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नाम - लालबहादुर शास्त्री
लेखक - राष्ट्रबन्धु
कुल पृष्ठ - 29
भाषा - हिन्दी
श्रेणी - जीवनी
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📖📚📕
"मेरा कोई लेटर आया है?... घर में कदम रखते ही नेहा ने अपनी सास से पूछा।
" कोई लेटर नहीं आया है। देखो, राजेश कब से आया हुआ है ।उसे चाय- नाश्ता दो। उसे फिर दुकान भी जाना है ।"...उसकी सास बोली।
"आश्चर्य है ,मेरी दोनों सहेलियों के नौकरी का नियुक्ति पत्र आ गया है। मेरा अभी तक नहीं आया। मेरा पेपर उन लोगों से भी अच्छा गया था ।"
"ऐसा होता है कभी-कभी। ज्यादा परेशान होने की आवश्यकता नहीं ।"...सास में उसे समझाते हुए कहा।
नेहा की समझ में नहीं आ रहा था कि उसका नियुक्ति पत्र क्यों नहीं आ रहा है। उसने इस नौकरी के लिए कितना परिश्रम किया था। दिन में स्कूल की नौकरी ,घर के कामकाज और रातों में उसने जगकर इसकी तैयारी की थी ।उसका पेपर भी बहुत अच्छा के हुआ था ।वह बेहद हतोत्साहित और दुखी थी। उसका हरदम खिला रहने वाला मुखड़ा भी मुरझा गया था। वह उदास ,बेजान सी आकर अपने पति के हाथों में चाय- नाश्ता थमा गई ।उसका पति गौर से उसे देख रहा था। पत्नी की ऐसी दशा उसे सहन नहीं हो रही थी। उसने लपक कर उसकी कलाई को पकड़ लिया और उसकी हथेली पर एक कागज का टुकड़ा रख दिया। नेहा ने चौक कर उस कागज के टुकड़े को देखा, वह खुशी से झूम उठी... उसकी नौकरी का नियुक्ति पत्र था। लेकिन नौकरी दूसरे शहर में लगी थी।
" तुमने मुझे पहले क्यों नहीं बताया ?"...उसने शिकायत भरे स्वर में कहा।
" माँ ने मना किया था ।वह बोली कि अगर तुम चली जाओगी तो इस घर को कौन संभालेगा ? हम सभी को बहुत परेशानी होगी।लेकिन मैं तुम्हें नहीं रोकूँगा। तुमने इतनी अच्छी नौकरी बहुत परिश्रम के बदौलत पाई है।"
अब नेहा की हाथों में नियुक्ति पत्र था और उसका मस्तिष्क घोर चिंतन कर रहा था ।अगर उसके पति ने बलपूर्वक उसे इस नौकरी को करने के लिए रोका होता है तो वह उससे लड़कर भी इसे करती लेकिन वह इस निश्छल प्रेम के आगे खुद को बेहद असमंजस की स्थिति में पा रही थी।
यदि आप नेहा की जगह होते तो क्या ❓
चेन्नई, उत्तर भारतीयों के लिए यूं ही छोटा मोटा नर्क है, उसपर से अगर बुढ़ापे में आपकी पोस्टिंग वहां हो जाए तो समझो की सरकार कायनात के साथ मिलकर आपकी लेने पर तुली हुई है।
तो ये घटना है, बिहार के चंपारण से आने वाले राजेश सिंह की। मजेदार जिंदगी रही, पैदा हुए तो एक बड़े जमींदार परिवार में, पढ़ाई लिखाई भी अच्छी रही। फिर एक नौकरी मिली, एयर फोर्स में। पहली पोस्टिंग दिल्ली थी बाद में भले पोस्टिंग कहीं हो घर परिवार हमेशा दिल्ली में ही रहा। अब दिल्ली कहानियों का शहर है, कहानियां बनती हैं यहां और दो हजार के शुरुआती दशक में एक कहानी और बनी जब राजेश को पंजाबी घर से आने वाली एक लड़की कृति से प्यार हुआ। प्यार हुआ तो दोनों ने शादी करनी चाही, पंजाबी पैरेंट्स को बिहारी लड़का पसंद नही आया और बिहारी राजपूत जमींदार परिवार को अपने से कमतर घर की लड़की। दोनों बिना घर वालों की मर्जी के शादी करके रहने लगे। तीन बच्चे हुए सबसे बड़ा वाला लड़का सैम, और दो जुड़वा बेटियां भावना और दर्शना। अब तक सब अच्छा चल रहा था जब अचानक से बच्चों की मां कृति चल बसीं हार्ट अटैक से। घर बिखर गया। सैम इंजीनियरिंग में जा चुका था और उसे वहीं हॉस्टल में रहना पड़ता था, बेटियां दसवीं का एग्जाम दे रही थी और रिजल्ट का इंतजार था। घर में असली बॉम्ब तब फूटा जब अचानक से लगभग पूरी नौकरी दिल्ली में गुजार देने के बाद राजेश को चेन्नई हेडक्वार्टर से बुलावा आ गया।
इस समस्या से कैसे निपटा जाए, नौकरी छोड़ कर कहीं और ट्राय किया जा सकता था मगर ये फैसला आर्थिक रूप से बहुत सही नही था। दोनों लड़कियों को हॉस्टल में रखने के पक्ष में राजेश खुद नही थे। सैम अपनी पढ़ाई छोड़कर आ नही सकता था। लड़कियां अकेली दिल्ली में मकान में रहें ये भी बहुत अच्छा डिसीजन नही था। तो अंत में फैसला हुआ की दोनों चेन्नई चलें साथ में, वहीं केंद्रीय विद्यालय में नाम लिखवाया जाएगा और अलग से एक फ्लैट लिया जाए जहां दोनो साथ रहेंगी और जब पापा की छुट्टी होगी तो वो आते जाते रहेंगे, इससे नजदीक भी रहेंगी जब कोई काम हो तो और पापा अपनी ड्यूटी भी हेडक्वार्टर में करते रहेगें।
पूरी जिंदगी जिसने दिल्ली देखा हो वो जब पहली बार चेन्नई जाएगा तो उसे ऐसा लगेगा जैसे वो कोई और ही एलियन सभ्यता में आ गया हो, लोग अलग वेशभूषा अलग, व्यवहार अलग, खानपान अलग मगर इन सबसे जो ज्यादा अलग चीज है वो है भाषा। शायद लोग समझते नही या यूं कहें कि लोग बोलना नहीं चाहते। खैर भाषा से ज्यादा बड़ी समस्या थी स्कूल के पास एक मकान ढूंढना। अगर किसी एक जगह पूरा भारत एक है तो वो है एक किरायेदार को एक ढंग का मकान ढूंढना।
मकान ढूंढने के क्रम में जो सबसे बेहतर मकान मिला वो एक पुरानी सरकारी कॉलोनी में था, मकान किसी बाबू के नाम था सरकारी रजिस्टर में मगर वो मकान किराए पर लगाकर दो पैसे एक्स्ट्रा कमा रहे थे। मकान क्या था , फ्लैट ही था, पुरानी सरकारी तीन तल्ले की बिल्डिंग जिसमें कुल जमा 6 फ्लैट्स होते हैं, हर फ्लोर पर दो। जो फ्लैट राजेश सिंह को मिला वो बीच वाले फ्लोर पर था, मतलब ना नीचे वालों की तरह गार्डन का सुख ना सबसे ऊपर वालों की तरह छत का मजा। ऐसी ही और ढेर सारी बिल्डिंग्स थी उस पूरे एरिया में। तो सिंह साहब का मानना था कि अपार्टमेंट के मुकाबले इस कॉलोनी में लोगों का एकदूसरे से व्यवहार ज्यादा बेहतर होगा और किसी परेशानी के समय सब एकदूसरे के काम आयेंगे, अकेली लड़कियों के लिए ये ज्यादा बेहतर जगह होगी।
जिंदगी एक बार फिर पटरी पर आने लगी, सैम अपने कॉलेज में व्यस्त हो गया, दोनों बहने स्कूल में जाने लगी और पिताजी भी हर मौका मिलते घर आ जाते थे। तकलीफ थी तो बस किसी बात करने वाले की। ऐसा नहीं था की दो जवान लड़कियों से कोई बात नही करना चाहता था मगर कुछ पिता का डर और कुछ तमिल लड़कों का बहुत ज्यादा हैंडसम ना होना उनकी नजरों में उन्हें अब तक दोस्त बनाने नही दे रहा था, लड़कियां तो वैसे भी जलनखोर होती हैं तो अपने से थोड़ा ज्यादा सुंदर लड़कियां देख कोई खास भाव ना दिया करती थी दोनों जुड़वा बहनों को। दिल्ली की पुरानी दोस्तों से भी कब तक फोन और इंस्टा स्नैपचैट के सहारे काम चलाया जाता।
खैर जिंदगी कट रही थी, ऐसे में एक रोज शाम को बाजार से लौटते हुए अंधेरा कुछ ज्यादा हो गया, घर कॉलोनी के थोड़ा अंदर था और सरकारी कॉलोनी होने के चलते पेड़ कुछ ज्यादा ही जिसके वजह से अंधेरा और भयावह लग रहा था। तभी दोनों बहनों को ऐसा लगा की कुछ लड़के उनका पीछा कर रहें हैं, पिछा क्या वो तमिल में उनपर फब्तियां कस रहें थे, पीछे देखा तो इतना समझ में जरूर आया की ये आसपास के आवारा लफंगे लड़के हैं। लड़कियों ने खतरे को भांपने का इनबिल्ट सॉफ्टवेयर होता है और दोनों तेज कदमों से आगे बढ़ने लगीं। अब तक दोनो बहनों और उन बदमाशों के अलावा सड़क पर और कोई नही था की थोड़ा ही आगे बढ़ने पर उन्हें एक महिला दिखीं, उन्हें देख दोनों बहनों को
प्रतिदिन की तरह दफ़्तर में आज भी खचाखच भीड़ थी ।
एक आदमी काफी देर से चुपचाप खड़ा था ।
बड़े बाबू ने उस आदमी से पूछा -" आपको कोई काम है क्या श्रीमान ?"
