बहुत परिश्रम के बदौलत पाई है।"
अब नेहा की हाथों में नियुक्ति पत्र था और उसका मस्तिष्क घोर चिंतन कर रहा था ।अगर उसके पति ने बलपूर्वक उसे इस नौकरी को करने के लिए रोका होता है तो वह उससे लड़कर भी इसे करती लेकिन वह इस निश्छल प्रेम के आगे खुद को बेहद असमंजस की स्थिति में पा रही थी।
यदि आप नेहा की जगह होते तो क्या ❓
चेन्नई, उत्तर भारतीयों के लिए यूं ही छोटा मोटा नर्क है, उसपर से अगर बुढ़ापे में आपकी पोस्टिंग वहां हो जाए तो समझो की सरकार कायनात के साथ मिलकर आपकी लेने पर तुली हुई है।
तो ये घटना है, बिहार के चंपारण से आने वाले राजेश सिंह की। मजेदार जिंदगी रही, पैदा हुए तो एक बड़े जमींदार परिवार में, पढ़ाई लिखाई भी अच्छी रही। फिर एक नौकरी मिली, एयर फोर्स में। पहली पोस्टिंग दिल्ली थी बाद में भले पोस्टिंग कहीं हो घर परिवार हमेशा दिल्ली में ही रहा। अब दिल्ली कहानियों का शहर है, कहानियां बनती हैं यहां और दो हजार के शुरुआती दशक में एक कहानी और बनी जब राजेश को पंजाबी घर से आने वाली एक लड़की कृति से प्यार हुआ। प्यार हुआ तो दोनों ने शादी करनी चाही, पंजाबी पैरेंट्स को बिहारी लड़का पसंद नही आया और बिहारी राजपूत जमींदार परिवार को अपने से कमतर घर की लड़की। दोनों बिना घर वालों की मर्जी के शादी करके रहने लगे। तीन बच्चे हुए सबसे बड़ा वाला लड़का सैम, और दो जुड़वा बेटियां भावना और दर्शना। अब तक सब अच्छा चल रहा था जब अचानक से बच्चों की मां कृति चल बसीं हार्ट अटैक से। घर बिखर गया। सैम इंजीनियरिंग में जा चुका था और उसे वहीं हॉस्टल में रहना पड़ता था, बेटियां दसवीं का एग्जाम दे रही थी और रिजल्ट का इंतजार था। घर में असली बॉम्ब तब फूटा जब अचानक से लगभग पूरी नौकरी दिल्ली में गुजार देने के बाद राजेश को चेन्नई हेडक्वार्टर से बुलावा आ गया।
इस समस्या से कैसे निपटा जाए, नौकरी छोड़ कर कहीं और ट्राय किया जा सकता था मगर ये फैसला आर्थिक रूप से बहुत सही नही था। दोनों लड़कियों को हॉस्टल में रखने के पक्ष में राजेश खुद नही थे। सैम अपनी पढ़ाई छोड़कर आ नही सकता था। लड़कियां अकेली दिल्ली में मकान में रहें ये भी बहुत अच्छा डिसीजन नही था। तो अंत में फैसला हुआ की दोनों चेन्नई चलें साथ में, वहीं केंद्रीय विद्यालय में नाम लिखवाया जाएगा और अलग से एक फ्लैट लिया जाए जहां दोनो साथ रहेंगी और जब पापा की छुट्टी होगी तो वो आते जाते रहेंगे, इससे नजदीक भी रहेंगी जब कोई काम हो तो और पापा अपनी ड्यूटी भी हेडक्वार्टर में करते रहेगें।
पूरी जिंदगी जिसने दिल्ली देखा हो वो जब पहली बार चेन्नई जाएगा तो उसे ऐसा लगेगा जैसे वो कोई और ही एलियन सभ्यता में आ गया हो, लोग अलग वेशभूषा अलग, व्यवहार अलग, खानपान अलग मगर इन सबसे जो ज्यादा अलग चीज है वो है भाषा। शायद लोग समझते नही या यूं कहें कि लोग बोलना नहीं चाहते। खैर भाषा से ज्यादा बड़ी समस्या थी स्कूल के पास एक मकान ढूंढना। अगर किसी एक जगह पूरा भारत एक है तो वो है एक किरायेदार को एक ढंग का मकान ढूंढना।
