राम ! राम !! राम !!! राम !!!!
*परमात्मा हम से दूर नहीं हुए हैं,* *हम ही परमात्मा से दूर हुए हैं ।* हम तो भगवान् को प्रिय लगते ही हैं, हमें भगवान् प्रिय लगने चाहिए ।
*परम श्रद्धेय स्वामी जी श्री रामसुखदास जी महाराज जी द्वारा विरचित ग्रंथ स्वाति की बूंदें पृष्ठ संख्या ३९*
*राम ! राम !! राम !!! राम !!!!*
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*सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुच:॥*🙏
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*जब तक स्वयं भगवान् में न लगे, तब तक निरंतर भजन नहीं होता ।* स्वयं निरंतर रहता है । मन - बुद्धि लगाने से निरंतर साधन नहीं होता ।
*परम श्रद्धेय स्वामी जी श्री रामसुखदास जी महाराज जी द्वारा विरचित ग्रंथ स्वाति की बूंदें पृष्ठ संख्या ४०*
*राम ! राम !! राम !!! राम !!!!*
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राम ! राम !! राम !!! राम !!!!
भगवान् जो रूप धारण करते हैं, उसी के अनुरूप लीला करते हैं, वे मूर्ति बनते हैं तो मूर्ति के अनुसार ही लीला करते हैं, चलते फिरते नहीं, अन्यथा स्वांग बिगड़ता है ।
*परम श्रद्धेय स्वामी जी श्री रामसुखदास जी महाराज जी द्वारा विरचित ग्रंथ स्वाति की बूंदें पृष्ठ संख्या ४०*
*राम ! राम !! राम !!! राम !!!!*
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