वो पीछे से सरपट आगे बढ़ आया औऱ बोला -" सर जी , एक जरूरी आवेदन लिखवानी थी ।"
-" मगर किसलिए?" बड़े बाबू ने आश्चर्य से पूछा ।
-" मेरे पिताजी को शराब की जबरदस्त बुरी लत है ।" आदमी बोला ।
-"तो अच्छी तरह समझाइये उन्हें कि नशा जानलेवा है , उनको आवेदन देने की क्या जरूरत है ??" बड़े बाबू ने गंभीरता से कहा ।
-"नहीं , ये बात नहीं है सर । दरअसल उनकी उम्र ज्यादा हो चुकी है । तकरीबन 90 के तो होंगे ही ।"
-"तो ?"
-" तो जब पीकर उधर से वापस आते हैं , तो साइकिल समेत रास्ते में गिर जाते हैं । हम लोगों को प्रतिदिन ढूंढ कर वापस घर लाना पड़ता है ।"
-"तो उन्हें अच्छी तरह समझाइये भाई साहब कि वे मत पिया करें शराब.....क्यों फ़ालतू में मरना चाह रहे हैं ??"
"इससे कुछ फायदा नहीं होगा , हमलोग उनको बोल बोलकर पक गए हैं....आप बस केवल एक बढ़िया सा आवेदन लिख दीजिये सर जी ,प्लीज ।"
-"अच्छा...ठीक है , लेकिन किसको लिखना है ?"बड़े बाबू ने पूछा ।
-"आबकारी विभाग को ।"
-"क्या लिखूँ ?"
-" यही कि ठेका दूर होने की वजह से मेरे पिता जैसे सैकड़ों लोगों को यहाँ से सात किलोमीटर दूर जाना पड़ता है । ऐसे में कई बुजुर्ग प्रतिदिन रास्ते में गिर - पड़ जाते हैं , चोट लगती है सो अलग । अगर अपने गाँव में ही ठेका रहेगा तो कम से कम ये परेशानी तो नहीं उठानी पड़ेगी ।"
उस आदमी की बातों को बेहद गंभीरता से सुनने के बाद बड़े बाबू ने जब गौर से अपने अगल बगल देखा तो पाया कि ठीक उनके पास खड़े एक बुजुर्ग फफककर रो रहे थे ।
बड़े बाबू ने उस बुजुर्ग से आश्चर्यचकित होकर पूछा....अब आपको क्या हो गया बाबा ?? आप क्यों बेकार में रोने लगे ??
भारी आवाज़ में बुजुर्ग ने उत्तर दिया... " साहब... बेटा हो तो इस आदमी जैसा , जिसे अपने बुजुर्ग पिता की कितनी फ़िक्र है.... औऱ एक हमारा छोरा है , मैं दारू पीने न जा सकूँ , इसलिए साले ने मेरी साइकिल ही बेच दी....कसम से , बहुत तक़दीर वाले को ऐसा बेटा नसीब होता है ।"
गुस्से को नियंत्रित करने का एक सुंदर उदाहरण
एक वकील ने सुनाया हुआ एक ह्यदयस्पर्शी किस्सा
"मै अपने चेंबर में बैठा हुआ था, एक आदमी दनदनाता हुआ अन्दर घुसा
हाथ में कागज़ो का बंडल, धूप में काला हुआ चेहरा, बढ़ी हुई दाढ़ी, सफेद कपड़े जिनमें पांयचों के पास मिट्टी लगी थी
उसने कहा,
"उसके पूरे फ्लैट पर स्टे लगाना है
बताइए, क्या क्या कागज और चाहिए... क्या लगेगा खर्चा... "
मैंने उन्हें बैठने का कहा,
"रग्घू, पानी दे इधर" मैंने आवाज़ लगाई
वो कुर्सी पर बैठे
उनके सारे कागजात मैंने देखे
उनसे सारी जानकारी ली
आधा पौना घंटा गुजर गया
"मै इन कागज़ो को देख लेता हूं
आपकी केस पर विचार करेंगे
आप ऐसा कीजिए, बाबा, शनिवार को मिलिए मुझसे"
चार दिन बाद वो फिर से आए
वैसे ही कपड़े
बहुत डेस्परेट लग रहे थे
अपने भाई पर गुस्सा थे बहुत
मैंने उन्हें बैठने का कहा
वो बैठे
ऑफिस में अजीब सी खामोशी गूंज रही थी
मैंने बात की शुरवात की
" बाबा, मैंने आपके सारे पेपर्स देख लिए
आप दोनों भाई, एक बहन
मा बाप बचपन में ही गुजर गए
तुम नौवीं पास। छोटा भाई इंजिनियर
आपने कहा कि छोटे भाई की पढ़ाई के लिए आपने स्कूल छोड़ा
लोगो के खेतों में दिहाड़ी पर काम किया
कभी अंग भर कपड़ा और पेटभर खाना आपको मिला नहीं
पर भाई के पढ़ाई के लिए पैसा कम नहीं होने दिया।"
"एक बार खेलते खेलते भाई पर किसी बैल ने सींग घुसा दिए
लहूलुहान हो गया आपका भाई
फिर आप उसे कंधे पर उठा कर 5 किलोमीटर दूर अस्पताल लेे गए
सही देखा जाए तो आपकी उम्र भी नहीं थी ये समझने की, पर भाई में जान बसी थी आपकी
मा बाप के बाद मै ही इन का मा बाप… ये भावना थी आपके मन में"
"फिर आपका भाई इंजीनियरिंग में अच्छे कॉलेज में एडमिशन ले पाया
आपका दिल खुशी से भरा हुआ था
फिर आपने मरे दम तक मेहनत की
80,000 की सालाना फीस भरने के लिए आपने रात दिन एक कर दिया
बीवी के गहने गिरवी रख के, कभी साहूकार कार से पैसा ले कर आपने उसकी हर जरूरत पूरी की"
"फिर अचानक उसे किडनी की तकलीफ शुरू हो गई
दवाखाने हुए, देवभगवान हुए, डॉक्टर ने किडनी निकालने को कहा
तुम ने अगले मिनट में अपनी किडनी उसे दे दी
कहा कल तुझे अफसर बनना है, नोकरी करनी है, कहा कहा घूमेगा बीमार शरीर लेे के। मुझे गाव में ही रहना है, एक किडनी भी बस है मुझे
ये कह कर किडनी दे दी उसे।"
"फिर भाई मास्टर्स के लिए हॉस्टल पर रहने गया
लड्डू बने, देने जाओ, खेत में मकई खाने तयार हुई, भाई को देने जाओ, कोई तीज त्योहार हो, भाई को कपड़े करो
घर से हॉस्टल 25 किलोमीटर
तुम उसे डिब्बा देने साइकिल पर गए
हाथ का निवाला पहले भाई को खिलाया तुमने।"
"फिर वो मास्टर्स पास हुआ, तुमने गांव को खाना खिलाया
फिर उसने शादी कर ली
तुम सिर्फ समय पर वहा गए
उसी के कॉलेज की लड़की जो दिखने में एकदम सुंदर थी
भाई को नौकरी लगी, 3 साल पहले उसकी शादी हुई, अब तुम्हारा बोझ हल्का होने वाला था।"
"पर किसी की नज़र लग गई आपके इस प्यार को
शादी के बाद भाई ने आना बंद कर दिया। पूछा तो कहता है मैंने बीवी को वचन दिया है
घर पैसा देता नहीं, पूछा तो कहता है कर्ज़ा सिर पे है
पिछले साल शहर में फ्लैट खरीदा
पैसे कहा से आए पूछा तो कहता है कर्ज लिया है
मेंने मना किया तो कहता है भाई, तुझे कुछ नहीं मालूम, तू निरा गवार ही रह गया
अब तुम्हारा भाई चाहता है गांव की आधी खेती बेच कर उसे पैसा दे दे"
इतना कह के मैं रुका
रग्घू ने लाई चाय की प्याली मैंने मुंह से लगाई
" तुम चाहते हो भाई ने जो मांगा वो उसे ना दे कर उसके ही फ्लैट पर स्टे लगाया जाए
क्या यही चाहते हो तुम"...
