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#कविता भारती भाव _ रिश्तों की अहमियत।
आदमी को धन और पैसा कमाना जितना मुश्किल है।
सच है आदमी को आदमी कमाना उतना ही मुश्किल है।
गंवाना है पैसा जितना आसान रिश्ता गंवाना भी आसान।
गया पैसा जल्दी आता नहीं रिश्ते जोड़ना भी मुश्किल है।
पाई पाई राई राई जोड़ जो बनाया धन का खजाना हमने।
बह जायेगा पानी की तरह रोक पाना और भी मुश्किल है।
खाना और खजाना रखते सात पर्दो में रिश्तों परवाह नहीं।
टूटे रिश्तों को फिर अपना बना पाना और भी मुश्किल है।
खून का रिश्ता ही होता नहीं अपना रिश्ते दिल के होते हैं।
गया जो रूठ दूर हमसे पास बुला पाना और भी मुश्किल है।
गवाया धन तो फिर कमा ले शायद हम जिंदगी में कभी।
जिदंगी अधूरी तेरे बिना जिंदा रह पाना और भी मुश्किल है।
भारती करता भाव किस बात का अनमोल रिश्तो बिना।
अपनों बिना मकान को घर बना पाना और भी मुश्किल है।
श्याम कुंवर भारती
बोकारो,झारखंड
लघु कथा _ भूखी मां।
लेखक_ श्याम कुंवर भारती
यमुना ने अपने दोनों बच्चों छोटी और बबलू को खाना खिला कर सोने चली गई।बेटी छोटी को थोड़ी देर में प्यास लगी और वो रसोई में पानी लेने गई।
घड़े से पानी निकालते हुए उसकी नजर खाली पड़े बर्तनों पर गई।
उसने मन में सोचा मां हम दोनों भाई बहन को खाना खिलाने के बाद सोने चली गई ।इसका मतलब उसने सारा खाना हम दोनों को खिला दिया और खुद भूखी सो गई।
उसे बहुत अफसोस हुआ और चिंता भी हुई कि उसकी मां भूखी ही सो गई।उसने रसोई में राशन देखा ।अनाज का एक दाना भी नहीं था ।उसका दिल कचोट रहा आखिर उसने कैसे ध्यान नहीं दिया कि उसकी मां ने खाना नहीं खाया ।उसके पास पैसे भी नहीं है कि दुकान से राशन खरीदकर ले आए।
वो अपनी मां को भूखी सोने नहीं देना चाहती थी।लेकिन क्या करे।उसकी मां मजदूरी करती थी और वो खुद बगल के सेठ के घर में बर्तन धोने का काम करती थी ।छोटा भाई पढ़ने जाता था।
आज उसे तेज बुखार भी था इसलिए वो बर्तन धोने भी नहीं गई थी ।
उसकी मां कल मजदूरी करने जाएगी तभी पैसे मिलेंगे और घर में राशन आएगा।
कल सब लोग क्या खाएंगे।तभी उसने सोचा सेठ के यहां जाती हूं ।उनके घर के बर्तन धोकर आती है।उनके घर में जो बचा खाना होगा ले आऊंगी जिससे रात का खाना मां खा लेगी और सुबह का भी इंतजाम हो जायेगा।
उसने जाकर अपने छोटे भाई से कहा _ बबलू सुनो मैं सेठ जी के घर जा रही हूं।तुम मां के पास रहो । मां ने खाना नहीं खाया है।सब खाना उसने हम दोनों को खिला दिया है।घर में न खाना है न राशन है।
लेकिन दीदी आपको तो बुखार है कैसे काम कर पाओगी । चलो मैं भी साथ चलता हूं और तुम्हारी मदद कर दूंगा और खाना लेकर आयेंगे लेकिन मां को भूखा सोने नहीं देंगे।
छोटी ने बहुत मना किया लेकिन बबलू नहीं माना ।
थोड़ी देर में दोनों सेठ जी के घर पर चले गए।सेठानी ने छोटी को देखते हुई गुस्से से कहा _ अरे तुम आज बर्तन धोने नहीं आई ।सारा झूठा बर्तन पड़ा हुआ है।कल किसमें नाश्ता और खाना बनेगा ।छोटी से पहले बबलू ने कहा _ आंटी दीदी को बुखार था इसलिए दिन में नहीं आई।
इसलिए मैं भी साथ में आया हूं दीदी की मदद करने ।
ठीक है जाओ दोनों जल्दी बर्तन धो दो।
थोड़ी देर में दोनों ने सारे बर्तन धो दिए।सेठानी ने छोटी को बचा खुचा खाना दे दिया।
दोनों खुशी खुशी खाना लेकर अपने घर आ गए और अपनी भूखी मां को खाना दिया।खाना देख कर उसकी मां ने आश्चर्य से पूछा _अरे बेटी घर में खाना नहीं था फिर कहा से लाई।बबलू ने सारी बात अपनी मां को बताई।सुनकर उसकी मां के आंखों से आंसू निकल पड़े।उसने दोनों को अपने सीने से लगा लिया।
:समाप्त :
लेखक_ श्याम कुंवर भारती
बोकारो,झारखंड
मिल.9955509286
🍁
देशभक्ति!
यह इतनी भी लाचार, छुई-मुई न हो
कि किसी को भीख में डाली जाए,
इतनी भी न हो कि कुर्बानियों को
मनोरंजन और नोटों की गड्डियों में बदला जाए।
एक बार यह चटकी तो,
हश्र भुगत रहे कई राष्ट्र, कई भुगत चुके।
लोग अपने ही घरों की आग लेकर
दीपक से देश जला चुके हैं।
देशभक्ति मानवीय संवेदना है,
शक्ति है, बन्धुता है, गौरव है।
इसे न यूँ खरोंचो,
कि अंत में दाँत चुभे और लहू न बहे!
*तात्कालिक परिस्थितियों पर
मैं
मैं...
श्रृंगार का नहीं, तेरे इत्र का भी नहीं,
तेरे साथ का प्यासा हूँ।
मेरी तमन्ना
जल-आश्रित नहीं, तेरे स्नेह की भूखी है।
मैं
कोई शब्द नहीं, व्यंजन हूँ,
जो स्वर पर निर्भर हूँ।
मैं
वीरान जंगल-सा हूँ,
जो एक पगडंडी का खोजी हूँ।
तू मेरा प्रेम नहीं,
मेरे जीवन का ज्योतिर्मय प्रकाश है।
-DSR
अपनी प्रतिक्रिया अवश्य लिखे।
धन्यवाद।
क से क्यों (लघु कहानी)
बाहर से आकर उसने अपने कमरे की एक दीवार की खूंटी में अपना हँसता हुआ मुखौटा लगाया।
एक तरफ अपना बैग रखा, जिसमें दफ्तर का सामान है। चुपचाप कमरे में रखे सोफे पर आकर अपने जूतों के फीते खोलने लगा। कमरे में पंखा आवाज अधिक और हवा कम दे रहा है। न जाने क्यों कमरे में एक अजीब-सा बोझ है, जो कुणाल को खाए जा रहा। इस बोझ को वह पहचान नहीं पा रहा है। अपने कपड़े बदले। कुछ सोचकर उदासी भरे मन से दुबारा सोफे पर बैठ गया।
कुछ ही क्षण में उसके सामने मेज़ पर एक प्याली चाय लाकर उसकी पत्नी रखती है। वह उसके मुख को देखता है, जिस पर कोई शिकन नहीं, कोई दबाव नहीं। परिवार में दो बच्चों के होने पर भी उसकी कोई रेखा नहीं।
कप को मेज़ पर रखते हुए उसने पूछा - क्या तुम पूजा का सामान लाए हो, वह दिख तो नहीं रहा?
बेपरवाही से उत्तर दिया - नहीं, मैं भूल गया था!
अपने झूठ पर वह शर्मिंदा तो था, लेकिन इसे जताना नहीं चाहता था। उसने एक पल सोचा अच्छा होता, लेकर ही लौटता।
क्या तुम भी! जल्दी से सवाल करके उसके पास वाले सोफे पर बैठ जाती है। उसकी नज़रों को खंगालते हुए पूछती - आज कुछ हुआ है, ऑफिस में?
यह सवाल पूछा तो जाता, पर इतनी जल्दी इसकी खबर कुणाल को नहीं थी। उसने अपना बचाव करते हुए कहा - नहीं, ऐसी तो कोई बात नहीं।
सच में?