मकान ढूंढने के क्रम में जो सबसे बेहतर मकान मिला वो एक पुरानी सरकारी कॉलोनी में था, मकान किसी बाबू के नाम था सरकारी रजिस्टर में मगर वो मकान किराए पर लगाकर दो पैसे एक्स्ट्रा कमा रहे थे। मकान क्या था , फ्लैट ही था, पुरानी सरकारी तीन तल्ले की बिल्डिंग जिसमें कुल जमा 6 फ्लैट्स होते हैं, हर फ्लोर पर दो। जो फ्लैट राजेश सिंह को मिला वो बीच वाले फ्लोर पर था, मतलब ना नीचे वालों की तरह गार्डन का सुख ना सबसे ऊपर वालों की तरह छत का मजा। ऐसी ही और ढेर सारी बिल्डिंग्स थी उस पूरे एरिया में। तो सिंह साहब का मानना था कि अपार्टमेंट के मुकाबले इस कॉलोनी में लोगों का एकदूसरे से व्यवहार ज्यादा बेहतर होगा और किसी परेशानी के समय सब एकदूसरे के काम आयेंगे, अकेली लड़कियों के लिए ये ज्यादा बेहतर जगह होगी।
जिंदगी एक बार फिर पटरी पर आने लगी, सैम अपने कॉलेज में व्यस्त हो गया, दोनों बहने स्कूल में जाने लगी और पिताजी भी हर मौका मिलते घर आ जाते थे। तकलीफ थी तो बस किसी बात करने वाले की। ऐसा नहीं था की दो जवान लड़कियों से कोई बात नही करना चाहता था मगर कुछ पिता का डर और कुछ तमिल लड़कों का बहुत ज्यादा हैंडसम ना होना उनकी नजरों में उन्हें अब तक दोस्त बनाने नही दे रहा था, लड़कियां तो वैसे भी जलनखोर होती हैं तो अपने से थोड़ा ज्यादा सुंदर लड़कियां देख कोई खास भाव ना दिया करती थी दोनों जुड़वा बहनों को। दिल्ली की पुरानी दोस्तों से भी कब तक फोन और इंस्टा स्नैपचैट के सहारे काम चलाया जाता।
खैर जिंदगी कट रही थी, ऐसे में एक रोज शाम को बाजार से लौटते हुए अंधेरा कुछ ज्यादा हो गया, घर कॉलोनी के थोड़ा अंदर था और सरकारी कॉलोनी होने के चलते पेड़ कुछ ज्यादा ही जिसके वजह से अंधेरा और भयावह लग रहा था। तभी दोनों बहनों को ऐसा लगा की कुछ लड़के उनका पीछा कर रहें हैं, पिछा क्या वो तमिल में उनपर फब्तियां कस रहें थे, पीछे देखा तो इतना समझ में जरूर आया की ये आसपास के आवारा लफंगे लड़के हैं। लड़कियों ने खतरे को भांपने का इनबिल्ट सॉफ्टवेयर होता है और दोनों तेज कदमों से आगे बढ़ने लगीं। अब तक दोनो बहनों और उन बदमाशों के अलावा सड़क पर और कोई नही था की थोड़ा ही आगे बढ़ने पर उन्हें एक महिला दिखीं, उन्हें देख दोनों बहनों को
प्रतिदिन की तरह दफ़्तर में आज भी खचाखच भीड़ थी ।
एक आदमी काफी देर से चुपचाप खड़ा था ।
बड़े बाबू ने उस आदमी से पूछा -" आपको कोई काम है क्या श्रीमान ?"
वो पीछे से सरपट आगे बढ़ आया औऱ बोला -" सर जी , एक जरूरी आवेदन लिखवानी थी ।"
-" मगर किसलिए?" बड़े बाबू ने आश्चर्य से पूछा ।
-" मेरे पिताजी को शराब की जबरदस्त बुरी लत है ।" आदमी बोला ।
-"तो अच्छी तरह समझाइये उन्हें कि नशा जानलेवा है , उनको आवेदन देने की क्या जरूरत है ??" बड़े बाबू ने गंभीरता से कहा ।
-"नहीं , ये बात नहीं है सर । दरअसल उनकी उम्र ज्यादा हो चुकी है । तकरीबन 90 के तो होंगे ही ।"
-"तो ?"
-" तो जब पीकर उधर से वापस आते हैं , तो साइकिल समेत रास्ते में गिर जाते हैं । हम लोगों को प्रतिदिन ढूंढ कर वापस घर लाना पड़ता है ।"
-"तो उन्हें अच्छी तरह समझाइये भाई साहब कि वे मत पिया करें शराब.....क्यों फ़ालतू में मरना चाह रहे हैं ??"