वो तुरंत बोला, "हां"
मैंने कहा,
" हम स्टे लेे सकते हैं
भाई के प्रॉपर्टी में हिस्सा भी मांग सकते हैं
पर….
तुमने उसके लिए जो खून पसीना एक किया है वो नहीं मिलेगा
तुमने दी हुई किडनी वापस नहीं मिलेगी,
तुमने उसके लिए जो ज़िन्दगी खर्च की है वो भी वापस नहीं मिलेगी
मुझे लगता है इन सब चीजों के सामने उस फ्लैट की कीमत शुन्य है
भाई की नीयत फिर गई, वो अपने रास्ते चला गया
अब तुम भी उसी कृतघ्न सड़क पर मत जाना"
"वो भिखारी निकला,
तुम दिलदार थे।
दिलदार ही रहो …..
तुम्हारा हाथ ऊपर था,
ऊपर ही रखो
कोर्ट कचहरी करने की बजाय बच्चों को पढ़ाओ लिखाओ
पढ़ाई कर के तुम्हारा भाई बिगड़ गया;
इस का मतलब बच्चे भी ऐसा करेंगे ये तो नहीं होता"
वो मेरे मुंह को ताकने लगा"
उठ के खड़ा हुआ, सब काग़ज़ात उठाए और आंखे पोछते हुए कहा,
"चलता हूं वकील साहब" उसकी रूलाई फूट रही थी और वो मुझे वो दिख ना जाए ऐसी कोशिश कर रहा था
इस बात को अरसा गुजर गया
कल वो अचानक मेरे ऑफिस में आया कलमों में सफेदी झांक रही थी उसके। साथ में एक नौजवान था
हाथ में थैली
मैंने कहा, "बाबा, बैठो"
*💥असली मनुष्य💥*
एक ब्राह्मण यात्रा करते-करते किसी नगर से गुजरा बड़े-बड़े महल एवं अट्टालिकाओं को देखकर ब्राह्मण भिक्षा माँगने गया किन्तु किसी ने भी उसे दो मुट्ठी अऩ्न नहीं दिया आखिर दोपहर हो गयी ब्राह्मण दुःखी होकर अपने भाग्य को कोसता हुआ जा रहा थाः “कैसा मेरा दुर्भाग्य है इतने बड़े नगर में मुझे खाने के लिए दो मुट्ठी अन्न तक न मिला ? रोटी बना कर खाने के लिए दो मुट्ठी आटा तक न मिला ?
इतने में एक सिद्ध संत की निगाह उस पर पड़ी उन्होंने ब्राह्मण की बड़बड़ाहट सुन ली वे बड़े पहुँचे हुए संत थे उन्होंने कहाः
“ब्राह्मण तुम मनुष्य से भिक्षा माँगो, पशु क्या जानें भिक्षा देना ?”
ब्राह्मण दंग रह गया और कहने लगाः “हे महात्मन् आप क्या कह रहे हैं ? बड़ी-बड़ी अट्टालिकाओं में रहने वाले मनुष्यों से ही मैंने भिक्षा माँगी है”
संतः “नहीं ब्राह्मण मनुष्य शरीर में दिखने वाले वे लोग भीतर से मनुष्य नहीं हैं अभी भी वे पिछले जन्म के हिसाब ही जी रहे हैं कोई शेर की योनी से आया है तो कोई कुत्ते की योनी से आया है, कोई हिरण की से आया है तो कोई गाय या भैंस की योनी से आया है उन की आकृति मानव-शरीर की जरूर है किन्तु अभी तक उन में मनुष्यत्व निखरा नहीं है और जब तक मनुष्यत्व नहीं निखरता, तब तक दूसरे मनुष्य की पीड़ा का पता नहीं चलता. ‘दूसरे में भी मेरा ही दिलबर ही है’ यह ज्ञान नहीं होता तुम ने मनुष्यों से नहीं, पशुओं से भिक्षा माँगी है”
ब्राह्मण का चेहरा दुःख रहा था ब्राह्मण का चेहरा इन्कार की खबरें दे रहा था सिद्धपुरुष तो दूरदृष्टि के धनी होते हैं उन्होंने कहाः “देख ब्राह्मण मैं तुझे यह चश्मा देता हूँ इस चश्मे को पहन कर जा और कोई भी मनुष्य दिखे, उस से भिक्षा माँग फिर देख, क्या होता है”
ब्राह्मण जहाँ पहले गया था, वहीं पुनः गया योगसिद्ध कला वाला चश्मा पहनकर गौर से देखाः ‘ओहोऽऽऽऽ…. वाकई कोई कुत्ता है कोई बिल्ली है. तो कोई बघेरा है आकृति तो मनुष्य की है लेकिन संस्कार पशुओं के हैं मनुष्य होने पर भी मनुष्यत्व के संस्कार नहीं हैं’ घूमते-घूमते वह ब्राह्मण थोड़ा सा आगे गया तो देखा कि एक मोची जूते सिल रहा है ब्राह्मण ने उसे गौर से देखा तो उस में मनुष्यत्व का निखार पाया
ब्राह्मण ने उस के पास जाकर कहाः “भाई तेरा धंधा तो बहुत हल्का है औऱ मैं हूँ ब्राह्मण रीति रिवाज एवं कर्मकाण्ड को बड़ी चुस्ती से पालता हूँ मुझे बड़ी भूख लगी है लेकिन तेरे हाथ का नहीं खाऊँगा फिर भी मैं तुझसे माँगता हूँ क्योंकि मुझे तुझमें मनुष्यत्व दिखा है”
उस मोची की आँखों से टप-टप आँसू बरसने लगे वह बोलाः “हे प्रभु आप भूखे हैं ? हे मेरे रब आप भूखे हैं ? इतनी देर आप कहाँ थे ?”
यह कहकर मोची उठा एवं जूते सिलकर टका, आना-दो आना वगैरह जो इकट्ठे किये थे, उस चिल्लर ( रेज़गारी ) को लेकर हलवाई की दुकान पर पहुँचा और बोलाः “हे हलवाई मेरे इन भूखे भगवान की सेवा कर लो ये चिल्लर यहाँ रखता हूँ जो कुछ भी सब्जी-पराँठे-पूरी आदि दे सकते हो, वह इन्हें दे दो मैं अभी जाता हूँ”
यह कहकर मोची भागा घर जाकर अपने हाथ से बनाई हुई एक जोड़ी जूती ले आया एवं चौराहे पर उसे बेचने के लिए खड़ा हो गया
उस राज्य का राजा जूतियों का बड़ा शौकीन था उस दिन भी उस ने कई तरह की जूतियाँ पहनीं किंतु किसी की बनावट उसे पसंद नहीं आयी तो किसी का नाप नहीं आया दो-पाँच बार प्रयत्न करने पर भी राजा को कोई पसंद नहीं आयी तो मंत्री से क्रुद्ध होकर बोलाः “अगर इस बार ढंग की जूती लाया तो जूती वाले को इनाम दूँगा और ठीक नहीं लाया तो मंत्री के बच्चे तेरी खबर ले लूँगा”
दैव योग से मंत्री की नज़र इस मोची के रूप में खड़े असली मानव पर पड़ गयी जिस में मानवता खिली थी, जिस की आँखों में कुछ प्रेम के भाव थे, चित्त में दया-करूणा थी, ब्राह्मण के संग का थोड़ा रंग लगा था मंत्री ने मोची से जूती ले ली एवं राजा के पास ले गया राजा को वह जूती एकदम ‘फिट’ आ गयी, मानो वह जूती राजा के नाप की ही बनी थी राजा ने कहाः “ऐसी जूती तो मैंने पहली बार ही पहन रहा हूँ किस मोची ने बनाई है यह जूती ?”