कुणाल - हां ऐसी तो कोई बात नहीं।
दिव्या जाने क्यों अब तक उसकी इस बात पर अपने मन को तसल्ली नहीं दिला पा रही। उसका अंतर्मन उसे इस पर इशारे किए जा रहा कि, ज़रूर कोई बात है, जिसे कुणाल छुपा रहा है। इसके बाद वह उससे पूछना ठीक नहीं समझती कि, कहीं उसके ऑफिस में किसी बात से वह परेशान होगा।
काफी देर सोफे पर जमे रहने के बाद वह अपने फ़ोन में कुछ खोजने लगता है। लिंक्डइन पर वह अपडेट करता है – ओपन टू वर्क और अपने नए काम को खोजने के लिए एक पोस्ट लिखता है।
इसके कुछ देर बाद उसके कमेंट सेक्शन में कई कमेंट आने लगते हैं और लाइक्स भी। इन सभी में संवेदना तो होती है, किन्तु काम को लेकर कोई जानकारी या मिलने की संभावना नहीं।
इन सभी कमेंट्स में एक कमेंट उसकी पत्नी का भी होता है। वह उसे देखकर थोड़ा परेशान हो जाता। भला उसे इसके बारे में कैसे पता चला। जल्दी से उसे ओपन करके पढ़ता है। उसमें लिखा था - भगवान पर भरोसा रखो, जल्दी ही तुम्हें दूसरी जॉब मिल जाएगी।
वह उसे पढ़ ही रहा होता है। उसे यह कमेंट पढ़कर बहुत बुरा लगता है। शायद इतना बुरा आज ले-ऑफ में जॉब खोने पर भी नहीं हुआ था। वह अपने विचारों में ईश्वर को कोसने लगता है, लानतें भेजता है, और विचारों में कहता है - ईश्वर ने मेरे साथ कभी कुछ अच्छा नहीं किया। कितने सालों बाद मुझे एक जॉब मिली थी, वह भी छूट गई। उसने एकाएक कहा - मेरा बस चले तो सभी ईश्वर को ले जाकर किसी नदी में फेंक दूँ।
उसके यह विचार अचानक फूटे थे। कुणाल खुद नहीं जानता था, वह अचानक इतना उत्तेजित क्यों हो रहा है। उसके इन्हीं विचारों के बीच उसकी पत्नी अपने हाथ में फ़ोन लेकर उसके सामने आकर खड़ी हो जाती है।
वह आकर पूछती - अच्छा, तो यह बात है। तुमने अपनी नौकरी की बात मुझसे छुपाई? जब मैं पूछ रही थी, तब भी कुछ नहीं बोले।
कुणाल - क्या बताता तुम्हें कि मैं अब किसी काम का भी हूँ।
दिव्या को उसकी यह बात सुनकर उसके मन में करुणा फूटती है। दुखी कुणाल को और परेशान न करती हुई वही बात दुबारा दोहराती है - भगवान पर भरोसा रखो, जल्दी ही सब कुछ सही हो जाएगा।
वह सोफे से खड़े होकर, अपने आपे से बाहर होते हुए - क्या भरोसा रखूँ भगवान पर! अरे कितने सालों बाद नौकरी मिली थी, आज वह भी छूट गई। मेरा बस चले तो सभी को कहीं बाहर फेंक दूँ।
दिव्या उसके गुस्से को शांत करने की कोशिश करती हुई - कोई बात नहीं कुणाल, तुम कोशिश करोगे तो तुम्हें ज़रूर दूसरी जॉब मिल जाएगी।
कुणाल - हामी में सिर हिलाता है।
दिव्या उसके मूड को परखने के लिए - अच्छा, तुम पूजा में तो बैठोगे। मैं जानती हूँ तुम सिर्फ अभी परेशान हो!
कुणाल - कुछ नहीं कहता। सिर्फ एकटक सामने देखता रहता। कोई भी शब्द उसे कहना उचित जान नहीं पड़ता।
दिव्या - ठीक है फिर, तुम शांत रहो। मैं बाज़ार जाकर सामान लाती हूँ। तुम तब तक पंडित जी को फ़ोन कर दो।
इतना कहकर वह वहाँ से चले जाने ही ठीक समझती है। गुस्से से बचने का सबसे अच्छा तरीका है, उस व्यक्ति से थोड़ा दूर हो जाओ ताकि वह स्थिर हो सके।
जब वह लौटकर आती है, तो देखती है कि कुणाल का व्यवहार और बातें पहले से कहीं ज्यादा प्रसन्नचित मुद्रा में हैं। वह बैठकर पंडित जी से बातें कर रहा है। दोनों बच्चे उसके पास बैठकर उसके साथ मौज-मस्ती कर रहे हैं।
दिव्या सामान को सही से रखती है। इसके बाद सभी अपने घर में पूजा की तैयारी करने लगते। कुछ ही घंटों में पूजा पूरी तरह से पूर्ण हो जाती।
मुझे नहीं पता कि यह शोध किसने किया है, लेकिन यह काफी दिलचस्प है।
1. ADULT में 5 अक्षर होते हैं,
और YOUTH में भी।
2. PERMANENT में 9 अक्षर होते हैं,
और TEMPORARY में भी।
3. GOOD में 4 अक्षर होते हैं,
और EVIL में भी।
4. BLACK में 5 अक्षर होते हैं,
और WHITE में भी।
5. CHURCH में 6 अक्षर होते हैं,
और MOSQUE, TEMPLE और MANDIR में भी।
6. BIBLE, GEETA में 5 अक्षर होते हैं,
और QURAN में भी।
7. LIFE में 4 अक्षर होते हैं,
और DEAD में भी।
8. HATE में 4 अक्षर होते हैं,
और LOVE में भी।
9. ENEMIES में 7 अक्षर हैं,
और FRIENDS में भी।
10. LYING में 5 अक्षर हैं,
और TRUTH में भी।
11. HURT में 4 अक्षर हैं,
और HEAL में भी।
12. NEGATIVE में 8 अक्षर हैं,
और POSITIVE में भी।
13. FAILURE में 7 अक्षर हैं,
और SUCCESS में भी।
14. BELOW में 5 अक्षर हैं,
और ABOVE में भी।
15. CRY में 3 अक्षर हैं,
और JOY में भी।
16. ANGRY में 5 अक्षर हैं,
और HAPPY में भी।
17. RIGHT में 5 अक्षर हैं,
और WRONG में भी।
18. RICH में 4 अक्षर हैं,
और POOR में भी।
19. FAIL में 4 अक्षर होते हैं,
PASS में भी।
20. KNOWLEDGE में 9 अक्षर होते हैं,
IGNORANCE में भी।है
इसका मतलब है कि ज़िंदगी एक दोधारी तलवार की तरह है और हम जो चुनाव करते हैं, वही नतीजे तय करता है......
अशीर्षक पार्ट 3/ अंतिम
उनकी आवाज़ें, बातें और सब्ज़ी की उठती महक बंद कमरे से फैलने लगी। अब समय रात के आठ बज चुके थे। मल्टी में नीचे चौकीदार की हल्की-सी नींद खुली, जो कि पेशाब करने के लिए उठा।
कुछ बड़बड़ाते हुए, जो सुनने पर किसी को गालियाँ बक रहा था। नीचे ही मल्टी की एक दीवार के पीछे, जो कि जंगल से जुड़ी थी, पेशाब करके एक सुकून के साथ अपनी जगह दुबारा लौटा।
आते हुए उसने एक गाड़ी को वहाँ देखा और बिना उसकी कोई पूछताछ किए ही वहाँ से खिसक गया। कमरे में आकर चारों ओर कनखियों से देखा और ज़मीन पर लेट गया।
तीनों दोस्तों की बातें चलने लगीं। रंग जमने लगा। गोलू ने हँसते हुए गैस बंद की और एक नई शराब की बोतल खोली।
गोलू – गणेश, तुझे पता है, मैंने यह वाली शराब सबसे पहले मेरे जीजू की शादी में पी थी। वह भी ठंड के समय।
गणेश – अच्छा, कैसा है इसका टेस्ट?
गोलू – टेस्ट थोड़ा-सा खट्टेपन के साथ लौंग की तरह तीखा है। या दोनों का कोई मिक्स हो।
चिराग – फिर तो मुझे मत देना।
गणेश – क्यों, क्या हुआ?
चिराग – मुझे इस तरह की ज़्यादा चढ़ती है। एक बार चढ़ गई थी।
गोलू – कब चढ़ी थी? तूने पिया है इसे?
चिराग – हाँ, एक बार… जब मेरा दिल टूटा था।
एक हँसी के गुब्बारे के साथ गोलू और गणेश तालियाँ बजाते हुए उसकी इस बात पर मौज लेने लगे।
गणेश – भाई, तेरी कब गर्लफ्रेंड थी, जो दिल टूटा!
चिराग – (दूसरी चुस्की लेते हुए) अबे कैसी बात कर रहा है… थी ना… वह… सोचने लगा… दीप्ति।
गोलू – दीप्ति की प्रदीपति…
चिराग – दोस्तों, वह दीप्ति ही थी… मेरी कॉलेज की दोस्त!
गोलू – अबे, तू कभी ठीक से कॉलेज गया ही नहीं।
गणेश – हाँ, यह सही कह रहा है!
चिराग – गणेश, तू तो भाई बोल मत। मैं… कॉलेज नहीं गया, तो जॉब कैसे कर रहा हूँ।
गणेश – मैं जॉब की बात नहीं कर रहा हूँ।
गोलू – भाई, तू बात को समझ नहीं रहा है।
चिराग – क्या समझ नहीं रहा! ये मेरी लव लाइफ़ पर उँगली उठा रहा है।
गणेश (कुछ बुदबुदाते हुए) – लव लाइफ़, वह कब हुई!
चिराग (अपने लफ़्ज़ों को तेज़ करते हुए) – पहले अपनी लाइफ़ पर ध्यान देना, तब मेरे बारे में कुछ बोलना।
गोलू – यार, शांत रहो। अब इस बात को छोड़ो।
इसके बाद दोनों खामोश हो गए। लेकिन पीने का सिलसिला जारी रहा। तीनों ने तीसरी बोतल भी पीकर कमरे में इधर-उधर गिरा दी। इसी दौरान उनकी निगाह सामने गैस पर गई और खाने की सुध आई। उन्होंने बिना कुछ बोले ही अपनी-अपनी सहूलियत के हिसाब से खाना लिया और खाने लगे।
गोलू, जिसे शराब जल्दी चढ़ती है, उसने अपनी थाली एक ओर रख दी। वह तेज़ी से उठा और एक कदम पीछे हटकर गद्दे पर औंधे मुँह गिर पड़ा। दोनों दोस्तों को पता था कि उसे जल्दी चढ़ जाती है, पर इतनी जल्दी और इस तरह… इसका अंदाज़ा नहीं था।
दरअसल, वह कभी भी एक बोतल से ज़्यादा शराब नहीं पीता था, पर आज वह लिमिट पार कर गया।
वे दोनों उससे पूछते हैं – "क्या हुआ गोलू तुझे?"
इसके बाद वह लेटे-लेटे ही रोने लगा। उसकी सिसकियों की आवाज़ दोनों दोस्तों को परेशान कर गई।
गणेश – भाई, क्या हुआ? तू क्यों रो रहा है?
गोलू – यार, पूछ मत… मेरे घर की स्थिति बहुत बुरी चल रही है।
गणेश – यार, वो तो हम जानते हैं! इसमें रोने वाली तो कोई बात नहीं।
गोलू – जानता हूँ। पर मैं बहुत निराश हो गया हूँ… अपनी ज़िंदगी से। मैं अब तक लोगों का कर्ज ही चुकाता आया हूँ। एक कर्ज चुकाने के लिए दूसरा लेता हूँ। ऐसे मेरे ऊपर बहुत कर्ज हो गया है।
चिराग – यार, हम समझ सकते हैं।
गोलू अब उठकर गद्दे पर बैठ गया। बिना सिसकियों के, लेकिन गला अब भी रुंधा हुआ था।
गोलू – अबे, तुझे पता है, मेरे ऊपर कितना कर्ज है? पूरे पच्चीस लाख का।
दोनों दोस्त भौचक्के होकर उसकी बात को ध्यान से सुनने लगे।
चिराग – इतना कर्ज तूने ले रखा है?