"इससे कुछ फायदा नहीं होगा , हमलोग उनको बोल बोलकर पक गए हैं....आप बस केवल एक बढ़िया सा आवेदन लिख दीजिये सर जी ,प्लीज ।"
-"अच्छा...ठीक है , लेकिन किसको लिखना है ?"बड़े बाबू ने पूछा ।
-"आबकारी विभाग को ।"
-"क्या लिखूँ ?"
-" यही कि ठेका दूर होने की वजह से मेरे पिता जैसे सैकड़ों लोगों को यहाँ से सात किलोमीटर दूर जाना पड़ता है । ऐसे में कई बुजुर्ग प्रतिदिन रास्ते में गिर - पड़ जाते हैं , चोट लगती है सो अलग । अगर अपने गाँव में ही ठेका रहेगा तो कम से कम ये परेशानी तो नहीं उठानी पड़ेगी ।"
उस आदमी की बातों को बेहद गंभीरता से सुनने के बाद बड़े बाबू ने जब गौर से अपने अगल बगल देखा तो पाया कि ठीक उनके पास खड़े एक बुजुर्ग फफककर रो रहे थे ।
बड़े बाबू ने उस बुजुर्ग से आश्चर्यचकित होकर पूछा....अब आपको क्या हो गया बाबा ?? आप क्यों बेकार में रोने लगे ??
भारी आवाज़ में बुजुर्ग ने उत्तर दिया... " साहब... बेटा हो तो इस आदमी जैसा , जिसे अपने बुजुर्ग पिता की कितनी फ़िक्र है.... औऱ एक हमारा छोरा है , मैं दारू पीने न जा सकूँ , इसलिए साले ने मेरी साइकिल ही बेच दी....कसम से , बहुत तक़दीर वाले को ऐसा बेटा नसीब होता है ।"
गुस्से को नियंत्रित करने का एक सुंदर उदाहरण
एक वकील ने सुनाया हुआ एक ह्यदयस्पर्शी किस्सा
"मै अपने चेंबर में बैठा हुआ था, एक आदमी दनदनाता हुआ अन्दर घुसा
हाथ में कागज़ो का बंडल, धूप में काला हुआ चेहरा, बढ़ी हुई दाढ़ी, सफेद कपड़े जिनमें पांयचों के पास मिट्टी लगी थी
उसने कहा,
"उसके पूरे फ्लैट पर स्टे लगाना है
बताइए, क्या क्या कागज और चाहिए... क्या लगेगा खर्चा... "
मैंने उन्हें बैठने का कहा,
"रग्घू, पानी दे इधर" मैंने आवाज़ लगाई
वो कुर्सी पर बैठे
उनके सारे कागजात मैंने देखे
उनसे सारी जानकारी ली
आधा पौना घंटा गुजर गया
"मै इन कागज़ो को देख लेता हूं
आपकी केस पर विचार करेंगे
आप ऐसा कीजिए, बाबा, शनिवार को मिलिए मुझसे"
चार दिन बाद वो फिर से आए
वैसे ही कपड़े
बहुत डेस्परेट लग रहे थे
अपने भाई पर गुस्सा थे बहुत
मैंने उन्हें बैठने का कहा
वो बैठे
ऑफिस में अजीब सी खामोशी गूंज रही थी
मैंने बात की शुरवात की
" बाबा, मैंने आपके सारे पेपर्स देख लिए
आप दोनों भाई, एक बहन
मा बाप बचपन में ही गुजर गए
तुम नौवीं पास। छोटा भाई इंजिनियर
आपने कहा कि छोटे भाई की पढ़ाई के लिए आपने स्कूल छोड़ा
लोगो के खेतों में दिहाड़ी पर काम किया
कभी अंग भर कपड़ा और पेटभर खाना आपको मिला नहीं
पर भाई के पढ़ाई के लिए पैसा कम नहीं होने दिया।"
"एक बार खेलते खेलते भाई पर किसी बैल ने सींग घुसा दिए
लहूलुहान हो गया आपका भाई