मंत्री बोला “हुजूर यह मोची बाहर ही खड़ा है”
मोची को बुलाया गया उस को देखकर राजा की भी मानवता थोड़ी खिली राजा ने कहाः “जूती के तो पाँच रूपये होते हैं किन्तु यह पाँच रूपयों वाली नहीं, पाँच सौ रूपयों वाली जूती है जूती बनाने वाले को पाँच सौ और जूती के पाँच सौ, कुल एक हजार रूपये इसको दे दो”
मोची बोलाः “राजा साहिब तनिक ठहरिये यह जूती मेरी नहीं है, जिसकी है उसे मैं अभी ले आता हूँ”
मोची जाकर विनयपूर्वक ब्राह्मण को राजा के पास ले आया एवं राजा से बोलाः “राजा साहब यह जूती इन्हीं की है”
राजा को आश्चर्य हुआ वह बोलाः “यह तो ब्राह्मण है इस की जूती कैसे ?”
राजा ने ब्राह्मण से पूछा तो ब्राह्मण ने कहा मैं तो ब्राह्मण हूँ यात्रा करने निकला हूँ”
Breaking 🔥🔥:
🎉 Listing time: Sep 20, 2024
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सभी मित्रों को सुप्रभात 🌅🌅🌅🌼🌼🌻🌻🌻🌹🌹☺️😊😊🌸🌸💮🌻🌻🌼🌼🌼🌺🌺🌷🌷🌹🌹🌹Читать полностью…
Good Morning 🚩😇
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🌟 नन्द के आनंद भयो, जय कन्हैया लाल की,
🌟हाथी घोड़ा पालकी, जय कन्हैया लाल की।
🌟श्री कृष्ण जन्माष्टमी की शुभकामनाएं
🌟🌟🌟🌟🌟🌟🌟🌟🌟
🌺 आज का सुविचार 🌺
एक समझदार व्यक्ति
को, उम्र भर केवल
एक ही बात से ठगा
जाता है।
"तुम तो समझदार हो
तुम्हें समझना चाहिए
🙇♂ जय श्री कृष्णा 🙇♂
🙏 सुप्रभात 🙏
मैंने सिस्टर को विश्वास दिलाया कि हम लोग बहुत बड़े पश्चाताप में जी रहे हैं। अंततः वह हमें माँ के कमरे में ले गईं।
कमरे में जो दृश्य था, उसे शब्दों में बयां करना मुश्किल है। माँ के बगल में एक फ़ोटो थी जिसमें पूरी फैमिली थी, और माँ ने उसे ऐसे सहेजा हुआ था जैसे वह उसकी आखिरी पूंजी हो।
जब हमने माँ को बताया कि हम लोग उन्हें लेने आए हैं, तो पूरी फैमिली एक दूसरे को पकड़ कर रोने लगी। आसपास के अन्य बुजुर्ग भी जाग गए थे और उनकी आँखें भी नम थीं।
कुछ समय बाद चलने की तैयारी हुई और पूरे आश्रम के लोग हमें विदा देने बाहर तक आए। रास्ते में भाई साहब और माताजी अपने पुराने रिश्ते की गर्मी को फिर से महसूस कर रहे थे। घर पहुँचते-पहुँचते करीब 3:45 हो गए।
भाभीजी अब समझ चुकी थीं कि परिवार की खुशियों की असली चाबी कहाँ है।
मैं वापस चल पड़ा, लेकिन रास्ते भर वो सारे दृश्य मेरी आँखों के सामने घूमते रहे।
माँ केवल माँ है। उसे मरने से पहले मत मारो। माँ हमारी ताकत है, उसे बेसहारा न होने दें। अगर वह कमजोर हो गई तो हमारी संस्कृति की रीढ़ कमजोर हो जाएगी।
अगर आपकी परिचित किसी परिवार में ऐसी कोई समस्या हो तो उन्हें यह जरूर पढ़ाएं, बात को प्रभावी ढंग से समझाएं। कुछ भी करें, लेकिन हमारी जननी को बेसहारा और बेघर न होने दें।
अगर माँ की आँख से आँसू गिर गए तो यह कर्ज कई जन्मों तक रहेगा। यकीन मानिए, सब कुछ होगा आपके पास पर सुकून नहीं होगा। सुकून केवल माँ के आँचल में होता है, उस आँचल को बिखरने मत देना।
इस मार्मिक दास्तान को खुद भी पढ़िए और अपने बच्चों को भी पढ़ाइए ताकि कभी भी पश्चाताप न करना पड़े।
रक्षा बंधन की हार्दिक शुभकामनाएं 🎉❣️
Читать полностью…एक बार एक थिएटर में एक शार्ट फ़िल्म दिखाई गई । जब फ़िल्म शुरू हुई तो सामने एक सफेद रंग का पंखा दिख रहा था , आस पास कोई हलचल नही सिर्फ रुका हुआ एक सफेद पंखा.. ये दृश्य करीब 6 मिनट तक चला तो लोग आपत्ति जताने लगे कुछ शिकायत करने लगे तो कुछ उठ कर जाने लगे .... 6 मिनट के बाद सीन का कैमरा उस पंखे से नीचे आता है एक बेड पर जिसपे एक अपाहिज बच्चा लेटा हुआ और ऊपर की ओर देख रहा होता है जिसकी रीढ़ की हड्डी में फैक्चर की वजह से वो हिल डुल भी नही सकता
... ....
फिर एक आवाज आती है
" अभी इस शार्ट फ़िल्म में मात्र 6 मिनट तक एक ही दृश्य लगातार दिखाया गया आप सभी को , उन 6 मिनटों में कई लोग चिल्लाने लगे धैर्य नही रख पाए और कई उठ कर जाने लगे ,, दूसरी तरफ एक बच्चा है जो पैरालाइज्ड है और वो अपने जीवन के ज्यादातर घंटे बस इसी दृश्य को ही देखता रहता है।।
...
कभी-कभी हमें खुद को दूसरों की जगह रखकर यह समझने की ज़रूरत होती है कि हमें जो ईश्वर ने दिया है उसकी महत्ता कितनी है और हमें ऐसे स्वरूप को प्रदान करने के लिए ईश्वर का शुक्रिया अदा करना चाहिए ।। हमेशा अपनी समस्याओं को उनसे तुलना करें जो हमसे कई गुना समस्याओं से घिरे होतें है पर साहस नही खोतें... 🙏🙏🙏
लाल बहादुर शास्त्री
लेखक - महावीर अधिकारी
भाषा - हिन्दी
पृष्ठ - 125
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पुरुष...आसान नहीं है पुरुष होना..