गोलू – यह कर्ज मेरे पूरे परिवार पर है। समझ नहीं आता, कैसे इसे चुका पाऊँगा।
चिराग – हौसला रख भाई, सब कुछ ठीक होगा।
इसी बीच वह खड़ा होकर टीवी चालू कर देता है। गणेश अब तक चुपचाप दोनों की बातें सुनता रहा।
गोलू, जिसके धैर्य की उम्मीद की गई थी, पर ऐसा हुआ नहीं। उसने एक और बोतल खोलकर शराब पीना शुरू कर दिया। दोनों उसे बार-बार समझाते, रोकते, टोकते, पर वह नहीं रुका।
गणेश – क्या कर रहा है गोलू? देख, तुझे चढ़ गई है।
जब वह गणेश की नहीं सुनता तो चिराग भी उसे रोकने लगता है। अब तीनों में ऊँची बहस होने लगी। गोलू पर मानो कोई धुन सवार हो गई थी। वह बड़बड़ाते जा रहा था और पीने की ज़िद कर रहा था।
जब हालत बिगड़ने लगे तो चिराग ने उसके कंधे को पकड़कर झकझोर दिया। इस पर वह बौखला गया। उसने उसे पीछे की ओर धकेला। अब मामला तूल पकड़ चुका था। थोड़ा नशा चिराग में भी था। उसने गोलू को गद्दे पर एक ही झटके में गिरा दिया।
अब दोनों का गुस्सा बढ़ने लगा। साँसें गर्म हो गईं। शरीर किसी मोटर इंजन की तरह तपने लगे। बाहर सर्द मौसम था, लेकिन कमरे का तापमान बढ़ गया।
लघु कथा _ ससुर की संपत्ति
लेखक_ श्याम कुंवर भारती
सुनीता अपने ससुर से बहस कर रही थी ।देखिए पापा जी मेरापति शैलेन्द्र मेरा बीबी का गुलाम है।मैं जो कहूंगी वो वही मानेगा।आप लाख उसे सच बताओ वो हरगिज नहीं मानेगा।इसलिए मैं प्यार से समझा रही हूं अपनी सारी संपत्ति मेरे नाम से कर दीजिए वरना आपका बुढ़ापा बड़ा मुश्किल कर दूंगी।
बेटी तुम मेरी बहु होकर मेरे साथ ऐसा ब्यौहार कर रही हो ।शोभा नहीं देता है।मेरे मरने के बाद सारी संपत्ति मेरे बेटे की ही होगी तो तुम्हारा भी तो होगी न ।उसके ससुर राजेंद्र प्रसाद ने अपनी बहु को समझाते हुए कहा।
आप मर भी तो नहीं रहे हो और मुझे अपने पति के सामने दिखावा करने के लिए आपकी सेवा करना पड़ता है।मैं आपकी सेवा करने नहीं हूं मुझे आपकी संपत्ति चाहिए।।
इतना कह कर उसने कुछ बासी रोटियां और बासी सब्जी अपने ससुर के सामने फेंकते हुए कहा।
तभी दरवाजे से उसका पति जुगल अंदर प्रवेश करते हुए कहा _ बहुत अच्छे से मेरे पिता जी की देखभाल कर रही हो।फिर वो लपक कर अपने पिता के पास गया और रोते हुए बोला _ माफ करना पापा मैने कभी आपकी बात का विश्वाश नहीं किया।लेकिन आज अपनी आंखों से देख भी लिया।
फिर उसने सुनीता से कहा _ इतना छोटा परिवार है मेरा ।एक बूढ़े बुजुर्ग मेरे पापा की देखभाल तुमसे नहीं हो पाई।तुमको मैने क्या कमी किया था जो संपत्ति की लालच में मेरे पापा की इतनी सजा कर रही थी ।
आज के बाद हमारा तुम्हारा कोई संबंध नहीं है।तुम अब मेरे घर से जा सकती हो ।
रंगे हाथों पकड़े जाने पर सुनीता ने जुगल का पैर पकड़ लिया और रोते हुए बोली मुझे माफ कर दो जुगल मै लालच में आ गई थी।
आज के बाद मैं पापा जी का पूरा ख्याल रखूंगी और तुम जैसे रखोगे वैसे रहूंगी लेकिन मुझे घर से मत निकालो।
जुगल अपनी पत्नी सुनीता को बहुत प्यार करता था।उसे लगा सुनीता को सचमुच अपनी गलती का एहसास हुआ है।उसने उसे माफ कर दिया ।
समाप्त
लेखक _ श्याम कुंवर भारती
बोकारो,झारखंड
मोब.9955509286
अशीर्षक पार्ट - 2
दोनों दोस्त अपने साथ में सामान लेकर आए थे। जब वह ऊपर सीढ़ियों से चढ़ रहे थे। उन्होंने पूरी इमारत को अच्छे से मूल्यांकन किया।
सीढ़ियों पर धूल जमी थी। दीवारों से प्लास्टर उखड़ रहा था। कलर भद्दा हो चुका। सफाई कम ही देखने को मिलती है। हर मंजिल पर एक चुप्पी सधी हुई थी। कोई भी आवाज उसे नहीं तोड़ पाई, सिवाय दोनों के कदमों की टप-टपाहट और चहल-कदमी के।
दोनों ने आकर उसके कमरे का दरवाज़ा खटखटाया जिसमें एक टीवी की धीमी आवाज सुनी जा सकती है।
टक... टक... टक अरे गणेश दरवाजा खोल गोलू बोला।
अंदर से आवाज आई - आया।
कुछ ही क्षण बाद। दरवाजा खुला। सामने उसके दोनों दोस्त अपने हाथों में शाम की पार्टी का सामान लिए काली थैलियां हाथों में लटकाए थे।
गोलू ने एक काले कलर का जर्किन और चिराग ने टोपी और हरे रंग का एक पतला जर्किन डाल रखा है। दोनों दोस्त अपने सामने खड़े गणेश को देखते जो कि एक बनियान में ही खड़ा है। और एक लोअर पहन रखी है।
वह अपने दोस्तों को अंदर आने का कहता। दोनों अंदर आकर के अपने सामान को एक कोने में रखते हैं। चिराग अपनी निगाहें कमरे में दौड़ता है। कमरा बाहर की स्थिति से काफी अच्छा है।
दीवारों पर कई चित्र लगे हैं, साथ में मानचित्र। एक कोने में किताबें पड़ी थीं। एक और खाने के बर्तन और पास ही एक बिछौना बिछा हुआ है। उस पर एक गड्ढा जो कि मटमैला हुआ पड़ा है। शायद महीनों से इसी जगह पड़ा है। पास उसके एक पानी की कैन रखी है, कुछ कपड़े वहीं पड़े हैं।
गोलू की निगाह सामने चल रही टीवी पर पड़ी जिस पर एक मूवी चल रही। उसके पास एक चूल्हे पर तवा रखा, जिसके ऊपर आटा लगा पड़ा है। उसी दीवार पर एक शर्ट और दो पैंट टंगे पड़े हैं।
वह अपने सिर से टोपी को गद्दे पर फेंकते हुए कहता - क्या यार गणेश! आज भी यह कमरा वैसा ही है, जैसा पहले था।
वह कुछ नहीं कहता।
इसे आगे बढ़ाते हुए चिराग - और नहीं तो क्या। पूरा कमरा अपने पुराने दिनों की याद दिलाता है। वह मानचित्र के नजदीक जाकर कहता 'यह तो वह मानचित्र है, जो पहले भी यही था।'
हा... गणेश जवाब देता है। दोनों उसी मानचित्र को देखने लगते। पूरा मानचित्र काले और लाल कलर की अनेक नई रेखाओं को अपने ऊपर खींचे था।
मुझे ना तेरी यह बात आज तक अच्छी नहीं लगती, तू आज भी चित्र बनाना नहीं छोड़ता - चिराग ने एकाएक यह बात कही।
गणेश - तू तो जानता है, जब तक मैं चीजों को अपने हाथों से ना रंगूं मुझे चैन नहीं आता।
गोलू जो दोनों की बातें सुन रहा था। खामोशी को तोड़ते हुए - चलो यार जल्दी से गैस जलाओ, पूरी रात खड़े होकर बातें ही करनी हैं।
तीनों को अपने खाने की याद आती, जो अब तक उनके दिमाग से गायब हो रखी थी।
तीनों सारे सामान को खोलने लगते हैं। गणेश अंडे की सब्जी पकाने की तैयारी करता है। रोटी वह पहले ही बना चुका है। तीनों सब्जी बनाने लगते हैं।
अब वह तीनों पूरी तरह से अपने रंग में रंगने लगते। चिराग ने शराब की बोतलें खोलनी शुरू की।
दोनों दोस्त उसे कहते रहे कि, भाई अभी हमारे पास बहुत समय है, हम बाद में भी शुरू कर सकते हैं। लंबे समय के बाद मिले हैं। पर उसने इस बात की परवाह नहीं की।
शराब की एक बोतल को तीन प्लास्टिक के कपों में भरने लगा। एक उचित माप के बाद उसने उसे दोनों को दिया। एक खुद के लिए रखा। तीनों ने साथ में टकराने के बाद पीना शुरू किया।
गैस के नजदीक गणेश बैठ करके सब्जी भी पका रहा। अब उन तीनों के पास बातें करने को पूरी रात थी। अपने हाथ से मोबाइल को एक ओर रखते हुए गोलू जिसे जल्दी ही चढ़ जाती है। वह कहता - वैसे गणेश यह मल्टी पूरी खाली पड़ी है। लगता है इसके मालिक का धंधा सही से चल नहीं रहा।
गणेश - हां, अब तो काफी कमरे ऐसे ही पड़े रहते हैं। तूने नीचे आते हुए देखे होंगे ना।
तभी तो पूछ रहा हूं। वैसे यह जगह कोई खंडहर लगती है?