फिर आप उसे कंधे पर उठा कर 5 किलोमीटर दूर अस्पताल लेे गए
सही देखा जाए तो आपकी उम्र भी नहीं थी ये समझने की, पर भाई में जान बसी थी आपकी
मा बाप के बाद मै ही इन का मा बाप… ये भावना थी आपके मन में"
"फिर आपका भाई इंजीनियरिंग में अच्छे कॉलेज में एडमिशन ले पाया
आपका दिल खुशी से भरा हुआ था
फिर आपने मरे दम तक मेहनत की
80,000 की सालाना फीस भरने के लिए आपने रात दिन एक कर दिया
बीवी के गहने गिरवी रख के, कभी साहूकार कार से पैसा ले कर आपने उसकी हर जरूरत पूरी की"
"फिर अचानक उसे किडनी की तकलीफ शुरू हो गई
दवाखाने हुए, देवभगवान हुए, डॉक्टर ने किडनी निकालने को कहा
तुम ने अगले मिनट में अपनी किडनी उसे दे दी
कहा कल तुझे अफसर बनना है, नोकरी करनी है, कहा कहा घूमेगा बीमार शरीर लेे के। मुझे गाव में ही रहना है, एक किडनी भी बस है मुझे
ये कह कर किडनी दे दी उसे।"
"फिर भाई मास्टर्स के लिए हॉस्टल पर रहने गया
लड्डू बने, देने जाओ, खेत में मकई खाने तयार हुई, भाई को देने जाओ, कोई तीज त्योहार हो, भाई को कपड़े करो
घर से हॉस्टल 25 किलोमीटर
तुम उसे डिब्बा देने साइकिल पर गए
हाथ का निवाला पहले भाई को खिलाया तुमने।"
"फिर वो मास्टर्स पास हुआ, तुमने गांव को खाना खिलाया
फिर उसने शादी कर ली
तुम सिर्फ समय पर वहा गए
उसी के कॉलेज की लड़की जो दिखने में एकदम सुंदर थी
भाई को नौकरी लगी, 3 साल पहले उसकी शादी हुई, अब तुम्हारा बोझ हल्का होने वाला था।"
"पर किसी की नज़र लग गई आपके इस प्यार को
शादी के बाद भाई ने आना बंद कर दिया। पूछा तो कहता है मैंने बीवी को वचन दिया है
घर पैसा देता नहीं, पूछा तो कहता है कर्ज़ा सिर पे है
पिछले साल शहर में फ्लैट खरीदा
पैसे कहा से आए पूछा तो कहता है कर्ज लिया है
मेंने मना किया तो कहता है भाई, तुझे कुछ नहीं मालूम, तू निरा गवार ही रह गया
अब तुम्हारा भाई चाहता है गांव की आधी खेती बेच कर उसे पैसा दे दे"
इतना कह के मैं रुका
रग्घू ने लाई चाय की प्याली मैंने मुंह से लगाई
" तुम चाहते हो भाई ने जो मांगा वो उसे ना दे कर उसके ही फ्लैट पर स्टे लगाया जाए
क्या यही चाहते हो तुम"...
वो तुरंत बोला, "हां"
मैंने कहा,
" हम स्टे लेे सकते हैं
भाई के प्रॉपर्टी में हिस्सा भी मांग सकते हैं
पर….
तुमने उसके लिए जो खून पसीना एक किया है वो नहीं मिलेगा
तुमने दी हुई किडनी वापस नहीं मिलेगी,
तुमने उसके लिए जो ज़िन्दगी खर्च की है वो भी वापस नहीं मिलेगी
मुझे लगता है इन सब चीजों के सामने उस फ्लैट की कीमत शुन्य है
भाई की नीयत फिर गई, वो अपने रास्ते चला गया
अब तुम भी उसी कृतघ्न सड़क पर मत जाना"
"वो भिखारी निकला,
तुम दिलदार थे।
दिलदार ही रहो …..