पुरूषों पर दुःख का प्रभाव स्त्रियों से अधिक पड़ता है।
इसीलिए हार्ट अटैक से अधिकतर पुरुष ही मरते हैं
स्त्रियां दुःखी हो तो रो लिया करती हैं।
पुरुष दुःखी हो तो या तो क्रोध करता है या चुप हो जाता है। क्रोध करने से दुःख बढ़ता है, घटता नहीं। चुप होने से दुःख दबता है, मिटता नहीं। इसलिए रोना सीखें, आप मनुष्य है, पाषाण नहीं।
आजकल हर जगह equality की बातें होती हैं, तो आप भी कदम बढा़ए समाज में समानता लाने की ओर। पत्थर नहीं इंसान बनें। रोना कमजोरी नहीं कमजोरी की परिभाषा बदलें...!! ऐसी परिस्थिति में किसी ऐसे जगह चले जाइए जहां आपको सुनने वाला देखने वाला कोई न हो फिर वहां जाके जीभर के रो लीजिए सुकून मिलेगा अच्छा लगेगा... जब आप अपने अंदर दुखों से भर जाएंगे तो चीखिए चिल्लाइए वरना मर जाएंगे...आपके रोने से आपका पुरुषत्व कम नहीं होगा ...!🙏🏻
थोड़ी राहत मिली।
महिला के पास जाकर खड़ी हो गई, उन्हें देखकर वो लड़के भी धीरे धीरे पीछे वापस हो लिए।
" क्या हुआ बेटा ये तुम्हें तंग कर रहे थे क्या ?" उन आंटी ने कहा।
" आपको हिंदी आती है ?" लड़कियों ने एकस्वर में पूछा, भाषा जोड़ने का इतना बेहतर माध्यम है की इंसान अपनी जुबान सुनकर दो मिनट पहले हुई तकलीफ भी भूल जाता है।
" हां, हम रांची से है रीता तिर्की।" आंटी ने अपना नाम बताया, लड़कियां खुश हुईं की कोई तो है जो हमारी भाषा बोलता है।
फिर कुछ बातों के बाद आंटी ने दोनों को उनके घर तक छोड़ देने की बात की और छोड़ आई। घर के नीचे पहुंच जब वो जाने लगी तो लड़कियों ने उन्हें ऊपर आने का न्योता दिया मगर कभी और आऊंगी कहकर वो लौटने लगीं। अचानक लड़कियों को लगा की वो दिखते दिखते अदृश्य सी हो गई, मगर अंधेरा ज्यादा है शायद अगले गली में मुड़ गई होंगी ये सोच जाने दिया।
आज खुशी थी किसी ऐसे से मिलकर जिसका नाम छोड़कर और कुछ भी नही पता सिवाए इसके की वो भी वही जुबान बोलता है जो हम, ये खुशी इतनी थी की ये बात फोन पर पिताजी, भैया और एकाध और पुराने दोस्तों को भी बताई गई।
इस घटना के बाद एक चीज हुई, अब आंटी कभी भी उनके घर आने जाने लगीं , कभी कभी तो बाजार का या फिर खुद कुछ अच्छा बनाकर लाती थीं। एक ऐसी दोस्ती जिसमें उम्र का इतना फासला हो वो बेहद खुशनुमा होती है, जहां आंटी अपने जवानी के दिनों की बात बताती थीं या कभी अपने हसबैंड के और बेटे के किस्से वहीं लड़कियां अपनी अपनी।
अब तो अक्सर पापा आते तो किस्सा अपनी जिंदगी से ज्यादा यही होता था की आंटी आईं थी आज ये खिलाया आज वो खिलाया या फिर ये कहा। राजेश अक्सर कहते की कभी हमें भी मिलाओ आंटी से मगर शायद किस्मत ऐसी थी वो आंटी तब कभी नहीं आती जब पापा आए हुए हों।
एग्जाम आ गए थे और चेन्नई के हिसाब से ठंड भी हालांकि जिसका बचपन उत्तरी भारत में कटा हो उसके लिए चेन्नई की ठंड बस किसी गुलाबी बसंत सी ही थी। मगर एक शाम दोनों अपने अपने कमरे में पढ़ रही थी कि भावना को लगा की आंटी दर्शना के कमरे से कुछ बोल रहीं हैं। वो उठकर गई, देखा तो सच में आंटी थी। नॉर्मल प्रणाम वगेरह के बाद भावना ने कहा की मैं चाय बनाकर लाती हूं। वो किचन में गई। मगर उसे चायपत्ती का डिब्बा नही मिल रहा था उसने दर्शना को आवाज लगाई।
दर्शना आई , डिब्बा उसने ही रखा था उसे ही मिला मगर आज वो थोड़ी उखड़ी सी हुई थी, " यार एकदम कुछ भी नही पढ़ा ऊपर से तुमने आंटी को बुला लिया।"
" मैंने कब बुलाया, वो तुमसे बात कर रहीं थी तुम्हारे रूम सुनकर मैं आई ।" भावना ने प्रतिउत्तर में अपना पक्ष रखा।
" एक बात बता जब आंटी तुम्हारे साथ नही थी और मैंने दरवाजा खोला नही तो आंटी आईं कहां से ?" दर्शना के मन में अचानक से ये सवाल आया क्योंकि उसे अच्छे से याद था की एग्जाम की तैयारी के चलते आज वो दोनों कहीं बाहर गईं ही नही थी और स्कूल से आकर उसने दरवाजा अंदर से बंद किया था।
" हां, सही में।" भावना ने कहा, चाय बन चुकी थी मगर ये ऐसा सवाल था जिसका जवाब चाहिए था तो बिना चाय छाने वो दोनो दर्शना के कमरे में भागी, मगर आंटी वहां नहीं थी, वहां क्या आंटी पूरे फ्लैट में कहीं नहीं थीं और दरवाजा वैसा ही अंदर से बंद था जैसा वो रोज स्कूल से लौटकर किया करतीं थीं।
क्रमशः
कर्ज की कहानी
शादी करने बाद, जब मैं गर्भवती हुई, तो सातवें महीने में अपने मायके राजस्थान जा रही थी। मेरे पति शहर से बाहर थे, और उन्होंने एक रिश्तेदार से कहा था कि मुझे स्टेशन पर छोड़ आएं। लेकिन ट्रेन के देर से आने के कारण वह रिश्तेदार मुझे प्लेटफॉर्म पर सामान के साथ बैठाकर चला गया।
ट्रेन मुझे पाँचवे प्लेटफार्म से पकड़नी थी, और गर्भ के साथ सामान का बोझ संभालना मेरे लिए मुश्किल हो रहा था। तभी मैंने एक दुबले-पतले बुजुर्ग कुली को देखा। उसकी आँखों में एक मजबूरी और पेट पालने की विवशता साफ झलक रही थी। मैंने उससे पंद्रह रुपये में सौदा कर लिया और ट्रेन का इंतजार करने लगी।
डेढ़ घंटे बाद जब ट्रेन आने की घोषणा हुई, तो वह कुली कहीं नजर नहीं आया। रात के साढ़े बारह बज चुके थे, और मेरा मन घबराने लगा था। अचानक मैंने देखा, वह बुजुर्ग कुली दूर से भागता हुआ आ रहा था। उसने मेरे सामान को जल्दी-जल्दी उठाया, लेकिन तभी घोषणा हुई कि ट्रेन का प्लेटफार्म बदलकर नौ नंबर हो गया है। हमें पुल पार करना पड़ा, और बुजुर्ग कुली की सांस फूलने लगी थी, लेकिन उसने हार नहीं मानी।
जब हम स्लीपर कोच तक पहुंचे, तो ट्रेन रेंगने लगी थी। कुली ने जल्दी से मेरा सामान ट्रेन में चढ़ाया। मैंने हड़बड़ाकर दस और पाँच रुपये निकाले, पर तब तक उसकी हथेली मुझसे दूर जा चुकी थी। ट्रेन तेज हो रही थी, और मैंने उसकी खाली हथेली को नमस्ते करते हुए देखा। उस पल में उसकी गरीबी, मेहनत, और निःस्वार्थ सहयोग मेरी आँखों के सामने कौंध गए।
डिलीवरी के बाद मैंने कई बार उस बुजुर्ग कुली को स्टेशन पर खोजने की कोशिश की, पर वो फिर कभी नहीं मिला। अब मैं हर जगह दान करती हूं, मगर उस रात जो कर्ज उसकी मेहनत भरी हथेली ने दिया था, वह आज तक नहीं चुका पाई। सचमुच, कुछ कर्ज ऐसे होते हैं, जो कभी उतारे नहीं जा सकते।
उसने कहा, "बैठने नहीं आया वकील साहब, मिठाई खिलाने आया हूं
ये मेरा बेटा, बैंगलोर रहता है, कल आया गांव
अब तीन मंजिला मकान बना लिया है वहां
थोड़ी थोड़ी कर के 10–12 एकड़ खेती खरीद ली अब"
मै उसके चेहरे से टपकते हुए खुशी को महसूस कर रहा था
"वकील साहब, आपने मुझे कहा, कोर्ट कचहरी के चक्कर में मत लगो
गांव में सब लोग मुझे भाई के खिलाफ उकसा रहे थे
मैंने उनकी नहीं, आपकी बात सुन ली मैंने अपने बच्चों को लाइन से लगाया और भाई के पीछे अपनी ज़िंदगी बरबाद नहीं होने दी
कल भाई भी आ कर पांव छू के गया
माफ कर दे मुझे ऐसा कह कर गया है"
मेरे हाथ का पेडा़ हाथ में ही रह गया
मेरे आंसू टपक ही गए आखिर. .. .