चिराग तुरंत बात को जोड़ते हुए - यही बात मैं काफी देर से सोच रहा। कैसी जगह है। अपने कप के दो घूंट गटकते हुए... ना कोई साफ-सफाई। ना ही सिक्योरिटी। यह तो तू है वरना मैं तो कभी ना रहूं। कोई दूसरी जगह क्यों न ढूंढ लेता।
गणेश - बात तो तेरी सही है। पर किराया ना के बराबर देता हूं। और वैसे भी वह नीचे सिक्योरिटी गार्ड तो है ना।
गोलू - कौन सिक्योरिटी गार्ड। अबे वह तो मुझे दिखा था। जब मैं ऊपर आ रहा था। अपने कमरे में लेटा हुआ था। अबे वह तुम्हें सिक्योरिटी देता है... या तुम उसे। इस पर दोनों दोस्त की तुक के साथ हंसी छूट जाती।
गणेश भी थोड़ी शर्मिंदगी महसूस करता।
चिराग - तू मुझे सिर्फ उसका नाम ही बता दे?
गणेश उसका नाम... इसके बाद वह अपने माथे पर बल देने लगता। क्योंकि उसके नाम पर किसी ने ध्यान ही नहीं दिया। अपनी फ़ज़ीहत से बचने के लिए वह अनुमानित नाम बताता है, उसका नाम - देवेंद्र।
चिराग - हूं... अच्छा वह किताबों की ओर देखते हुए। तूने यह सारी किताबें पढ़ ली।
दोनों के आते ही उसने उन्हें प्रिया के गायब होने की जानकारी दिया ।सुनते ही प्रिया के पिता को जैसे चक्कर सा आ गया ।वो धड़ाम से एक सोफे पर गिर पड़े। उनके छोटे भाई ने उन्हें संभाल लिया वरना उन्हें काफी चोट लग सकती थी।
राजाराम ने गुस्से से कहा इस लड़की ने आज हमारे कुल खानदान की इज्जत मिट्टी में मिला दी ।
अब हम लड़के वालो को क्या जवाब दे ।
तभी प्रिया की चाची अंदर आते हुए बोली दीदी जल्दी प्रिया को लेकर मंडप ने आइए पंडित जी नाराज हो रहे ।मुहूर्त बीता जा रहा है बोल रहे हैं।
गणपति के छोटे भाई ने धीरे से अपनी पत्नी को प्रिया के भाग जाने की बात बताई।सुनकर उसकी पत्नी का मुंह खुला रह गया ।हे भगवान अब क्या होगा ।
बाहर सारे रिश्तेदार, मेहमान और सैकड़ों बाराती बैठे हुए हैं।हम सब उनको क्या बताएंगे कि हमारी बेटी विवाह से पूर्व कही भाग गई।
गणपति ने अपनी पत्नी से कहा _ जल्दी प्रिया को फोन लगाकर देखो शायद उसका फोन लग जाए । प्रिया की मां ने तुरंत उसके मोबाइल पर फोन लगाया लेकिन उसका मोबाइल स्विच ऑफ बता रहा था ।
सब लोग अपना माथा पकड़कर बैठ गए ।
तभी गणपति के छोटे भाई की पत्नी ने अपने पति के कान में कहा _ एक उपाय है इज्जत बचाने का ।हमारी बेटी का विवाह प्रिया की जगह कर देते हैं। अरे हा तुम ठीक कह रही हो।मैं अभी भइया से बात करता हूं ।
अपने छोटे भाई की बात सुनकर गणपति के चेहरे पर चमक आ गई ।
हां ये बिल्कुल ठीक रहेगा ।इससे बात दब जाएगी ।किसी को कुछ पता भी नहीं चलेगा और इज्जत भी बच जाएगी।
लेकिन लड़के के माता पिता और लड़के को सच्चाई बतानी होगी वरना बाद में वे हम सब पर धोखाधड़ी का केस कर सकते हैं। प्रिया की मां ने कहा ।
ठीक है मै उन तीनों को बुलाकर सच्चाई बता देता हूं।गणपति ने कहा।
थोड़ी देर में प्रतीक और उसके माता पिता को घर अंदर बुलाकर सारी सच्चाई बताई गई ।
सुनते ही प्रतीक की मां भड़क गई ।एक तो मैने अपने पूरे परिवार से लड़कर यह रिश्ता तय किया था और अब आप लोग अपनी बेटी की करतूत सुना रहे हैं।पता नहीं किस लड़के के साथ मुंह काला करने भाग गई ।
यह तो अच्छा हुआ विवाह से पहले भाग गई वरना विवाह के बाद मेरे बेटे का जीवन नरक बना देती ।प्रतीक की मां बहुत गुस्से में थी ।उसने कहा _ अब आपके परिवार की किसी भी लड़की के साथ बेरे बेटे का विवाह नहीं होगा ।
चलिए जी बारात वापस ले चलिए।उसने अपने पति से कहा ।
शेष अगले भाग_ 28 में
लेखक _ श्याम कुंवर भारती
बोकारो,झारखंड
मॉब.9955509286
विवेक ने बाइक को स्टैंड में खड़ा किया और प्रिया की कमर में हाथ डालकर पार्क के भीतर चला गया ।
प्रिया के पिता ने अपनी कार बाहर खड़ा किया और अपने छोटे भाई को लेकर लपकते हुए पार्क में चले गए।
अंदर जाकर दोनों प्रिया और विवेक को ढूंढने लगे ।तभी उनकी नजर प्रिया पर पड़ी। प्रिया बैठी हुई थी और विवेक उसके गोद में सिर रखकर सोया हुआ था ।ऐसा दृश्य देखकर दोनों भाइयों का गुस्सा सातवें आसामान पर चला गया ।
प्रिया के पिता ने कहा तुम उस लड़के को पकड़कर झाड़ियों में ले जाकर जमकर कुटाई करो और मैं अपनी बेटी की खबर लेता हूं ।
नहीं भैया गुस्से में ऐसा मत कीजिए ।इससे हो हंगामा होगा और सबको पता चल जायेगा और हमारी इज्जत चली जाएगी ।शहर के सभी लोग आपको जानते हैं।इसलिए समझदारी से काम लीजिए।गुस्सा तो मुझे भी बहुत आ रहा है लेकिन सोच समझकर कदम उठाना होगा ।मैं अपनी बेटी को फोन कर बोलता हूं कि वो प्रिया को फोन करे और कहे कि उसकी मां की तबीयत खराब हो गई है जल्दी घर आओ ।प्रिया जैसे ही पार्क के बाहर आएगी हम दोनों धीरे से उसे अपनी गाड़ी ने बैठाकर निकल जायेंगे।उस आवारा लड़के की बाद में देख लेंगे ।पहले अपनी बेटी को यहां से निकालना है ।पता नहीं वो क्या देखकर इस आवारा लड़के के प्रेम जाल ने फंस गई है। प्रिया के चाचा ने उसके पिता को समझाते हुए कहा ।
प्रिया के चबाने अपनी बेटी को फोन कर सब समझते हुए प्रिया को अपनी मां की बीमारी का बहाना बनाकर घर आने कहने बोला ।
थोड़ी देर में प्रिया का मोबाइल बजने लगा । प्रिया ने फोन उठाया और उसे सुनते ही उठ खड़ी हुई ।विवेक उसे पूछता रहा क्या हुआ लेकिन वो भागती हुई पार्क के बाहर आ गई।
जहां उसके पिता और चाचा उसका
इंतज़ार कर रहे थे ।
शेष अगले भाग_ 25 में
लेखक _ श्याम कुंवर भारती
बोकारो,झारखंड
मॉब.9955509286
मैंने फिर हिम्मत कर के पूछा "तो किसी से मिलने जा रहे हो?"
वही संक्षिप्त उत्तर ,"नही"
आखरी जवाब सुनकर मेरी हिम्मत नही हुई कि और भी कुछ पूछूँ। अजीब आदमी था । बिना काम सफर कर रहा था।
मैं मुँह फेर कर अपने मोबाइल में लग गई।
कुछ देर बाद खुद ही बोला, " ये भी पूछ लो क्यों जा रहा हूँ कानपुर?"
मेरे मुंह से जल्दी में निकला," बताओ, क्यों जा रहे हो?"
फिर अपने ही उतावलेपन पर मुझे शर्म सी आ गई।
उसने थोड़ा सा मुस्कराते हुवे कहा, " एक पुरानी दोस्त मिल गई। जो आज अकेले सफर पर जा रही थी। फौजी आदमी हूँ। सुरक्षा करना मेरा कर्तव्य है । अकेले कैसे जाने देता। इसलिए उसे कानपुर तक छोड़ने जा रहा हूँ। " इतना सुनकर मेरा दिल जोर से धड़का। नॉर्मल नही रह सकी मैं।
मग़र मन के भावों को दबाने का असफल प्रयत्न करते हुए मैने हिम्मत कर के फिर पूछा, " कहाँ है वो दोस्त?"
कमबख्त फिर मुस्कराता हुआ बोला," यहीं मेरे पास बैठी है ना"
इतना सुनकर मेरे सब कुछ समझ मे आ गया। कि क्यों उसने टिकिट नही लिया। क्योंकि उसे तो पता ही नही था मैं कहाँ जा रही हूं। सिर्फ और सिर्फ मेरे लिए वह दिल्ली से कानपुर का सफर कर रहा था। जान कर इतनी खुशी मिली कि आंखों में आंसू आ गए।
दिल के भीतर एक गोला सा बना और फट गया। परिणाम में आंखे तो भिगनी ही थी।
बोला, "रो क्यों रही हो?"
मै बस इतना ही कह पाई," तुम मर्द हो नही समझ सकते"
वह बोला, " क्योंकि थोड़ा बहुत लिख लेता हूँ इसलिए एक कवि और लेखक भी हूँ। सब समझ सकता हूँ।"
मैंने खुद को संभालते हुए कहा "शुक्रिया, मुझे पहचानने के लिए और मेरे लिए इतना टाइम निकालने के लिए"
वह बोला, "प्लेटफार्म पर अकेली घूम रही थी। कोई साथ नही दिखा तो आना पड़ा। कल ही रक्षा बंधन था। इसलिए बहुत भीड़ है। तुमको यूँ अकेले सफर नही करना चाहिए।"
"क्या करती, उनको छुट्टी नही मिल रही थी। और भाई यहां दिल्ली में आकर बस गए। राखी बांधने तो आना ही था।" मैंने मजबूरी बताई।
"ऐसे भाइयों को राखी बांधने आई हो जिनको ये भी फिक्र नही कि बहिन इतना लंबा सफर अकेले कैसे करेगी?"