तुम्हारा हाथ ऊपर था,
ऊपर ही रखो
कोर्ट कचहरी करने की बजाय बच्चों को पढ़ाओ लिखाओ
पढ़ाई कर के तुम्हारा भाई बिगड़ गया;
इस का मतलब बच्चे भी ऐसा करेंगे ये तो नहीं होता"
वो मेरे मुंह को ताकने लगा"
उठ के खड़ा हुआ, सब काग़ज़ात उठाए और आंखे पोछते हुए कहा,
"चलता हूं वकील साहब" उसकी रूलाई फूट रही थी और वो मुझे वो दिख ना जाए ऐसी कोशिश कर रहा था
इस बात को अरसा गुजर गया
कल वो अचानक मेरे ऑफिस में आया कलमों में सफेदी झांक रही थी उसके। साथ में एक नौजवान था
हाथ में थैली
मैंने कहा, "बाबा, बैठो"
कर्मभूमि — मुंशी प्रेमचन्द
#MunshiPremchand #Novel
गबन — मुंशी प्रेमचन्द
#MunshiPremchand #Novel
दो बैलों की कथा तथा अन्य कहानियां
#MunshiPremchand #Story
प्रेमचन्द की सर्वश्रेष्ठ कहानियां
#MunshiPremchand #Story
गुनाहों का देवता #Novel
— धर्मवीर भारती #DharamvirBharati
अकथ कहानी प्रेम की कबीर की कविता और उनका समय #Kabir
— पुरुषोत्तम अग्रवाल
प्रेमचंद: कलम का सिपाही #MunshiPremchand
— अमृतराय
(अमृतराय मुंशी प्रेमचन्द के सुपुत्र थे)
किताब लिखनी जब शुरू हुई तब कितनी ही बार मेरे हाथ-पैर फूल गए। मैं समझ ही न पाता था कि मैं इसमें लिखूगा क्या, किताब आगे बढ़े तो कैसे बढ़े! लेकिन जब इसी पीड़ा और उद्वेग में से अचानक यह गुर मेरे हाथ लगा कि इस व्यक्ति के जीवन को उसके देश और समाज के जीवन से जोड़कर तो देखो, तब जैसे सारे बंद दरवाजे यकबयक खुल गए। और इस अति-सामान्य जीवन को एक नया आशय, एक नयी अर्थवत्ता मिल गयी। उसी को दिखाने का यत्न मैंने किया है ।
उपन्यासकार, कहानीकार एवं लेखक मुंशी प्रेमचंद के समग्र साहित्य का संचयन ऑनलाइन पढ़ें।
यह पुस्तक ऑनलाइन पढ़ने हेतु बेहतर क्वालिटी में उपलब्ध है।
प्रेमचंद | हिंदवी
https://www.hindwi.org/ebooks/kalam-ka-sifai-ebooks
लाल बहादुर शास्त्री
लेखक - महावीर अधिकारी
भाषा - हिन्दी
पृष्ठ - 125
═══════════════════
Join Us : @mkhindistory
═══════════════════
#Pdf #Epub #Mobi #Books
पुरुष...आसान नहीं है पुरुष होना..
पुरूषों पर दुःख का प्रभाव स्त्रियों से अधिक पड़ता है।
इसीलिए हार्ट अटैक से अधिकतर पुरुष ही मरते हैं
स्त्रियां दुःखी हो तो रो लिया करती हैं।
पुरुष दुःखी हो तो या तो क्रोध करता है या चुप हो जाता है। क्रोध करने से दुःख बढ़ता है, घटता नहीं। चुप होने से दुःख दबता है, मिटता नहीं। इसलिए रोना सीखें, आप मनुष्य है, पाषाण नहीं।
आजकल हर जगह equality की बातें होती हैं, तो आप भी कदम बढा़ए समाज में समानता लाने की ओर। पत्थर नहीं इंसान बनें। रोना कमजोरी नहीं कमजोरी की परिभाषा बदलें...!! ऐसी परिस्थिति में किसी ऐसे जगह चले जाइए जहां आपको सुनने वाला देखने वाला कोई न हो फिर वहां जाके जीभर के रो लीजिए सुकून मिलेगा अच्छा लगेगा... जब आप अपने अंदर दुखों से भर जाएंगे तो चीखिए चिल्लाइए वरना मर जाएंगे...आपके रोने से आपका पुरुषत्व कम नहीं होगा ...!🙏🏻
थोड़ी राहत मिली।
महिला के पास जाकर खड़ी हो गई, उन्हें देखकर वो लड़के भी धीरे धीरे पीछे वापस हो लिए।
" क्या हुआ बेटा ये तुम्हें तंग कर रहे थे क्या ?" उन आंटी ने कहा।
" आपको हिंदी आती है ?" लड़कियों ने एकस्वर में पूछा, भाषा जोड़ने का इतना बेहतर माध्यम है की इंसान अपनी जुबान सुनकर दो मिनट पहले हुई तकलीफ भी भूल जाता है।