गुस्से को योग्य दिशा में मोड़ा जाए तो पछताने की जरूरत नहीं पड़ती कभी
बहुत ही अच्छा है पर कोई समझे और अमल करे तब सफल हो......
🙏
राजाः “मोची जूती तो तुम बेच रहे थे इस ब्राह्मण ने जूती कब खरीदी और बेची ?”
मोची ने कहाः “राजन् मैंने मन में ही संकल्प कर लिया था कि जूती की जो रकम आयेगी वह इन ब्राह्मणदेव की होगी जब रकम इन की है तो मैं इन रूपयों को कैसे ले सकता हूँ ? इसीलिए मैं इन्हें ले आया हूँ न जाने किसी जन्म में मैंने दान करने का संकल्प किया होगा और मुकर गया होऊँगा तभी तो यह मोची का चोला मिला है अब भी यदि मुकर जाऊँ तो तो न जाने मेरी कैसी दुर्गति हो ? इसीलिए राजन् ये रूपये मेरे नहीं हुए मेरे मन में आ गया था कि इस जूती की रकम इनके लिए होगी फिर पाँच रूपये मिलते तो भी इनके होते और एक हजार मिल रहे हैं तो भी इनके ही हैं हो सकता है मेरा मन बेईमान हो जाता इसीलिए मैंने रूपयों को नहीं छुआ और असली अधिकारी को ले आया”
राजा ने आश्चर्य चकित होकर ब्राह्मण से पूछाः “ब्राह्मण मोची से तुम्हारा परिचय कैसे हुआ ?”
ब्राह्मण ने सारी आप बीती सुनाते हुए सिद्ध पुरुष के चश्मे वाली आप के राज्य में पशुओं के दीदार तो बहुत हुए लेकिन मनुष्यत्व का विकास इस मोची में ही नज़र आया”
राजा ने कौतूहलवश कहाः “लाओ, वह चश्मा जरा हम भी देखें”
राजा ने चश्मा लगाकर देखा तो दरबारी वगैरह में उसे भी कोई सियार दिखा तो कोई हिरण, कोई बंदर दिखा तो कोई रीछ राजा दंग रह गया कि यह तो पशुओं का दरबार भरा पड़ा है उसे हुआ कि ये सब पशु हैं तो मैं कौन हूँ ? उस ने आईना मँगवाया एवं उसमें अपना चेहरा देखा तो शेर उस के आश्चर्य की सीमा न रही ‘ ये सारे जंगल के प्राणी और मैं जंगल का राजा शेर यहाँ भी इनका राजा बना बैठा हूँ ’ राजा ने कहाः “ब्राह्मणदेव योगी महाराज का यह चश्मा तो बड़ा गज़ब का है वे योगी महाराज कहाँ होंगे ?”
ब्राह्मणः “वे तो कहीं चले गये ऐसे महापुरुष कभी-कभी ही और बड़ी कठिनाई से मिलते हैं”
श्रद्धावान ही ऐसे महापुरुषों से लाभ उठा पाते हैं, बाकी तो जो मनुष्य के चोले में पशु के समान हैं वे महापुरुष के निकट रहकर भी अपनी पशुता नहीं छोड़ पाते
ब्राह्मण ने आगे कहाः ‘राजन् अब तो बिना चश्मे के भी मनुष्यत्व को परखा जा सकता है व्यक्ति के व्यवहार को देखकर ही पता चल सकता है कि वह किस योनि से आया है एक मेहनत करे और दूसरा उस पर हक जताये तो समझ लो कि वह सर्प योनि से आया है क्योंकि बिल खोदने की मेहनत तो चूहा करता है लेकिन सर्प उस को मारकर बल पर अपना अधिकार जमा बैठता है”
अब इस चश्मे के बिना भी विवेक का चश्मा काम कर सकता है और दूसरे को देखें उसकी अपेक्षा स्वयं को ही देखें कि हम सर्पयोनि से आये हैं कि शेर की योनि से आये हैं या सचमुच में हम में मनुष्यता खिली है ? यदि पशुता बाकी है तो वह भी मनुष्यता में बदल सकती है कैसे ?
तुलसीदाज जी ने कहा हैः
बिगड़ी जनम अनेक की सुधरे अब और आजु
तुलसी होई राम को रामभजि तजि कुसमाजु
कुसंस्कारों को छोड़ दें… बस अपने कुसंस्कार आप निकालेंगे तो ही निकलेंगे अपने भीतर छिपे हुए पशुत्व को आप निकालेंगे तो ही निकलेगा यह भी तब संभव होगा जब आप अपने समय की कीमत समझेंगे मनुष्यत्व आये तो एक-एक पल को सार्थक किये बिना आप चुप नहीं बैठेंगे पशु अपना समय ऐसे ही गँवाता है पशुत्व के संस्कार पड़े रहेंगे तो आपका समय बिगड़ेगा अतः पशुत्व के संस्कारों को आप निकालिये एवं मनुष्यत्व के संस्कारों को उभारिये फिर सिद्धपुरुष का चश्मा नहीं, वरन् अपने विवेक का चश्मा ही कार्य करेगा और इस विवेक के चश्मे को पाने की युक्ति मिलती है सत्संग से
मानवता से जो पूर्ण हो, वही मनुष्य कहलाता है बिन मानवता के मानव भी, पशुतुल्य रह जाता है।
जीवन में बिल्कुल अकेला हो गया हूं। कभी कभी बहुत मन होता है किसी से बात करने का लेकिन फिर महसूस होता हैं कि अपने पास तो वैसा कोई है ही नहीं जिससे खुलकर बातें कर सकूं, अपनी सारी बातें बता सकूं और वो मुझे आंकने के जगह मुझे समझने की कोशिश करे लेकिन ऐसे लोग मिलते ही कहां है..!
खैर...
हम दुःख की आंच पर पके हुए लोग हैं। कोई भी दुःख इतना बड़ा ना हुआ कि खत्म कर दे हमें। हम तो बस धीमे-धीमे, समय-बेसमय मिलती पीड़ाओं से छलनी होते गये और पकते चले गये। इतने कठोर हो गये हैं अब कि कोई चोट करता है तो उल्टा उसे ही चोट लग जाती .. सारी पीड़ा, सारा गुस्सा अन्दर कहीं धंसा कर स्थिर हो गये हैं। अब कोई भी संवेदना असर नहीं करती। जब कोई सहलाता है प्यार से, बाहरी देह को तब भी हम कठोर हुए चुपचाप मुस्कुरा देते हैं ..