"भाई शादी के बाद भाई रहे ही नही। भाभियों के हो गए। मम्मी पापा रहे नही।"
कह कर मैं उदास हो गई।
वह फिर बोला, "तो पति को तो समझना चाहिए।"
"उनकी बहुत बिजी लाइफ है मैं ज्यादा डिस्टर्ब नही करती। और आजकल इतना खतरा नही रहा। कर लेती हुँ मैं अकेले सफर। तुम अपनी सुनाओ कैसे हो?"
"अच्छा हूँ, कट रही है जिंदगी"
"मेरी याद आती थी क्या?" मैंने हिम्मत कर के पूछा।
वो चुप हो गया।
कुछ नही बोला तो मैं फिर बोली, "सॉरी, यूँ ही पूछ लिया। अब तो परिपक्व हो गए हैं। कर सकते है ऐसी बात।"
उसने शर्ट की बाजू की बटन खोल कर हाथ मे पहना वो तांबे का कड़ा दिखाया जो मैंने ही फ्रेंडशिप डे पर उसे दिया था। बोला, " याद तो नही आती पर कमबख्त ये तेरी याद दिला देता था।"
कड़ा देख कर दिल को बहुत शुकुन मिला। मैं बोली "कभी सम्पर्क क्यों नही किया?"
वह बोला," डिस्टर्ब नही करना चाहता था। तुम्हारी अपनी जिंदगी है और मेरी अपनी जिंदगी है।"
मैंने डरते डरते पूछा," तुम्हे छू लुँ"
वह बोला, " पाप नही लगेगा?"
मै बोली," नही छू ने से नही लगता।"
और फिर मैं कानपुर तक उसका हाथ पकड़ कर बैठी रही।।
बहुत सी बातें हुईं।
जिंदगी का एक ऐसा यादगार दिन था जिसे आखरी सांस तक नही बुला पाऊंगी।
वह मुझे सुरक्षित घर छोड़ कर गया। रुका नही। बाहर से ही चला गया।
जम्मू थी उसकी ड्यूटी । चला गया।
उसके बाद उससे कभी बात नही हुई । क्योंकि हम दोनों ने एक दूसरे के फोन नम्बर नही लिए।
हांलांकि हमारे बीच कभी भी नापाक कुछ भी नही हुआ। एक पवित्र सा रिश्ता था। मगर रिश्तो की गरिमा बनाए रखना जरूरी था।
फिर ठीक एक महीने बाद मैंने अखबार में पढ़ा कि वो देश के लिए शहीद हो गया। क्या गुजरी होगी मुझ पर वर्णन नही कर सकती। उसके परिवार पर क्या गुजरी होगी। पता नही😔
लोक लाज के डर से मैं उसके अंतिम दर्शन भी नही कर सकी।
आज उससे मीले एक साल हो गया है आज भी रखबन्धन का दूसरा दिन है आज भी सफर कर रही हूँ। दिल्ली से कानपुर जा रही हूं। जानबूझकर जर्नल डिब्बे का टिकिट लिया है मैंने।
अकेली हूँ। न जाने दिल क्यों आस पाले बैठा है कि आज फिर आएगा और पसीना सुखाने के लिए उसी खिड़की के पास बैठेगा।
एक सफर वो था जिसमे कोई #हमसफ़र था।
एक सफर आज है जिसमे उसकी यादें हमसफ़र है। बाकी जिंदगी का सफर जारी है देखते है कौन मिलता है कौन साथ छोड़ता है...!!!
😥😥😥
स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ 💐💐
Читать полностью…Just for fun 😄🤣
Don't be serious
@MK_BHADIYA
लघु कथा (आत्मविश्वास)
अपने कमरे की आरामकुर्सी पर बैठे रघु को कुछ याद आया। वह ठीक से सोचने के लिए खिड़की के पास जाकर बैठ गया। उसने ठंडी हवा को महसूस किया। कई दिनों बाद वह इस सुख को अनुभव कर पा रहा था। पिछले दिनों से वह अपने काम में उलझा हुआ था और उसे कोई राहत नहीं मिली थी। अब जाकर वह अपना काम पूरा कर पाया था।
रघु ने सोचा—क्यों न आज इसी समय बैठकर अखबार पढ़ा जाए। वैसे भी, समय के अभाव में वह रोज़मर्रा की दुनियादारी से कटा हुआ था। उसने अखबार उठाया और पढ़ने लगा।
पहले ही पन्ने पर खबर थी—दो व्यक्तियों की लड़ाई में एक मासूम बच्ची की मौत हो गई। इस खबर का उस पर कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ा। ऐसी ही खबरों से तो अखबार भरे रहते हैं।
इसके बाद उसने अगली खबर पढ़ी—एक महिला को उनके ही बच्चों ने वृद्धाश्रम में छोड़ दिया। यह खबर उसके लिए खास थी। वह स्वयं भी उम्र के अंतिम पड़ाव पर खड़ा था। भला, वह ऐसी किसी स्थिति का सामना कैसे कर सकता था। उसने पूरी खबर ध्यान से पढ़ी। उसमें मां के पक्ष को अधिक महत्व दिया गया था और उसका दर्द विस्तार से बताया गया था।
तभी वह तीसरी खबर पढ़ ही रहा था कि उसका तीन साल का बेटा स्कूल से लौट आया। उसने बच्चे को पास बुलाया और स्नेह से पूछा—
“बेटा, तुम मुझसे प्यार करते हो?”
बच्चे ने कहा—“हाँ, करता हूँ।”
“क्या तुम मुझे कभी छोड़कर तो नहीं जाओगे?”
बच्चे ने हंसते हुए कहा—“बिल्कुल नहीं!”
कई सालों बाद, अखबार के एक कोने में खबर छपी—
“एक पुत्र, जो अपने पिता से बहुत प्रेम करता था, अंततः उन्हें वृद्धाश्रम में छोड़ आया।”
— समाप्त
नवेली क्रांति
एक पड़ोस में लगी आग,
हाय... हाय!
कुछ बहरूपिए खुश हुए—
जला पड़ोसी का घर, जला।
यह उसके गलत कामों का परिणाम है।
बड़े-बड़े नाम से श्रृंगार किया—
देखो, देखो! हुई क्रांति।
लोगों ने आग से खेला, खोल दिया—
मनमर्जी का वह दरवाज़ा,
जहां से लगेगी आग दोबारा।
कोई नापसंद होने पर
फूंकेगा अपना घर दुबारा,
पहना कर नवेली क्रांति का अमलीजाला।
चलता रहता है—
लोगों का नरसंहार, क़त्लेआम, लूटती हैं संस्कृतियां।
मुखौटे ओढ़ आते हैं
कई क्रांति के सरगना, लगाने चिंगारी।
अमुक लज्जाविहीन देखता समय भी,
दुबारा लौट आता हर बार ही!
बदलते हैं तख़्त, ताज, तरीके—
लाशों की खोपड़ियों पर भी,
नहीं बदलती है—
व्यवस्था और विधि।
नई नवेली क्रांति...!
-DSR
बहुत लोग अपनी नाकामी, मुश्किलें और दुख का कारण दूसरों को मानते हैं —
माता-पिता, दोस्तों, हालात, या किस्मत को दोष देकर वे असली शक्ति खो देते हैं।
सच्चाई ये है कि जिम्मेदारी लेने से ही इंसान अपने जीवन पर नियंत्रण पा सकता है।
📖 प्रेरक कहानी – “तूफान का दोष”
एक गाँव में दो किसान रहते थे।
एक दिन भयानक तूफान आया और दोनों के खेत बर्बाद हो गए।
पहला किसान रोते-रोते गाँव में घूमकर कहने लगा —
"भगवान ने मेरे साथ अन्याय किया, मेरी जिंदगी बर्बाद हो गई।"
दूसरा किसान अगले ही दिन टूटे पौधे हटाकर नए बीज बोने लगा।
किसी ने पूछा — "तू भी तो तूफान में बरबाद हुआ, फिर काम क्यों?"
वह मुस्कुराया —
"तूफान मेरी जिम्मेदारी नहीं था, लेकिन नए बीज बोना मेरी जिम्मेदारी है।"
💡 सीख (Moral)
जिम्मेदारी लेना मतलब — हालात चाहे जैसे हों, आप अपने हिस्से का काम पूरी ईमानदारी से करें।
जो जिम्मेदारी से भागता है, वो अपनी शक्ति किसी और के हाथ में दे देता है।
📌 जिम्मेदारी निभाने के नियम
अगर आप बेटे/बेटी हैं
माता-पिता की सेवा और सम्मान करना आपकी प्राथमिक जिम्मेदारी है।
भाई-बहनों (siblings) को यूँ ही न छोड़ें — उनका सहारा बनें, खासकर मुश्किल वक्त में।
अगर आप पति/पत्नी हैं
अपने spouse को सही राह दिखाना और साथ देना आपकी जिम्मेदारी है।
ध्यान रखें कि आपके कर्म उन्हें अधर्म या गलत राह की तरफ न धकेलें।
Seva Bhav (सेवा भाव)
जिम्मेदारी केवल कर्तव्य निभाने तक सीमित नहीं, बल्कि प्रेम और सेवा भाव से निभाना ही सच्चा पालन है।
⚠️ NOTE:
आज आप जो करेंगे, कल वही आपको वापस मिलेगा — +interest के साथ।
जिम्मेदारी से भागना आसान है, लेकिन उसकी कीमत कई गुना चुकानी पड़ती है।
🛡 Warrior Principle
"योद्धा अपनी ढाल किसी और को नहीं देता — वह खुद अपने और अपने लोगों की रक्षा करता है।"
पंडित जी कुणाल से लौटते वक्त कहते हैं कि, कुणाल, बहुत ही कम लोग होते हैं जो ईश्वर में विश्वास रखते हैं, अपने परिवार का पूरी तरह ध्यान रखते हैं। तुम उनमें से एक हो। सदा अपने विश्वास को बनाए रखो। उसकी मेहर से सब ठीक हो जाएगा।
कुणाल को इस जवाब से संतुष्टि तो मिलती, परंतु उसका अंधेरा मन अब तक सूना और प्रकाशहीन ही था। जो अपनी रोज़ी आज खोकर बैठा था। उसे कल से दुबारा संघर्ष करना होगा, जो उसने सालों पहले नौकरी पाने के लिए किया था। एक व्यक्ति को बेकार बैठने से बड़ा कोई अभिशाप नहीं।
उसने भी वही सवाल किया, जो उसने दिव्या से किया था - अगर मेरी आस्था न हो, अगर मैं ईश्वर में नहीं मानूँ तो क्या होगा? क्या वह मुझे तबाह करेगा? क्या मुझे सज़ा देगा?
