।॥राम॥
ऑनलाइन सत्संग सूचना
वि.सं. २०८१ कार्तिक कृ० ०८ गुरु 24 अक्टूबर 24
प्रात: 4:30 गीता-पाठ
प्रातः 5 प्रार्थना प्रवचन व सत्संग- संवाद
(गीता १३/२३-३४)
कामना का सर्वथा त्याग
(श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदास जी महाराज 04.11.2004 प्रातः5 गीताभवन ऋषिकेश)
प्रार्थना प्रवचन व सत्संग-संवाद
गीता प्रबोधनी अर्थ सहित पाठ
गीता- साधक- संजीवनी
दोपहर 3 गीता-अभ्यास, रामायण
रात्रि 7 गीता-साधक-संजीवनी
हार्दिक निवेदन है कि हम सभी मिलकर लाभ लेवें
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हमारी रोज वाली जूम मीटिंग में 100 लोगों की लिमिट है अगर आप जूम मीटिंग नहीं जुड़ पाते हैं तो इस नई आईडी में जुड़ सकते हैं ।
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राम ! राम !! राम !!! राम !!!!
संसार के साथ हमारा संबंध कृत्रिम है । परमात्मा के साथ हमारा संबंध सहज है । अतः सहजावस्था स्वाभाविक है । संसार की निवृत्ति और परमात्मा की प्राप्ति - दोनों ही सहज हैं ।
*परम श्रद्धेय स्वामी जी श्री रामसुखदास जी महाराज जी द्वारा विरचित ग्रंथ गीता प्रकाशन गोरखपुर से प्रकाशित स्वाति की बूंदें पृष्ठ संख्या ३५*
*राम ! राम !! राम !!! राम !!!!*
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*ॐ श्री परमात्मने नमः*
*_प्रश्न‒स्वामीजी, आपने कहा कि भगवान् तो बँधे हुए हैं, पर भक्त स्वतन्त्र हैं ! यह कैसे ?_*
*स्वामीजी‒* मान लो, एक राजकुमार कैदियोंको देखने जेल गया । वहाँ उसने कुछ कैदियोंकी बुरी दशा देखी तो अधिकारियोंसे कहकर उनको छुड़वा दिया । राजाको पता लगा तो उसने राजकुमारसे पूछा कि तुमने उन कैदियोंको क्यों छुड़वाया ? राजकुमारने कहा कि उनकी दशा देखकर मुझे दया आ गयी, इसलिये छुड़वा दिया । अगर आप चाहते हों तो उनको पुनः कैद करवा दो ! राजाने कहा कि छोड़ो, जाने दो !
उपर्युक्त दृष्टान्तमें ‘भक्त’ राजकुमार है और ‘भगवान्’ राजा । यमराज आदि देवता नौकर हैं, वेतनभोगी अधिकारी हैं । राजकुमारके पास शक्ति तो राजाकी ही है, अपनी नहीं । अगर वह राजकुमार न होता तो कैदियोंको कैसे छुडवाता ? ऐसे ही भक्तके पास शक्ति तो भगवान्की ही है ।
परन्तु यह बात प्रेमी भक्तोंकी है, आचार्योंकी, महापुरुषोंकी नहीं ! प्रेमी भक्त मस्त, मतवाले होते हैं । इसलिये वे दयामें आकर कुछ भी कर सकते हैं । वे उपकार करनेमें स्वतन्त्र होते हैं, उच्छृंखल होनेमें नहीं । उनका आचरण भगवान्के नियमोंके अनुकूल होता है । भगवान् भी अपने प्रेमी भक्तकी प्रार्थनापर जीवको माफ कर देते हैं, उसका उद्धार कर देते हैं । अगर कानून ही सार्थक हो तो फिर भगवान्की दया क्या हुई ? नियम तो बड़ोंपर ही लागू पड़ते हैं, छोटोंपर नहीं ।
भीष्मजीने भगवान्की प्रतिज्ञा तुड़वाकर उन्हें शस्त्र-ग्रहण करा दिया ! इसलिये भगवान् अर्जुनसे कहते हैं कि तू प्रतिज्ञा कर‒‘कौन्तेय प्रतिजानीहि’ (गीता ९ । ३१) । ब्राह्मणका बेटा भी जनेऊके बिना वेदपाठ नहीं कर सकता, पर ज्ञानदेवजीने भैंसेके मुखसे वेदका उच्चारण करा दिया ! तात्पर्य है कि भगवान्के प्रेमी भक्त मतवाले होते हैं, मनमें आये सो कर देते हैं, तो उनका कायदा भगवान् रखते हैं !
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*श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज*
_(‘रहस्यमयी वार्ता’ पुस्तकसे)_
*VISIT WEBSITE*
*www.swamiramsukhdasji.net*
*BLOG*
*http://satcharcha.blogspot.com*
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राम ! राम !! राम !!! राम !!!!
*गुरु के दिए मंत्र में शक्ति तभी आएगी, जब गुरु में शक्ति हो, वह जीवन्मुक्त हो ।*
*परम श्रद्धेय स्वामी जी श्री रामसुखदास जी महाराज जी द्वारा विरचित ग्रंथ गीता प्रकाशन गोरखपुर से प्रकाशित स्वाति की बूंदें पृष्ठ संख्या ३६*
*राम ! राम !! राम !!! राम !!!!*
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।॥राम॥
ऑनलाइन सत्संग सूचना
वि.सं. २०८१ कार्तिक कृ० ०३/०४ रवि 20 अक्टूबर 24
प्रात: 4:30 गीता-पाठ
प्रातः 5 प्रार्थना प्रवचन व सत्संग- संवाद
(गीता १२/०१-१०)
भगवान और भक्त के पास कुछ नहीं
(श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदास जी महाराज 31.10.2004 प्रातः5 गीताभवन ऋषिकेश)
प्रार्थना प्रवचन व सत्संग-संवाद
गीता प्रबोधनी अर्थ सहित पाठ
गीता- साधक- संजीवनी
दोपहर 3 गीता-अभ्यास, रामायण
रात्रि 7 गीता-साधक-संजीवनी
हार्दिक निवेदन है कि हम सभी मिलकर लाभ लेवें
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हमारी रोज वाली जूम मीटिंग में 100 लोगों की लिमिट है अगर आप जूम मीटिंग नहीं जुड़ पाते हैं तो इस नई आईडी में जुड़ सकते हैं ।
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राम ! राम !! राम !!! राम !!!!
श्रोता - आपने भी गुरु बनाया होगा ?
स्वामी जी - मैंने कभी किसी को गुरु बनाया ही नहीं । गुरु ने ही मुझे चेला बना लिया । चार वर्ष का बालक क्या करे ? मां ने चार वर्ष की अवस्था में मुझे संतो को दे दिया।
*परम श्रद्धेय स्वामी जी श्री रामसुखदास जी महाराज जी द्वारा विरचित ग्रंथ गीता प्रकाशन गोरखपुर से प्रकाशित स्वाति की बूंदें पृष्ठ संख्या ३५*
*राम ! राम !! राम !!! राम !!!!*
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