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मेरा #गांव अब उदास रहता है.. ✍️
लड़के जितने भी थे मेरे गांव में।
जो बैठते थे दोपहर को आम की छांव में।
बड़ी रौनक हुआ करती थी जिनसे घर में
वो सब के सब चले गए शहर में।
ऐसा नही कि रहने को मकान नही था।
बस यहां रोटी का इंतजाम नहीं था।
हास परिहास का आम तौर पर उपवास रहता है।
मेरा #गांव अब उदास रहता है।।
बाबू जी ठंड में सिकुड़े और पसीने मे नहाए थे।
तब जाकर तीन कमरे किसी तरह बनवाए थे।
अब तीनों कमरे खाली हैं मैदान बेजान है।
छतें अकेली हैं गलियां वीरान हैं।।
मां का शरीर भी अब घुटनों पर भारी है।
पिता को हार्ट और डाईविटीज की बीमारी है।
अपने ही घर में मां बाप का वनवास रहता है।
मेरा #गांव अब उदास रहता है।।
छत से बतियाते पंखे, दीवारें और जाले हैं।
कुछ मकानों पर तो कई वर्षों से तालें हैं।।
बेटियों को ब्याह दिया गया ससुराल चली गई।
दीवाली की छुरछुरी होली का गुलाल चली गई।
मोहल्ले मे जाओ जरा झांको कपाट पर।
बैठे मिलेंगे अकेले बाबू जी, किसी कुर्सी किसी खाट पर।।
सावन के झूले उतर गए भादों भी निराश रहता है।
मेरा #गांव अब उदास रहता है।।
कबड्डी वालीबाल अंताक्षरी, सब वक्त की तह में दब गए।
हमारे गांव के लड़के कमाने अहमदाबाद जब गए।।
अब रामलीला दुर्गापूजा की वो बात नही रही।
गर्मियों मे छतों पर हलचल की रात नही रही।।
दालान में बैठे बुजुर्ग भी स्वर्ग सिधार गए।
जो जीत गए थे मुश्किलों से वो बीमारियों से हार गए।।
ये अंधी दौड़ तरक्कियों की गांव सूना कर गई।
खालीपन का घाव अब तो दोगुना कर गई।
जाने वाले चले गए, कहां कोई अनायास रहता है।
मेरा #गांव अब उदास रहता है।।
#गांव
आज बाबू जी की तेरहवीं है।
नाते-रिश्तेदार इकट्ठे हो रहे हैं पर उनकी बातचीत, हँसी मज़ाक देख-सुनकर उसका मन दुखी हो रहा है.."कोई किसी के दुख में भी कैसे हँसी मज़ाक कर सकता है? पर किससे कहे,किसे मना करे" इसीलिये वह बाबूजी की तस्वीर के सामने जाकर आँख बंद करके चुपचाप बैठ गई।
अभी बीस दिन पहले ही की तो बात है.. वह रक्षाबंधन पर मायके आई थी। तब बाबूजी कितने कमजोर लग रहे थे। सबके बीच होने के बावजूद उसे लगा कि जैसे वह कुछ कहना चाहते हों फिर मौका मिलते ही फुसफुसा कर धीरे से बोले भी थे .."बिट्टू... रमा तुम्हारी भाभी हमको भूखा मार देगी। आधा पेट ही खाना देती है, दोबारा माँगने पर कहती है कि परेशान ना करो ,जितना देते हैं उतना ही खा लिया करो। ज़्यादा खाओगे तो नुकसान करेगा फिर परेशान हम लोगों को करोगे " कहते-कहते उनका गला भर आया।
" पर कभी आपने बताया क्यों नही बाबूजी?" सुनकर सन्न रह गई वह और तुरंत अपने साथ लाई मिठाई से चार पीस बर्फी के निकाल कर बाबूजी को दे दिये। वह लगभग झपट पड़े..और जल्दी-जल्दी खाने लगे.. ऐसा लग रहा था मानों बरसों से उन्होंने कुछ खाया ही ना हो।
"अरे,अरे,,,,इतना मत खिलाओ बिट्टू। तुम तो चली जाओगी पर अभी पेट ख़राब हो जायेगा तो हमको ही भुगतना पड़ेगा" तभी भाभी ने आकर ताना दिया।
तब मन मसोस कर वह रह गई थी और चलते-चलते दबे शब्दों में उसने भाभी से कुछ दिनों के लिए बाबूजी को अपने साथ ले जाने की बात कही तो भाभी तो कुछ न बोलीं पर भइया भड़क गये.."सारी उम्र किया है..तो अब भी कर लेंगें। वैसे तूने ये बात क्यों कही? कुछ कहा क्या बाबूजी ने ?"
"नही भइया, नही.." वह हड़बड़ा गई और बाकी के शब्द उसके मन में ही रह गए। बड़े भाई से जवाब-सवाल कर भी कैसे सकती थी ? बचपन से ही बेटियों को भाइयों से दबकर रहने का संस्कार जो कूट कूट कर भरा जाता है..पर जाते-जाते उसने एक बार पलटकर देखा तो उसके जन्मदाता तरसी निगाहों से उसे ही देख रहे थे। तब क्या पता था कि ये उनकी आख़िरी मुलाकात है।
इसके पाँच दिन बाद ही खब़र मिली कि "बाबूजी की हालत ठीक नहीं है,वो अस्पताल में हैं ..आकर मिल जाओ" सुनकर छटपटा उठी वह और दूसरे दिन ही उनके पास पहुँच गई।
बाबूजी अर्धमूर्छित से थे,उसको पहचान भी नही पाये! वह उनके कान में फुसफुसाई "बाबूजी, देखिये मैं आपकी बिट्टू"
कई बार आवाज़ देने पर बामुश्किल उनकी आँखें हिली.. "बि..ट्टू.. भू..ख.." उनकी अस्फुट सी आवाज़ सुनकर वह यूँ खुश हो गई मानो बरसों के प्यासे को जी भर के पानी पीने को मिल गया हो ..."बताइये,क्या खाना है बाबूजी..?" पूछते हुए उसकी आँखे भर आईं।
"आ,,लू टमाटर की स,,ब्ज़ी रो,,टी .." लड़खड़ाती आवाज़ में उनके मुँह से बोल निकले। जल्दी से उसने इंतज़ाम भी किया..पर देर हो चुकी थी! बाबूजी बगैर खाये पिये,भूखे ही इस सँसार से चले गये।
"बिट्टू,,बिट्टू ,,,,चलो,खाना खा लो" अचानक भइया की आवाज़ सुनकर वह चौंक पड़ी।
"खाना?" वह धीरे से बोली "भूख नही है भइया"
बिट्टू थोड़ा सा खा लो भइया ने फिर कहा वह कुछ न बोली !
चुपचाप उठकर घरबालों वाले बिछे आसन पर बैठ गई। थाली में तरह-तरह के पकवान परोसे जा रहे थे। उसकी आँखों से आँसू बह निकले! कानों में बाबूजी के आख़िरी शब्द गूँज रहे थे..."आलू टमाटर की सब्जी,रोटी 🥺🥺🥺
इस मार्मिक दास्तान को खुद भी पढ़िए और अपने बच्चों को भी पढ़ाइए ताकि कभी भी पश्चाताप न करना पड़े।
कल रात की एक घटना ने मेरी जिंदगी के कई पहलुओं को झकझोर कर रख दिया। यह एक ऐसी घटना थी जिसने न सिर्फ मेरे दिल को गहराई से छुआ, बल्कि मुझे यह एहसास दिलाया कि हमारे रिश्तों की अहमियत क्या होती है, खासकर उन रिश्तों की, जो हमें जीवन में सबसे ज्यादा संबल और सुरक्षा प्रदान करते हैं।
करीब 7 बजे का समय था, जब मेरे मोबाइल पर अचानक एक कॉल आई। फोन उठाते ही दूसरी ओर से किसी के रोने की आवाज सुनाई दी। मैं तुरंत सतर्क हो गया और शांत कराने की कोशिश करते हुए पूछा, "भाभीजी, आखिर हुआ क्या है?"
भाभीजी की आवाज में घबराहट थी, उन्होंने बस यही कहा, "आप कहाँ हैं? और कितनी देर में यहाँ आ सकते हैं?"
मैंने उन्हें बार-बार पूछा, "आपको क्या परेशानी है? भाई साहब कहाँ हैं? माताजी कहाँ हैं?" लेकिन उधर से बार-बार बस यही जवाब मिलता, "आप जल्दी से आ जाइए।"
आवाज में घबराहट और असहायता थी। मैंने तुरंत जाने का निर्णय लिया, लेकिन एक घंटा लगने का आश्वासन देकर वहां पहुंचा।
जब मैं उनके घर पहुँचा, तो देखा कि मेरे मित्र, जो कि एक जज हैं, अपने घर के एक कोने में चुपचाप बैठे हुए हैं। भाभीजी रो-रोकर बेहाल थीं, उनका 12 साल का बेटा भी बेहद परेशान नजर आ रहा था, और 9 साल की बेटी के चेहरे पर चिंता के बादल छाए हुए थे।
मैंने तुरंत भाई साहब से पूछा, "आखिर क्या बात है?" लेकिन उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया।
तभी भाभीजी ने सामने कुछ कागजात रखे और रोते हुए कहा, "देखिए, ये तलाक के पेपर हैं। ये कोर्ट से तैयार करवा के लाए हैं और मुझे तलाक देना चाहते हैं।"
मैंने हैरानी से पूछा, "यह कैसे हो सकता है? इतनी अच्छी फैमिली है। दो बच्चे हैं, सब कुछ सेटल्ड है। यह मजाक तो नहीं?"