पंडित जी उसकी ओर देखकर मुस्कुराए, मानो कोई शिक्षक अपने होनहार विद्यार्थी से किसी ना-उम्मीद सवाल पर पाता है। वह उससे कहते हैं - बिल्कुल नहीं कुणाल। वह कौन होता है, किसी को सज़ा देने वाला। अगर तुम उसे नहीं भी मानो तो उसका कुछ नहीं बिगड़ने वाला है।
कुणाल को यह सुनकर आश्चर्य होता। भला ऐसा कैसे? आज तक उसने सुना था कि ईश्वर को न मानने से कई दिक्कतें व्यक्ति को भोगनी पड़ती हैं। उसे स्वर्ग में भी नहीं जाने दिया जाता। और इस पर यह कह रहे कि मानो या न मानो, यह हमारे ऊपर है।
कुणाल इससे और उत्सुक होकर जानने लगता है - ना मानने से मेरा कोई अहित नहीं, तो फिर हम उसकी पूजा-पाठ क्यों कर रहे? क्या यह आपका व्यापार है?
उसे अपने अंतिम सवाल पर थोड़ा अजीब लगता। इसके बाद वह चुप हो जाता।
तुम सही हो कुणाल। ईश्वर को कभी किसी बात की परवाह नहीं। चाहो तो तुम मानो या न मानो।
कुणाल - तो हम क्यों उसे मानते हैं?
एक लंबी सांस छोड़ते हुए - बात यह है कि वह हमें जीवन जीने का एक ढाँचा देता ताकि हम दुबारा से जंगली न हो जाएँ। ठीक वैसे ही जैसे रेल अपनी बनाई हुई पटरियों के एक खास ढाँचे पर ही चलती है। वह एक-दूसरे में जाकर नहीं मिल जाती, वरना हमें रोज़ एक बड़ी घटना देखने को मिलती।
कुणाल - अगर मान लेते हैं कि वह उस दुनिया में नहीं हो, या उसकी कही कोई बात मौजूद न हो? तब फिर?
तुमने देखा होगा कि ईश्वर हर युग में आते रहते हैं। उनकी अनुपस्थिति में कोई महापुरुष इस जगत में होता है, जो इस दुनिया का नेतृत्व करता है। वह दिशा दिखाता है, ताकि हम आपस में लड़-लड़कर मिट न जाएँ। दुबारा हम केवल जीवन को भोगने न लग जाएँ। हमारी कोई चेतना तो हो।
कुणाल - अच्छा...
तुमने कभी इस बात पर ध्यान दिया कि दुनिया भर में मौजूद सभी भगवान और अवतारों ने केवल मनुष्यों के विकास की बात की, न कि किसी मशीन को बनाने की। उनकी सारी कोशिश इसी ओर रही कि व्यक्ति अपने चरित्र और गुणों से ऊपर उठे।
कुणाल - मैंने कभी इस बात पर ध्यान नहीं दिया।
हाँ, मैं समझ सकता हूँ। वह इसलिए क्योंकि व्यक्ति की सारी जंग उससे ही है। वह अपने मन पर विजय नहीं पा पाया है। इसलिए हमें छोटी-छोटी बातों के बारे में चेताया जाता है, ताकि हम अपने एकमात्र जीवन में स्वयं का उद्धार कर सकें।
कुणाल को यह सुनकर एक अजीब-सी सांत्वना मिल रही थी।
इसके बाद गुरुजी उसकी ओर उम्मीद के लहजे के साथ वहाँ से विदा लेते हैं।
कुणाल भी कल के लिए खुद को तैयार करता है।
समाप्त।
आदमी...
हर पल मरता है, पर दिखता नहीं।
कभी वह—
हक़ के लिए, कभी तंत्र से, मंत्रों से,
राजतंत्र से, औरत से, न्याय से,
कभी न्यायालय से, अपने ही अन्याय पर।
आदमी अपनी अंतिम
रक्त-बिंदु तक
मरता है।
एक दिन उसका हौसला टूट जाता है,
और लोग उसे
मरा हुआ घोषित कर देते।
– DSR
गणेश, जो उन्हें छुड़ाने की कोशिश कर रहा था, उसे भी दो-एक थप्पड़ पड़ गए। उसका कमरा रणभूमि बन गया। किसी तरह वे तीनों लड़ते-लड़ते गद्दे पर निढाल हो गए।
कुछ मिनटों बाद…
अपनी आपसी लड़ाई के बाद वे तीनों उठे और फिर से टीवी देखने लगे।
गोलू ने झट से दरवाज़ा खोला। वह वहाँ से जाना चाहता था। अब उसे यहाँ घुटन होने लगी थी। जैसे ही दरवाज़ा खोला, उसके सामने चौकीदार खड़ा था।
चौकीदार – तुम कौन हो? यहाँ इतनी बहस क्यों हो रही थी? नीचे तक आवाज़ें आ रही थीं।
गोलू लड़खड़ाते हुए, अपने पैरों पर संतुलन जमाने की कोशिश करते हुए बोला – "मैं गोलू, गणेश का दोस्त। और तुम कौन?"
चौकीदार – मैं यहाँ का वॉचमैन हूँ।
गोलू – वॉचमैन… हा, देवेंद्र।
चौकीदार – मेरा नाम देवेंद्र नहीं… दिग्विजय है। तुम यह सब मौज-मस्ती इस मल्टी में नहीं कर सकते।
गणेश पीछे से निकलकर आया। बात सँभालते हुए बोला – "भइया, मैं आपसे माफ़ी माँगता हूँ। आप परेशान मत होइए। मैं इसे समझा दूँगा।"
चौकीदार – मैं तुम्हारी कंप्लेन यहाँ के मालिक से ज़रूर करूँगा।
इसके बाद वह चेहरे पर बल डालते हुए वहाँ से चलने लगा।
वह सीढ़ियों तक ही उतरा था कि पीछे से आती एक आवाज़ पर उसका ध्यान गया।
गोलू – "क्या रे वॉचमैन! तू हमारे दोस्त की कंप्लेन करेगा? देख, मैं तुझे बताता हूँ!"
जब चौकीदार पूछे-मुड़े, उसने देखा कि गोलू उसकी ओर भाग रहा था। चौकीदार खुद को बचाने के लिए एक ओर हो गया। अगले ही पल गोलू सीढ़ियों से नीचे गिर पड़ा।
तीनों उसकी ओर भागे। वह अब भी नशे में बड़बड़ा रहा था। उसके सिर पर चोट लगी थी और खून बह रहा था। किसी तरह वे उसे वापस कमरे में उठाकर ले आए। उसके सिर को एक कपड़े से बाँधा।
पूरी रात किसी तरह काटी। गोलू आधी रात तक कराहता रहा। गणेश के पास ठंड से बचने का पर्याप्त सामान नहीं था, लेकिन उन्होंने रात गुज़ार दी।
सुबह हुई तो गोलू और चिराग वहाँ से निकल गए।
गणेश वॉचमैन से बात करता है। उसे पूरी बात समझाता है और किसी तरह मना लेता है।
उस दिन के बाद वे तीनों कई सालों तक आपसी जुड़ाव से दूर हो गए।
– समाप्त।
एक दिन...
उसने तमाम बातों पर सवाल उठाए-
आस-पड़ोस से, ख़ुदा से, ख़ुद से,
दुनिया, जगत से, इतिहास से, लोगों से…
सवाल पूछते-पूछते वह निढाल हो गया।
अंत में एक रोज़ वह पागल हो गया।
एक दिन...
उसने सवाल पूछा- क्या उसने पागलपन में सवाल उठाए,
या पागल होने के लिए सवाल उठाए?
गैस को धीमे करते हुए। नहीं रे! कई को तो मैंने खोल के भी नहीं देखा है।
गोलू अपने गिलास को खाली करते हुए। वैसे यार ठंड में पीने का आनंद ही अलग है।
गणेश - देखा चिराग, आनंद की बात की जा रही है।
चिराग - हां, बात तो है। पर तुम्हें वह विप्लव सर का किस्सा याद है।
गोलू उठता है और टीवी को ऑफ कर देता। वह दोनों उसे अजीब ढंग से देखते। लेकिन कहते कुछ नहीं।
गणेश - कौन सा किस्सा...