" हां, हम रांची से है रीता तिर्की।" आंटी ने अपना नाम बताया, लड़कियां खुश हुईं की कोई तो है जो हमारी भाषा बोलता है।
फिर कुछ बातों के बाद आंटी ने दोनों को उनके घर तक छोड़ देने की बात की और छोड़ आई। घर के नीचे पहुंच जब वो जाने लगी तो लड़कियों ने उन्हें ऊपर आने का न्योता दिया मगर कभी और आऊंगी कहकर वो लौटने लगीं। अचानक लड़कियों को लगा की वो दिखते दिखते अदृश्य सी हो गई, मगर अंधेरा ज्यादा है शायद अगले गली में मुड़ गई होंगी ये सोच जाने दिया।
आज खुशी थी किसी ऐसे से मिलकर जिसका नाम छोड़कर और कुछ भी नही पता सिवाए इसके की वो भी वही जुबान बोलता है जो हम, ये खुशी इतनी थी की ये बात फोन पर पिताजी, भैया और एकाध और पुराने दोस्तों को भी बताई गई।
इस घटना के बाद एक चीज हुई, अब आंटी कभी भी उनके घर आने जाने लगीं , कभी कभी तो बाजार का या फिर खुद कुछ अच्छा बनाकर लाती थीं। एक ऐसी दोस्ती जिसमें उम्र का इतना फासला हो वो बेहद खुशनुमा होती है, जहां आंटी अपने जवानी के दिनों की बात बताती थीं या कभी अपने हसबैंड के और बेटे के किस्से वहीं लड़कियां अपनी अपनी।
अब तो अक्सर पापा आते तो किस्सा अपनी जिंदगी से ज्यादा यही होता था की आंटी आईं थी आज ये खिलाया आज वो खिलाया या फिर ये कहा। राजेश अक्सर कहते की कभी हमें भी मिलाओ आंटी से मगर शायद किस्मत ऐसी थी वो आंटी तब कभी नहीं आती जब पापा आए हुए हों।
एग्जाम आ गए थे और चेन्नई के हिसाब से ठंड भी हालांकि जिसका बचपन उत्तरी भारत में कटा हो उसके लिए चेन्नई की ठंड बस किसी गुलाबी बसंत सी ही थी। मगर एक शाम दोनों अपने अपने कमरे में पढ़ रही थी कि भावना को लगा की आंटी दर्शना के कमरे से कुछ बोल रहीं हैं। वो उठकर गई, देखा तो सच में आंटी थी। नॉर्मल प्रणाम वगेरह के बाद भावना ने कहा की मैं चाय बनाकर लाती हूं। वो किचन में गई। मगर उसे चायपत्ती का डिब्बा नही मिल रहा था उसने दर्शना को आवाज लगाई।
दर्शना आई , डिब्बा उसने ही रखा था उसे ही मिला मगर आज वो थोड़ी उखड़ी सी हुई थी, " यार एकदम कुछ भी नही पढ़ा ऊपर से तुमने आंटी को बुला लिया।"
" मैंने कब बुलाया, वो तुमसे बात कर रहीं थी तुम्हारे रूम सुनकर मैं आई ।" भावना ने प्रतिउत्तर में अपना पक्ष रखा।
" एक बात बता जब आंटी तुम्हारे साथ नही थी और मैंने दरवाजा खोला नही तो आंटी आईं कहां से ?" दर्शना के मन में अचानक से ये सवाल आया क्योंकि उसे अच्छे से याद था की एग्जाम की तैयारी के चलते आज वो दोनों कहीं बाहर गईं ही नही थी और स्कूल से आकर उसने दरवाजा अंदर से बंद किया था।
" हां, सही में।" भावना ने कहा, चाय बन चुकी थी मगर ये ऐसा सवाल था जिसका जवाब चाहिए था तो बिना चाय छाने वो दोनो दर्शना के कमरे में भागी, मगर आंटी वहां नहीं थी, वहां क्या आंटी पूरे फ्लैट में कहीं नहीं थीं और दरवाजा वैसा ही अंदर से बंद था जैसा वो रोज स्कूल से लौटकर किया करतीं थीं।
क्रमशः
कर्ज की कहानी
शादी करने बाद, जब मैं गर्भवती हुई, तो सातवें महीने में अपने मायके राजस्थान जा रही थी। मेरे पति शहर से बाहर थे, और उन्होंने एक रिश्तेदार से कहा था कि मुझे स्टेशन पर छोड़ आएं। लेकिन ट्रेन के देर से आने के कारण वह रिश्तेदार मुझे प्लेटफॉर्म पर सामान के साथ बैठाकर चला गया।