लेकिन जब मैंने बच्चों से उनकी दादी के बारे में पूछा, तो बच्चों ने बताया कि पापा ने उन्हें तीन दिन पहले नोएडा के वृद्धाश्रम में शिफ्ट कर दिया है।
मैंने तुरंत स्थिति को समझने की कोशिश की और भाई साहब से बात करने का प्रयास किया। मैंने नौकर से कहा, "मुझे और भाई साहब को चाय पिलाओ।"
चाय आई, लेकिन भाई साहब ने चाय पीने से इनकार कर दिया। कुछ ही देर में वे मासूम बच्चे की तरह फूट-फूटकर रोने लगे और बोले, "मैंने तीन दिन से कुछ भी नहीं खाया है। मैं अपनी 61 साल की माँ को कुछ लोगों के हवाले करके आया हूँ।"
उन्होंने रुंधे हुए गले से बताया कि पिछले साल से उनके घर में माँ के लिए इतनी मुसीबतें हो गई थीं कि भाभीजी ने साफ कह दिया था कि वे उनकी देखभाल नहीं कर सकतीं। बच्चे भी उनसे बात नहीं करते थे। नौकर तक अपनी मनमानी करने लगे थे। माँ रोज़ मेरे कोर्ट से लौटने के बाद रोती थी।
उन्होंने बताया कि एक दिन माँ ने कहा, "बेटा, तू मुझे ओल्ड एज होम में शिफ्ट कर दे।" मैंने बहुत कोशिशें कीं, पूरी फैमिली को समझाने की, लेकिन कोई माँ से सीधे मुँह बात नहीं करता था।
भाई साहब ने दर्द भरे लहजे में बताया, "जब मैं 2 साल का था तब पापा की मृत्यु हो गई थी। माँ ने दूसरों के घरों में काम करके मुझे पढ़ाया और इस काबिल बनाया कि आज मैं जज हूँ। लोग बताते हैं कि माँ कभी दूसरों के घरों में काम करते वक्त भी मुझे अकेला नहीं छोड़ती थीं। उस माँ को मैं ओल्ड ऐज होम में शिफ्ट करके आया हूँ। पिछले तीन दिनों से मैं अपनी माँ के एक-एक दुःख को याद करके तड़प रहा हूँ, जो उसने केवल मेरे लिए उठाए थे।"
उन्होंने और भी बहुत कुछ बताया, जिसमें माँ का संघर्ष, उसका त्याग और उसकी असीमित ममता शामिल थी।
भाई साहब की बातों ने मुझे गहराई से झकझोर दिया। वे लगातार रो रहे थे और बार-बार कह रहे थे, "जब ऐसी माँ के हम नहीं हो सके तो हम अपने बीवी और बच्चों के क्या होंगे? हम जिनके शरीर के टुकड़े हैं, आज हम उनको ऐसे लोगों के हवाले कर आए, जो उनकी आदत, उनकी बीमारी, उनके बारे में कुछ भी नहीं जानते।"
रात के 12:30 बज गए थे, और मैं भाभीजी के चेहरे पर प्रायश्चित्त और ग्लानि के भाव देख सकता था। मैंने ड्राईवर से कहा, "हम लोग अभी नोएडा जाएंगे।"
हम सभी लोग नोएडा के वृद्धाश्रम पहुंचे। बहुत ज़्यादा रिक्वेस्ट करने पर गेट खोला गया। भाई साहब ने गेटकीपर के पैर पकड़ लिए और कहा, "मेरी माँ है, मैं उसे लेने आया हूँ।"
गेटकीपर ने पूछा, "आप क्या करते हैं साहब?"
भाई साहब ने जवाब दिया, "मैं जज हूँ।"
गेटकीपर ने कहा, "जहाँ सारे सबूत सामने हैं तब तो आप अपनी माँ के साथ न्याय नहीं कर पाए, औरों के साथ क्या न्याय करते होंगे साहब?"
यह सुनकर हमारे दिल में और भी दर्द भर गया। गेटकीपर अंदर गया और एक महिला वार्डन आईं। उन्होंने बड़े कातर शब्दों में कहा, "रात के 2 बजे आप लोग माँ को ले जाकर कहीं मार दें, तो मैं अपने ईश्वर को क्या जवाब दूंगी?"
[🇮🇳]वतन पर जो फिदा हो, अमर वो हर नौजवान होगा,
[🇮🇳]रहेगी जब तक दुनिया ये, अफ़साना उसका बयां होगा।
🟠यह बात हवाओं को भी बताए रखना,
⚪रोशनी होगी चिरागों को जलाए रखना,
🟢लहू देकर जिसकी हिफाजत वीर जवानों ने की,
🟠ऐसे तिरंगे को सदा दिल में बसाए रखना।
⚪आओ इस स्वतंत्रता दिवस पर शहीदों के बलिदान को याद करें,
🟢देश की एकता और अखंडता के लिए अपने कर्तव्यों का पालन करें ♥️
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🧡꯭🅗꯭𝗮𝗽꯭𝗽𝘆꯭🤍꯭🅘꯭𝗻꯭𝗱꯭𝗲𝗽꯭𝗲𝗻꯭𝗱𝗲꯭𝗻꯭𝗰𝗲꯭💚꯭🅓꯭𝗮꯭𝘆꯭♥️
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उधर बुआ कमरे में पुरानी फटी चादर बिछे खटिया पर अपने भैया के पास बैठी थीं....
बुआ जी का बेटा श्याम दोड़ कर फ़ूफा जी को बुला लाया था.
राखी बांधने का मुहूर्त शाम सात बजे तक का था.मम्मी अपनी ननद को लेकर मॉल चली गयी थी सबके लिए नए ड्रेसेस खरीदने और बुआ जी के घर के लिए किराने का सामान लेने के लिए....
शाम होते होते पूरे घर का हुलिया बदल गया था
नए पर्दे, बिस्तर पर नई चादर, रंग बिरंगे डोर मेट, और सारा परिवार नए ड्रेसेस पहनकर जंच रहा था.
न जाने कितने सालों बाद आज जया बुआ की रसोई का भंडार घर लबालब भरा हुआ था....
धीरे धीरे एक आत्म विश्वास सा लौटता दिख रहा था बुआ के चेहरे पर....
पर सच तो ये था कि उसे अभी भी सब कुछ स्वप्न सा लग रहा था....
बुआ जी ने थाली में राखियाँ सज़ा ली थी
मिठाई का डब्बा रख लिया था
जैसे ही पापा को तिलक करने लगी पापा ने बुआ को रुकने को कहा.
सभी आश्चर्यचकित थे...
" दस मिनट रुक जाओ तुम्हारी दूसरी बहनें भी बस पहुँचने वाली है. "
पापा ने मुस्कुराते हुए कहा तो सभी पापा को देखते रह गए....
तभी बाहर दरवाजे पर गाड़ियां के हॉर्न की आवाज सुनकर बुआ ,मम्मी और फ़ूफ़ा जी दोड़ कर बाहर आए तो तीनों बुआ का पूरा परिवार सामने था....
जया बुआ का घर मेहमानों से खचाखच भर गया था.
महराजगंज वाली नीलम बुआ बताने लगी कि कुछ समय पहले उन्होंने पापा को कहा था कि क्यों न सब मिलकर चारो धाम की यात्रा पर निकलते है...
बस पापा ने उस दिन तीनों बहनो को फोन किया कि अब चार धाम की यात्रा का समय आ गया है..
पापा की बात पर तीनों बुआ सहमत थी और सबने तय किया था कि इस बार जया के घर सब जमा होंगे और थोड़े थोड़े पैसे मिलाकर उसकी सहायता करेंगे.
जया बुआ तो बस एकटक अपनी बहनों और भाई के परिवार को देखे जा रहीं थीं....
कितना बड़ा सरप्राइस दिया था आज सबने उसे...
सारी बहनो से वो गले मिलती जा रहीं थीं...
सबने पापा को राखी बांधी....
ऐसा रक्षाबन्धन शायद पहली बार था सबके लिए...
रात एक बड़े रेस्त्रां में हम सभी ने डिनर किया....
फिर गप्पे करते जाने कब काफी रात हो चुकी थी....
अभी भी जया बुआ ज्यादा बोल नहीं रहीं थीं.
वो तो बस बीच बीच में छलक आते अपने आंसू पोंछ लेती थी.
बीच आंगन में ही सब चादर बिछा कर लेट गए थे...
जया बुआ पापा से किसी छोटी बच्ची की तरह चिपकी हुई थी...
मानो इस प्यार और दुलार का उसे वर्षों से इन्तेज़ार था.
बातें करते करते अचानक पापा को बुआ का शरीर एकदम ठंडा सा लगा तो पापा घबरा गए थे...
सारे लोग जाग गए पर जया बुआ हमेशा के लिए सो गयी थी....
पापा की गोद में एक बच्ची की तरह लेटे लेटे वो विदा हो चुकी ..
पता नही कितने दिनों से बीमार थीं....
और आज तक किसी से कही भी नही थीं...
आज सबसे मिलने का ही आशा लिये जिन्दा थीं शायद...!!😥😥😥😥😩
@लक्ष्मीकांत पांडेय जी की कलम से 🙏🙏