अरे वही जिसमें एक दिन वह पूरी क्लास को इंग्लिश की किताब पढ़ा रहे थे। और उसमें जब गोलू के नंबर आया तो उसने टेन को देसी पढ़ा था। इस पर जो इसकी फ़ज़ीहत हुई थी। पूछो मत। और दोनों उस बात को याद करके हंसने लगते हैं। गोलू के चेहरे पर एक ग्लानि छा जाती है।
अब गणेश भी उन दोनों के पास चला आता है। और गद्दे पर बैठ जाता।
जुड़े रहे।
अशीर्षक/
अपनी आपसी लड़ाई के बाद वे तीनों उठे और फिर से टीवी देखने लगे।
दरअसल, तीनों दोस्तों ने कई दिनों से मिलने का प्लान बना रखा था। लेकिन सवाल था—मिलें कहाँ? किसके पास समय है? आखिरकार उन्होंने तय किया कि क्यों न गणेश के घर मिला जाए। वैसे भी वह अकेला रहता है। यह बात उनके दिमाग में पहले क्यों नहीं आई, कोई नहीं जानता। अंत में सबने ठान लिया—शनिवार की शाम गणेश के घर ही मुलाक़ात होगी।
तय हुआ कि गोलू और चिराग शराब की बोतलें, अंडे और बाकी सामान लेकर आएँगे। गणेश तब तक सारी तैयारियाँ कर लेगा। वैसे भी वह इन दिनों गहरे अकेलेपन से गुज़र रहा था।
गणेश अपनी बी.एड. की पढ़ाई कर रहा है। कई सालों से खुद को खपाए जा रहा है। उसके दो बचपन के दोस्त—गोलू और चिराग—नौकरी छोड़ चुके थे। और गणेश अभी भी ज़िंदगी से जूझ रहा है।
पहले वह एक साथी के साथ रूम शेयर करता था, पर हालात बिगड़े तो साथी अपने शहर लौट गया। कभी-कभार फ़ोन पर बात हो जाती थी, मगर अब गणेश कई महीनों से अकेला रह रहा है। उसने इसी साल बी.एड. में दाखिला लिया है, इस उम्मीद में कि एक दिन कुछ बेहतर होगा।
इसी बीच, एक दिन इंस्टाग्राम स्क्रॉल करते हुए उसे अपने दोस्तों की याद आई। उसने तुरंत नंबर जुटाए और कॉन्फ़्रेंस कॉल पर बात की। गोलू, जो अक्सर सबसे सामंजस्य बैठाने वाला है, उसने ज़ोर दिया कि सबको एक बार ज़रूर मिलना चाहिए। चिराग, जो कभी किसी बात के लिए मना नहीं कर पाता, ने भी हामी भर दी। गणेश ने भी हामी भरी और फैसला पक्का हो गया।
शनिवार की रात
दोपहर से ही ठंड ने दस्तक दे दी थी। रोज़ की तुलना में मौसम ज़्यादा सर्द और सिहरन भरा था। सुबह तक ऐसा नहीं था, लेकिन अब गणेश का कमरा भी ठंड से भर गया था। उसे कई काम निपटाने थे और इस ठंड ने सब और मुश्किल कर दिया।
तीनों दोस्तों ने सुबह ही पक्का कर लिया था कि चाहे कुछ भी हो, शाम को मुलाक़ात होगी। कॉलेज से लौटकर गणेश अपने कमरे को व्यवस्थित करने में जुट गया।
वह एक मल्टी में रहता था, जो जंगल के पास बनी थी। ज़्यादातर कमरे खाली पड़े रहते थे। दो वजहें थीं—
1. जंगल की नज़दीकी, जिससे लोग डरते थे।
2. इमारत की पुरानी और जर्जर हालत।
ऊपर से मकान मालिक वहाँ रहता नहीं था। आए दिन झगड़े होते रहते। हाल ही में एक लड़के को किसी बाहरी ने धमकाया था, चाकू तक दिखा दिया था। पुलिस आई, रिपोर्ट लिखी, और चली गई। ऐसी घटनाएँ वहाँ आम थीं।
गणेश के लिए यह सब परेशानी बन चुका था। कल तक उसका एक रूममेट था, जो अपने भाई की शादी में चला गया। अब पूरी चार मंज़िला इमारत में गणेश अकेला रह गया था। नीचे चौकीदार का कमरा था, मगर उसका हाल और बुरा था। आधा समय नशे में, आधा समय मोबाइल में खोया रहता। कई बार शिकायत हुई, मगर मकान मालिक ने उसे कभी नहीं हटाया—सस्ता जो पड़ता था।
चौकीदार से कोई बात नहीं करता था। उसका स्वभाव अक्खड़, चिड़चिड़ा और अजीब था। वह रोज़ शाम सात बजे आता और सुबह छह बजे चला जाता। इस दौरान या तो सोता रहता या शराब के नशे में धुत पड़ा रहता।
आज शाम ठंड और भी बढ़ गई। लेकिन चौकीदार अब तक नहीं आया था।
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कहानी _ क्या होगा घर जमाई का
भाग_ 2 7
लेखक_ श्याम कुंवर भारती
प्रतीक ने अपने पिता से कहा _ पापा आप मां को लेकर थोड़ा अंदर आइए आप सबसे बात करनी है।
राजाराम जी ने उसकी मां को बोले थोड़ा अंदर चलो थोड़ा राय मशवरा करना है।प्रतीक की मां ने कहा _ ठीक है चलिए लेकिन मेरा फैसला बदलने वाला नहीं है।
अंदर आंगन में आकर प्रतीक की मां ने पूछा _ जल्दी बोलिए क्या बात करनी है बाहर सब लोग हमारा इंतजार कर रहे है।
मुझे नहीं हमारे बेटे को कुछ कहना है शांति से इसकी बात सुनो राजाराम ने कहा ।
देखो मम्मी तुम अभी धन दौलत के लालच में आकर मेरी पसंद और खुशी को भूल रही हो ।मुझे ये सब धन दौलत नहीं चाहिए ।मुझे मेरी मंजू मैडम बहुत पसंद थी और मैं उन्हीं से विवाह करना चाहता हूं ।
इसलिए तुम ये सब लड़की वालो को लौटा दो।
प्रतीक ठीक कह रहा है पम्मी की मां ।हमें लालच में नहीं पड़कर अपने बेटे की खुशी और उसका भविष्य देखना चाहिए।
मंजू लता कोई साधारण लड़की नहीं है।वो वीडियो के पद पर कार्यरत हैं।धन दौलत से बड़ा मान सम्मान और रुतबा होता है।
मंजू को अपनी बहु बनाकर हमारा भी सम्मान बढ़ेगा । प्रिया से विवाह कराना मतलब अपने बेटे को उनका घर जमाई बनाना है।अपने ही बेटे को इस घर से विदा करना है।
घर जमाई की जिंदगी नर्क से बदतर होती है ।इसलिए तुम ठंडे दिमाग से सोचो और जिद छोड़ दो।हमारे बेटे की खुशी से बढ़कर कोई धन दौलत नहीं हो सकती ।
प्रतीक और मंजू एक दूसरे को पसंद करते हैं इसलिए तुम मंजू की मां का प्रस्ताव स्वीकार कर लो और प्रिया के माता पिता से माफी मांग लो।राजाराम ने अपनी पत्नी को समझाते हुए कहा ।पम्मी ने भी अपने बड़े भाई और पिता की बात में सहमति जताते हुए अपनी मां को उनकी बात मान लेने को कहा ।
तभी उसकी मां ने गाड़ी की चाबी फेंकते हुए कहा _ लीजिए जाइए आप ही चाबी , गहना और जमीन का पेपर लौटा दीजिए ।जिससे आपको प्रतीक का विवाह करना है शौक से कीजिए ।लेकिन जब मेरी इस घर में कोई कदर ही नहीं है तो मैं यहां रहकर क्या करूंगी ।में अपने मायके जा रही हूं ।
अपनी मां की इस हरकत पर प्रतीक और उसके पिता तथा बहन हैरान रह गए।
अरे तुम बच्चों जैसी जिद क्यों कर रही हो ।रुको कही मत जाओ ।बाहर मेहमान बैठे हैं यह सब देखेंगे तो क्या सोचेंगे।राजाराम ने अपनी पत्नी को समझते हुए कहा ।
प्रतीक ने कहा _ मम्मी तुमको किसके साथ मेरी शादी करनी है करो ।अब मुझे कुछ नहीं कहना है।
उस समय वो काफी उदास और दुखी था। और चुपचाप बाहर निकलकर अपनी बाइक स्टार्ट कर ऑफिस चला गया।
राजाराम बहुत नाराज दिख रहे थे अपनी पत्नी से ।उन्हें अपनी पत्नी की हरकत से बहुत दुख पहुंचा था।उन्हें अपने बेटे का उदास चेहरा देखा नहीं जा रहा था।
उनकी पत्नी उन्हें लालच में अंधी नजर आ रही थी ।उसे अपने बेटे के भविष्य की चिंता बिल्कुल नहीं थी ।
वे भी चुपचाप बाहर आकर मेहमानों के साथ बैठ गए ।
प्रिया की मां ने उनके आते ही पूछा _ क्या मैं विवाह का मुहूर्त निकलवाऊं भाई साहब।
जी जरूर बहन जी आप शौक से निकलवाइए हमे यह रिश्ता मंजूर है।फिर उन्होंने मंजू की मां के सामने हाथ जोड़कर कहा_ माफ करे बहन जी हम बहुत दुख महसूस कर रहे हैं आपको ना बोलते हुए ।वीडियो मैडम से भी मेरी तरफ से माफ मांग लेना आप ।
मंजू की मां उठकर जाने लगी और बोली कोई बात नहीं भाई साहब आप दुखी न हो मै समझ सकती हूं आपकी स्थिति ।
तीन दिन के अंदर तिलकोत्सव और विवाह का मुहूर्त निकाला गया था। निर्धारित तिथि को प्रतीक की बारात बड़े धूमधाम से निकली थी ।सारे मेहमान,रिश्तेदार ,ऑफिस के लोग और मंजुलता भी बारात में शामिल थी ।प्रतीक की मां को छोड़कर कोई भी उस विवाह से खुश नजर नहीं आ रहा था।मंजू और प्रतीक बेहद उदास थे ।
जब बारात दरवाजे पहुंची सारे रीति रिवाज और विधि के अनुसार स्वागत सत्कार नाश्ता पानी के बाद विवाह मंडप में विवाह संस्कार प्रारंभ हुआ ।
जब कन्या को लाने प्रिया की चचेरी बहन उसे दुल्हन के रूप में लाने गई ।उसने सारा घर ढूंढ मारा लेकिन प्रिया उसे कही नहीं मिली ।
