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Ram. Teachings and Sermons of Swami RamsukhdasJi. राम। स्वामी रामसुखदासजी के प्रवचन और सिद्धांत।

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स्वामी रामसुखदासजी Swami RamsukhdasJi

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राम ! राम !! राम !!! राम !!!!

*त्याग में अभिमान नहीं होता । अभिमान होता है तो वह त्याग नहीं है ।*

*परम श्रद्धेय स्वामी जी श्री रामसुखदास जी महाराज जी द्वारा विरचित ग्रंथ गीता प्रकाशन गोरखपुर से प्रकाशित स्वाति की बूंदें पृष्ठ संख्या ३२*

*राम ! राम !! राम !!! राम !!!!*
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https://youtu.be/mrkvb7wmsvw?si=L6REPEGx3g3Ja2oG

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*ॐ श्री परमात्मने नमः*
 
*_प्रश्‍न‒आपने कहा कि भक्‍तिमें एक प्रेमके सिवाय कुछ नहीं है, तो प्रेमके सिवाय कुछ नहीं या प्रेमास्पदके सिवाय कुछ नहीं ?_*
 
*स्वामीजी‒* प्रेम और प्रेमास्पदमें कोई भेद नहीं है । वहाँ न प्रेमी है, न प्रेमास्पद है, केवल प्रेम-ही-प्रेम है ! वहाँ प्रेमी-प्रेमास्पदका विभाग है ही नहीं कि कौन प्रेमी है, कौन प्रेमास्पद !
 
*_प्रश्‍न‒आप कहते हैं कि जीवका भगवान्‌में आकर्षण स्वाभाविक है, कैसे ?_*
 
*स्वामीजी‒* वास्तवमें मनुष्यका प्रेम भगवान्‌में ही है, पर भूलसे उसने संसारमें कर लिया । जैसे बालकका पहले माँमें आकर्षण होता है, पर विवाह होनेपर माँमें आकर्षण नहीं रहता, प्रत्युत स्‍त्रीमें आकर्षण हो जाता है, जबकि वह माँका अंश है, स्‍त्रीका नहीं । ऐसे ही भगवान्‌का अंश होनेके कारण जीवका भगवान्‌में स्वाभाविक आकर्षण है, पर उसने भगवान्‌को छोड़कर संसारमें आकर्षण कर लिया ! भगवान्‌को अपना न मानकर संसारमें अपनापन कर लिया ! भगवान्‌का आकर्षण स्वाभाविक है, संसारका आकर्षण कृत्रिम है ।
 
*_प्रश्‍न‒आप मुक्‍तिसे भी आगे प्रेमकी बात कहते हैं, परन्तु कोई साधक ऐसा भी कहते हैं कि जो बन्धनमें पड़ा है, दुःखी है, वह सबसे पहले यही चाहेगा कि मेरा बन्धन, दुःख कैसे छूटे ? बाकी बातें, प्रेम आदि वह क्यों चाहेगा ?_*
 
*स्वामीजी‒* वे अपनी दृष्‍टिसे ठीक कहते हैं; क्योंकि इससे आगे उनकी दृष्‍टि जाती ही नहीं । इसलिये दर्शनशास्‍त्रोंमें दुःखोंसे छूटनेकी बात ही मुख्य आयी है । परन्तु मेरे विचारसे मुक्‍तिकी भी इच्छा न रखकर भगवान्‌पर निर्भर हो जाना बढ़िया है ।
 
मनुष्य उतना ही चाहता है, जितना उसे दीखता है; परन्तु आगे अनन्त है ! वह ज्यों आगे बढ़ेगा, बढ़ता ही चला जायगा ! भगवान्‌ने कहा है‒‘ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम्’ (गीता ४ । ११) । जैसा हमारा भाव है, वैसा ही देखनेमें आता है । ‘यथा-तथा’ अपार, अनन्त है अर्थात् इसका अन्त नहीं है । अर्जुन शिक्षा चाहता था (शाधि मां॰) तो भगवान्‌ने उसे शिक्षा दी । अर्जुन पापोंसे छूटना चाहता था तो भगवान्‌ने कहा कि मैं तुझे सब पापोंसे मुक्‍त कर दूँगा‒‘अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि’ (गीता १८ । ६६), जबकि वास्तवमें शरणागतिका फल इतना (पापोंसे मुक्‍ति) ही नहीं है ! यदि अर्जुन घबराता नहीं तो न जाने कितना विराट्‌रूप देखता ! तात्पर्य है कि आगे बहुत विलक्षण ऐश्‍वर्य है । ब्रह्म भी उस ऐश्‍वर्यका अंश है !
 