ट्रेन मुझे पाँचवे प्लेटफार्म से पकड़नी थी, और गर्भ के साथ सामान का बोझ संभालना मेरे लिए मुश्किल हो रहा था। तभी मैंने एक दुबले-पतले बुजुर्ग कुली को देखा। उसकी आँखों में एक मजबूरी और पेट पालने की विवशता साफ झलक रही थी। मैंने उससे पंद्रह रुपये में सौदा कर लिया और ट्रेन का इंतजार करने लगी।
डेढ़ घंटे बाद जब ट्रेन आने की घोषणा हुई, तो वह कुली कहीं नजर नहीं आया। रात के साढ़े बारह बज चुके थे, और मेरा मन घबराने लगा था। अचानक मैंने देखा, वह बुजुर्ग कुली दूर से भागता हुआ आ रहा था। उसने मेरे सामान को जल्दी-जल्दी उठाया, लेकिन तभी घोषणा हुई कि ट्रेन का प्लेटफार्म बदलकर नौ नंबर हो गया है। हमें पुल पार करना पड़ा, और बुजुर्ग कुली की सांस फूलने लगी थी, लेकिन उसने हार नहीं मानी।
जब हम स्लीपर कोच तक पहुंचे, तो ट्रेन रेंगने लगी थी। कुली ने जल्दी से मेरा सामान ट्रेन में चढ़ाया। मैंने हड़बड़ाकर दस और पाँच रुपये निकाले, पर तब तक उसकी हथेली मुझसे दूर जा चुकी थी। ट्रेन तेज हो रही थी, और मैंने उसकी खाली हथेली को नमस्ते करते हुए देखा। उस पल में उसकी गरीबी, मेहनत, और निःस्वार्थ सहयोग मेरी आँखों के सामने कौंध गए।
डिलीवरी के बाद मैंने कई बार उस बुजुर्ग कुली को स्टेशन पर खोजने की कोशिश की, पर वो फिर कभी नहीं मिला। अब मैं हर जगह दान करती हूं, मगर उस रात जो कर्ज उसकी मेहनत भरी हथेली ने दिया था, वह आज तक नहीं चुका पाई। सचमुच, कुछ कर्ज ऐसे होते हैं, जो कभी उतारे नहीं जा सकते।
उसने कहा, "बैठने नहीं आया वकील साहब, मिठाई खिलाने आया हूं
ये मेरा बेटा, बैंगलोर रहता है, कल आया गांव
अब तीन मंजिला मकान बना लिया है वहां
थोड़ी थोड़ी कर के 10–12 एकड़ खेती खरीद ली अब"
मै उसके चेहरे से टपकते हुए खुशी को महसूस कर रहा था
"वकील साहब, आपने मुझे कहा, कोर्ट कचहरी के चक्कर में मत लगो
गांव में सब लोग मुझे भाई के खिलाफ उकसा रहे थे
मैंने उनकी नहीं, आपकी बात सुन ली मैंने अपने बच्चों को लाइन से लगाया और भाई के पीछे अपनी ज़िंदगी बरबाद नहीं होने दी
कल भाई भी आ कर पांव छू के गया
माफ कर दे मुझे ऐसा कह कर गया है"
मेरे हाथ का पेडा़ हाथ में ही रह गया
मेरे आंसू टपक ही गए आखिर. .. .
गुस्से को योग्य दिशा में मोड़ा जाए तो पछताने की जरूरत नहीं पड़ती कभी
बहुत ही अच्छा है पर कोई समझे और अमल करे तब सफल हो......
🙏
राजाः “मोची जूती तो तुम बेच रहे थे इस ब्राह्मण ने जूती कब खरीदी और बेची ?”
मोची ने कहाः “राजन् मैंने मन में ही संकल्प कर लिया था कि जूती की जो रकम आयेगी वह इन ब्राह्मणदेव की होगी जब रकम इन की है तो मैं इन रूपयों को कैसे ले सकता हूँ ? इसीलिए मैं इन्हें ले आया हूँ न जाने किसी जन्म में मैंने दान करने का संकल्प किया होगा और मुकर गया होऊँगा तभी तो यह मोची का चोला मिला है अब भी यदि मुकर जाऊँ तो तो न जाने मेरी कैसी दुर्गति हो ? इसीलिए राजन् ये रूपये मेरे नहीं हुए मेरे मन में आ गया था कि इस जूती की रकम इनके लिए होगी फिर पाँच रूपये मिलते तो भी इनके होते और एक हजार मिल रहे हैं तो भी इनके ही हैं हो सकता है मेरा मन बेईमान हो जाता इसीलिए मैंने रूपयों को नहीं छुआ और असली अधिकारी को ले आया”
राजा ने आश्चर्य चकित होकर ब्राह्मण से पूछाः “ब्राह्मण मोची से तुम्हारा परिचय कैसे हुआ ?”