हैरान परेशान वो भागती हुई प्रिया की मां के पास जाकर कान में धीरे से बोली _ चाची प्रिया दीदी घर में कही कही नहीं ।सुनते ही उसके जमीन पैरों के नीचे की जमीन घिसकती हुई नजर आई।वो तुरंत मंडप से उठकर भागती हुई घर के अंदर गई प्रिया को पूरे घर में पागलों की तरह ढूंढती रही लेकिन उसे उसकी बेटी कही नहीं मिली ।तभी उसने अलमारी खोलकर देखा । वहां से विवाह के सारे गहने और दस लाख रुपए गायब थे।कई कपड़े और सूटकेस भी गायब था।
उसने घर की कई लड़कियों से प्रिया के बारे में पूछा लेकिन किसी ने कुछ नहीं बताया।वो रोने लगी ।सारे समाज में उसकी इज्जत मिट्टी में मिलने वाली थी ।उसने प्रिया की चचेरी बहन से अपने चाचा और पिता को बुलाने के लिए कहा ।
कहानी _ क्या होगा घर जमाई का
भाग_ 24
लेखक_ श्याम कुंवर भारती
मंजू लता ने अपनी मां से कहा _ मां पापा की देखभाल और मेरी शादी की बात करने के लिए आप सबको भी मेरे साथ मेरे आवास पर चलना होगा ।इसलिए आप चलने की तैयारी कर ले।फिर उसने प्रतीक से एक और एक एंबुलेंस का इंतजाम करने की कहा ।
प्रतीक ने थोड़ी देर में अपने अस्पताल में फोन कर एम्ब्युलेंस लाने को कह दिया।
कुछ ही घंटों में सभी वहां से
निकल चुके थे।एंबुलेंस में उसके माता पिता और चचेरी बहन थी और दूसरी गाड़ी में प्रतीक और मंजू सवार थे।
रास्ते में प्रतीक ने मंजू को बताया कि उसकी बहन पम्मी ने उसे फोन कर बताया था कि मेरी मां उसे घर जमाई बनाने को तैयार हो गई है लेकिन मेरे पिता मेरे आने का इंतजार कर रहे हैं।
मेरी सलाह लिए बिना वे कोई फैसला नहीं लेना चाहते है ।
उसकी बात सुनकर मंजू बड़ी चिंतित नजर आने लगी।
लेकिन आपकी मां ने आपसे पूछे बिना कैसे यह रिश्ता तय कर दिया।उसने प्रतीक से पूछा ।
मा को लड़की वाले के धन दौलत ,जमीन और मकान का लालच हो आया होगा लेकिन मा समझ नहीं रही है वो मुझे हमेशा के लिए खो देगी ।भले ही कई शर्ते तय हुई हैं लेकिन घर जमाई धोबी के कुत्ते की तरह होता है।वो न घर का रहता है न घाट का ।प्रतीक ने चिंतित होकर कहा ।
वैसे मेरी मां बहुत ज़िद्दी है।वो जो ठान लेगी पापा से मनवाकर ही रहेगी।
प्रतीक ने आगे कहा।
ऐसे हालत में आप क्या करेंगे ।मंजू ने पूछा ।
मैं क्या करूंगा ।एक तरफ मेरी मां और दूसरी तरफ मेरे पिता होंगे ।मेरे घर जाते ही बहुत जोर की बहस बाजी होगी ।मैं तो उलझन में पड़ जाऊंगा।प्रतीक ने कहा।
इसमें उलझन वाली क्या बात है।जब आपसे आपके पापा आपकी राय पूछेंगे आप साफ साफ कहा देंगे कि आपको यह रिश्ता मंजूर नहीं है और आप अपनी वीडियो मैडम मंजुलता से विवाह करना चाहते हैं।
आखिर आपको भी तो अपनी पसंद नापसंद कहने का मौका मिलेगा।मंजु ने प्रतीक को सलाह देते हुए कहा।
शायद आप ठीक कह रही हैं मैडम मैं आपके बारे में बात करूंगा मम्मी पापा से ।
मेरे आवास पर पहुंचते ही आप तुरंत अपने घर जाएंगे ।थोड़ी देर बाद मैं अपनी मां और चचेरी बहन को आपके घर भेजूंगी हम दोनों के रिश्ते की बात करने ।आप मेरी मां की बात को समर्थन करना ।मंजू ने कहा ।ठीक है ।मैडम मै यही करूंगा प्रतीक ने गाड़ी चलाते हुए कहा।
शाम के छ बजे तक सभी मंजू लता के सरकारी आवास पर पहुंच गए ।आज मौसम बिल्कुल साफ था इसलिए सभी एक बार केवल खाने के लिए एक होटल में रुके उसके बाद लगातार चलते रहे और आवास पर जल्दी पहुंच गए।
आवास पर पहुंचते ही मंजू प्रतीक को दस हजार रुपए देने लगी और बोली इसे रख लीजिए अब तक आपने ही खर्चा किया है लेकिन प्रतीक ने लेने से इनकार कर दिया और कहा अब काहे का मेरे तेरा मैडम ।अब तो है दोनों एक ही है ।आपको अपना समझकर समझकर खर्चा किया है।
मंजू बड़ी भाऊक हो गई और प्रतीक से लिपट गई।उसकी आंखे नम हो गई थी ।कितना प्यारा लड़का है।उसका कितना ख्याल रखता है।पता नहीं उसके साथ उसका विवाह हो पाएगा या नहीं ।इसलिए वो रो रही थी ।
प्रतीक ने उसे बड़ी मुश्किल से चुप करवाया और कहा हिम्मत रखे मैडम ।अब मैं अपने घर जा रहा हूं ।आप अपनी मां को कल मेरे घर भेज देना और अपने पापा का ख्याल रखना ।उसने उसके मम्मी पापा का आशीर्वाद लिया और आकर कार में बैठ गया ।चाबी से उसे स्टार्ट किया और अपने घर की ओर निकल पड़ा।उसका दिमाग बड़ी उधेड़ बुन में लगा हुआ था ।आखिर वो अपनी मां को कैसे मनायेगा।
शाम को प्रिया के पिता और उसके चाचा शादी की कुछ खरीदारी करने के लिए अपनी गाड़ी से बाजार जा रहे थे।तभी उनकी नजर एक बाइक पर पड़ी ।पीछे प्रिया बैठी हुई थी और बाइक विवेक चला रहा था । प्रिया उसकेे कमर में हाथ डालकर चिपक कर बैठी हुई थी।यह दृश्य देखकर उसके पिता के होश उड़ गए ।यह तो मेरी बेटी प्रिया है और ये लड़का एक नंबर का आवारा बदमाश ,जुआरी और शराबी है।ये कई बार कॉलेज में फैल हो चुका है।ये कोई काम धंधा नहीं करता है।कई बार हवालात भी जा चुका है।ऐसे बिगड़े लड़के के साथ मेरी बेटी घूम रही है।कोई जान जायेगा तो मेरी इज्जत का जनाजा निकल जायेगा ।उन्होंने अपने छोटे भाई से कहा ।
भइया ये तो बड़े शर्म की बात है।अभी प्रिया की शादी होने वाली है एक सरकारी ऑफिसर के साथ ।वे लोग बड़े सम्मानित लोग हैं और ये बदमाश हमारी बच्ची को गुमराह कर अपने साथ घूमा रहा है।
उनके छोटे भाई ने कहा ।
चलो दोनों का पीछा करते हैं देखते हैं दोनों कहा जाते हैं और क्या करते हैं।इतना कहकर प्रिया के पिता ने अपनी गाड़ी उसके पीछे लगा दिया और उस बाइक का पीछा करने लगे ।थोड़ी देर में बाइक एक पार्क की तरफ मूड गई।
📍रक्षासूत्र : बंधन नहीं, प्रेम की डोर
तू गई थी..
हाथ हिलाकर, बिना मुड़े,
तस्वीरों में मुस्कराता बचपन छोड़कर।
मैं वहीं ठिठक गया था,
दरवाजे की चौखट पर,
कलाई पर तेरे हाथों का बाँधा वो धागा..
जो अब मेरे अकेलेपन का साथी है।
राखी..
कितना छोटा सा शब्द है ना,
पर कितना लंबा उसका सफ़र।
एक धागा..
जो मेरी सारी गलतियों को माफ़ कर देता है,
मेरी हर हार में सहारा बनकर साथ देता है,
जो मेरी हर जीत में तेरे सपनों की चमक बनता है।
तेरे भेजे हुए अक्षरों में
रुई के फाहों सी कोमल दुआएं होती हैं,
और मैं..
हर बार उस लिफ़ाफ़े को देर तक देखता हूँ,
जैसे देखता हूँ तेरे लौट आने का इंतज़ार।
कितनी अजीब बात है ना बहना,
इस धागे ने कभी मुझे बाँधा नहीं,
बस संभाला..
हर उस मोड़ पर,
जहां मैं खुद से भी हार गया।
तू कहती थी,
"भैया, इस बार तो पक्का आना…"
मैं नहीं आ पाया,
फिर भी…
तेरा भेजा हुआ रक्षासूत्र आया,
और मैंने चुपचाप उसे पहन लिया।
आज भी जब शाम ढलती है,
मैं उस धागे को देखता हूँ,
और सोचता हूँ…
धागा नहीं है ये,
ये तो है प्रेम की डोर,
जिसमें उलझा हूँ मैं,
खुश हूँ मैं,
पूरा हूँ मैं..
क्योंकि कहीं दूर…
किसी शहर, किसी गली, किसी घर की छत पर
तू भी उसी डोर को थामे बैठी होगी…
मुस्कराती होगी…
मेरे लिए दुआ मांगती होगी…।
📍अगर वो साथ होता..."
अगर वो साथ होता
तो मैं दुनिया से उतना नहीं लड़ता।
हर बात को साबित करने की ज़रूरत नहीं होती।
कभी-कभी बस उसकी आँखों में देख लेना
काफ़ी होता।
शायद मैं तब
इतना लिखता भी नहीं
क्योंकि वो मेरी चुप्पियों को भी
पढ़ लेता।
अगर वो साथ होता…
तो शायद ये शामें
इतनी लंबी न होतीं,
ये चाय इतनी ठंडी न होती,
और ये मन…
इतना भारी नहीं होता।
वो शायद कुछ ख़ास न करता
बस यूँ ही मेरे बिखरे हुए ख़्वाबों को
धीरे से अपनी हथेलियों में रख लेता।
कभी हँसकर कह देता,
"चल, कुछ देर के लिए दुनिया छोड़ दे…"
और मैं छोड़ देता
सारा वज़न, सारे डर, सारे सवाल…
क्योंकि साथ सिर्फ़ किसी का होना नहीं होता,
साथ एक भरोसा होता है
कि जब मैं बिखरूँगा,
कोई होगा जो समेट लेगा… बिना शिकायत किए।