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*श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज*
_(‘रहस्यमयी वार्ता’ पुस्तकसे)_
 
*VISIT WEBSITE*
 
*www.swamiramsukhdasji.net*
 
*BLOG*
 
*http://satcharcha.blogspot.com*
 
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https://youtu.be/G1lZSHkBXIs?si=nT5_QdgZpHuZjb8u

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*संतवाणी*

*श्रद्धेय स्वामीजी श्रीशरणानन्दजी महाराज*
_(‘प्रश्‍नोत्तरी-०२’ पुस्तकसे)_
 
*_प्रश्‍न‒परिस्थिति द्वारा सुख लेनेकी आसक्ति क्या है ?_*
 
*स्वामीजी‒* परिस्थितिमें और अपनेमें हमने जो एकता मान ली है, उस एकताकी सत्यता इतनी दृढ़ हो गई है कि हमारी सत्तासे परिस्थिति सत्ता पाकर हमपर ही शासन करने लगी है । परिस्थिति अपनी सत्तासे हमपर शासन नहीं करती, किन्तु सत्ता हमसे लेती है, चेतना हमसे लेती है और हमपर ही शासन करती है । यही कारण है परिस्थितियोंमें सुखकी आसक्ति होनेका ।
 
*_प्रश्‍न‒सत्य क्या है ?_*
 
*स्वामीजी‒* सत्य उसे नहीं कहते, जो किसीके न माननेसे अथवा किसीके वर्णन न करनेसे न रहे । सत्य तो उसे कहते हैं जो आप जानें तो सत्य, न जानें तो सत्य, मानें तो सत्य, न मानें तो सत्य और उसके सम्बन्धमें मौन रहें तो सत्य । अतः दुःखकी निवृत्तिके पश्चात् जो उपलब्ध होता है उसका नाम सत्य है ।
 
*_प्रश्‍न‒अचाह-पदकी प्राप्‍ति हमें कैसे हो ?_*
 
*स्वामीजी‒* अपने जाने हुए ज्ञानका आप अनादर न करें ।
 
*_प्रश्‍न‒सही करनेका अर्थ क्या है ?_*
 
*स्वामीजी‒* सही करनेका अर्थ है, जिस प्रवृत्तिसे जिनका सम्बन्ध है उनके अधिकारकी रक्षा । जैसे, हम वही बोलें जिससे सुननेवालेका हित तथा प्रसन्‍नता हो और अगर हम वैसा न बोल सकें तो बोलनेके रागसे रहित होकर मौन हो जायें ।
 
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राम ! राम !! राम !!! राम !!!!

भीतर में कोई आशा न रखना सत्संग है । आशा रखना असत् का संग है ।


*परम श्रद्धेय स्वामी जी श्री रामसुखदास जी महाराज जी द्वारा विरचित ग्रंथ गीता प्रकाशन गोरखपुर से प्रकाशित स्वाति की बूंदें पृष्ठ संख्या ३२*

*राम ! राम !! राम !!! राम !!!!*
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राम ! राम !! राम !!! राम !!!!

श्रोता - भगवान् में प्रेम कैसे हो ?

स्वामी जी - प्रेम के लिए भगवान् से प्रार्थना करो । असली नहीं तो नकली ही करो। नकल भी असल हो जाएगा । भगवान् के पीछे पड़ जाओ ।

*परम श्रद्धेय स्वामी जी श्री रामसुखदास जी महाराज जी द्वारा विरचित ग्रंथ गीता प्रकाशन गोरखपुर से प्रकाशित स्वाति की बूंदें पृष्ठ संख्या ३१*

*राम ! राम !! राम !!! राम !!!!*
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https://youtu.be/6Tjok8mVcSQ?si=UUzm_111nClba4QK

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राम ! राम !! राम !!! राम !!!!

*साधक की प्रसिद्धि होना बहुत बड़ा विघ्न है । अतः साधक को प्रसिद्धि से बचना चाहिए ।*

*परम श्रद्धेय स्वामी जी श्री रामसुखदास जी महाराज जी द्वारा विरचित ग्रंथ गीता प्रकाशन गोरखपुर से प्रकाशित स्वाति की बूंदें पृष्ठ संख्या ३०*

*राम ! राम !! राम !!! राम !!!!*
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https://youtu.be/mrkvb7wmsvw?si=byh958xh5itXmXy2

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