ब्राह्मण ने सारी आप बीती सुनाते हुए सिद्ध पुरुष के चश्मे वाली आप के राज्य में पशुओं के दीदार तो बहुत हुए लेकिन मनुष्यत्व का विकास इस मोची में ही नज़र आया”
राजा ने कौतूहलवश कहाः “लाओ, वह चश्मा जरा हम भी देखें”
राजा ने चश्मा लगाकर देखा तो दरबारी वगैरह में उसे भी कोई सियार दिखा तो कोई हिरण, कोई बंदर दिखा तो कोई रीछ राजा दंग रह गया कि यह तो पशुओं का दरबार भरा पड़ा है उसे हुआ कि ये सब पशु हैं तो मैं कौन हूँ ? उस ने आईना मँगवाया एवं उसमें अपना चेहरा देखा तो शेर उस के आश्चर्य की सीमा न रही ‘ ये सारे जंगल के प्राणी और मैं जंगल का राजा शेर यहाँ भी इनका राजा बना बैठा हूँ ’ राजा ने कहाः “ब्राह्मणदेव योगी महाराज का यह चश्मा तो बड़ा गज़ब का है वे योगी महाराज कहाँ होंगे ?”
ब्राह्मणः “वे तो कहीं चले गये ऐसे महापुरुष कभी-कभी ही और बड़ी कठिनाई से मिलते हैं”
श्रद्धावान ही ऐसे महापुरुषों से लाभ उठा पाते हैं, बाकी तो जो मनुष्य के चोले में पशु के समान हैं वे महापुरुष के निकट रहकर भी अपनी पशुता नहीं छोड़ पाते
ब्राह्मण ने आगे कहाः ‘राजन् अब तो बिना चश्मे के भी मनुष्यत्व को परखा जा सकता है व्यक्ति के व्यवहार को देखकर ही पता चल सकता है कि वह किस योनि से आया है एक मेहनत करे और दूसरा उस पर हक जताये तो समझ लो कि वह सर्प योनि से आया है क्योंकि बिल खोदने की मेहनत तो चूहा करता है लेकिन सर्प उस को मारकर बल पर अपना अधिकार जमा बैठता है”
अब इस चश्मे के बिना भी विवेक का चश्मा काम कर सकता है और दूसरे को देखें उसकी अपेक्षा स्वयं को ही देखें कि हम सर्पयोनि से आये हैं कि शेर की योनि से आये हैं या सचमुच में हम में मनुष्यता खिली है ? यदि पशुता बाकी है तो वह भी मनुष्यता में बदल सकती है कैसे ?
तुलसीदाज जी ने कहा हैः
बिगड़ी जनम अनेक की सुधरे अब और आजु
तुलसी होई राम को रामभजि तजि कुसमाजु
कुसंस्कारों को छोड़ दें… बस अपने कुसंस्कार आप निकालेंगे तो ही निकलेंगे अपने भीतर छिपे हुए पशुत्व को आप निकालेंगे तो ही निकलेगा यह भी तब संभव होगा जब आप अपने समय की कीमत समझेंगे मनुष्यत्व आये तो एक-एक पल को सार्थक किये बिना आप चुप नहीं बैठेंगे पशु अपना समय ऐसे ही गँवाता है पशुत्व के संस्कार पड़े रहेंगे तो आपका समय बिगड़ेगा अतः पशुत्व के संस्कारों को आप निकालिये एवं मनुष्यत्व के संस्कारों को उभारिये फिर सिद्धपुरुष का चश्मा नहीं, वरन् अपने विवेक का चश्मा ही कार्य करेगा और इस विवेक के चश्मे को पाने की युक्ति मिलती है सत्संग से
मानवता से जो पूर्ण हो, वही मनुष्य कहलाता है बिन मानवता के मानव भी, पशुतुल्य रह जाता है।