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मैंने उसी वक्त राधा के घर में जिन जिन चीजों का अभाव था उसकी एक लिस्ट अपने दिमाग में तैयार की। थोड़ी देर में मैं लगभग ठीक हो गई।
मैंने अपने कपड़े चेंज किए लेकिन वह गाउन मैंने अपने पास ही रखा और राधा को बोला "यह गाऊन अब तुम्हें कभी भी नहीं दूंगी यह गाऊन मेरी जिंदगी का सबसे अमूल्य तोहफा है।"
राधा बोली मैडम यह तो बहुत हल्की रेंज का है। राधा की बात का मेरे पास कोई जवाब नहीं था। मैं घर आ गई लेकिन रात भर सो नहीं पाई ।
मैंने अपनी सहेली के मिस्टर, जो की हड्डी रोग विशेषज्ञ थे, उनसे राजू के लिए अगले दिन का अपॉइंटमेंट लिया। दूसरे दिन मेरी किटी पार्टी भी थी । लेकिन मैंने वह पार्टी कैंसिल कर दी और राधा की जरूरत का सारा सामान खरीदा और वह सामान लेकर में राधा के घर पहुंच गई।
राधा समझ ही नहीं पा रही थी कि इतना सारा सामान एक साथ में उसके घर मै क्यों लेकर गई।
मैंने धीरे से उसको पास में बिठाया और बोला मुझे मैडम मत कहो मुझे अपनी बहन ही समझो यह सारा सामान मैं तुम्हारे लिए नहीं लाई हूं मेरे इन दोनों प्यारे बच्चों के लिए लाई हूं और हां मैंने राजू के लिए एक अच्छे डॉक्टर से अपॉइंटमेंट ले लिया है अपन को शाम 7:00 बजे उसको दिखाने चलना है उसका ऑपरेशन जल्द से जल्द करवा लेंगे और तब राजू भी अच्छी तरह से दोड़ने लग जाएगा। राधा यह बात सुनकर खुशी के मारे रो पड़ी लेकिन यह भी कहती रही कि "मैडम यह सब आप क्यों कर रहे हो?" हम बहुत छोटे लोग हैं हमारे यहां तो यह सब चलता ही रहता है। वह मेरे पैरों में गिरने लगी। यह सब सुनकर और देखकर मेरा मन भी द्रवित हो उठा और मेरी आंखों से भी आंसू के झरने फूट पड़े। मैंने उसको दोनों हाथों से ऊपर उठाया और गले लगा लिया मैंने बोला बहन रोने की जरूरत नहीं है अब इस घर की सारी जवाबदारी मेरी है। मैंने मन ही मन कहा राधा तुम क्या जानती हो कि मैं कितनी छोटी हूं और तुम कितने बड़ी हो आज तुम लोगों के कारण मेरी आंखे खुल सकीं। मेरे पास इतना सब कुछ होते हुए भी मैं भगवान से और अधिक की भीख मांगती रही मैंने कभी संतोष का अनुभव नहीं किया।
लेकिन आज मैंने जाना के असली खुशी पाने में नहीं देने में है ।
मैं परमपिता परमेश्वर को बार-बार धन्यवाद दे रही थी, कि आज उन्होंने मेरी आंखें खोल दी। मेरे पास जो कुछ था वह बहुत अधिक था उसके लिए मैंने परमात्मा को बार-बार अपने ऊपर उपकार माना तथा उस धन को जरूरतमंद लोगों के बीच खर्च करने का पक्का निर्णय किया।
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*एक समय की बात है...*
*एक सन्त*
*प्रात: काल भ्रमण हेतु*
*समुद्र के तट पर पहुँचे...*
*समुद्र के तट पर*
*उन्होने एक पुरुष को देखा जो एक स्त्री की गोद में सर रख कर सोया हुआ था.*
*पास में शराब की खाली बोतल पड़ी हुई थी.*
*सन्त बहुत दु:खी हुए.*
*उन्होने विचार किया कि ये मनुष्य कितना तामसिक और विलासी है, जो प्रात:काल शराब सेवन करके स्त्री की गोद में सर रख कर प्रेमालाप कर रहा है.*
*थोड़ी देर बाद समुद्र से बचाओ, बचाओ की आवाज आई,*
*सन्त ने देखा एक मनुष्य समुद्र में डूब रहा है,*
*मगर स्वयं तैरना नहीं आने के कारण सन्त देखते रहने के अलावा कुछ नहीं कर सकते थे.*
*स्त्री की गोद में सिर रख कर सोया हुआ व्यक्ति उठा और डूबने वाले को बचाने हेतु पानी में कूद गया.*
*थोड़ी देर में उसने डूबने वाले को बचा लिया और किनारे ले आया.*
*सन्त विचार में पड़ गए की इस व्यक्ति को बुरा कहें या भला.*
*वो उसके पास गए और बोले भाई तुम कौन हो, और यहाँ क्या कर रहे हो...?*
*उस व्यक्ति ने उत्तर दिया : —*
*मैं एक मछुआरा हूँ*
*मछली मारने का काम करता हूँ.आज कई दिनों बाद समुद्र से मछली पकड़ कर प्रात: जल्दी यहाँ लौटा हूँ.*
*मेरी माँ मुझे लेने के लिए आई थी और साथ में(घर में कोई दूसरा बर्तन नहीं होने पर)इस मदिरा की बोतल में पानी ले आई.*
*कई दिनों की यात्रा से मैं थका हुआ था*
*और भोर के सुहावने वातावरण में ये पानी पी कर थकान कम करने माँ की गोद में सिर रख कर ऐसे ही सो गया.*
*सन्त की आँखों में आँसू आ गए कि मैं कैसा पातक मनुष्य हूँ, जो देखा उसके बारे में*
*मैंने गलत विचार किया जबकि वास्तविकता अलग थी.*
*कोई भी बात जो हम देखते हैं, हमेशा जैसी दिखती है वैसी नहीं होती है उसका एक दूसरा पहलू भी हो सकता है.*
*किसी के प्रति*
*कोई निर्णय लेने से पहले*
*सौ बार सोचें और तब फैसला करें।।
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Читать полностью…*28 दिन का पेइंग गेस्ट*
एक महिला हैं, वो जयपुर में एक PG ( *पेइंग गेस्ट* ) रखती हैं।
उनका अपना पुश्तैनी घर है, उसमे बड़े बड़े 10 - 12 कमरे हैं।
उन्हीं कमरों में *हर एक मे 3 bed लगा रखे हैं।*
उनके PG में *भोजन* भी मिलता है।
खाने खिलाने की शौकीन हैं। *बड़े मन से बनाती खिलाती हैं।*
उनके यहां इतना शानदार भोजन मिलता है कि अच्छे से अच्छा Chef नही बना सकता।
आपकी माँ भी इतने *प्यार से* नही खिलाएगी जितना वो खिलाती हैं।
उनके PG में ज़्यादातर नौकरी पेशा लोग और छात्र रहते हैं।
सुबह Breakfast और रात का भोजन तो सब लोग करते ही हैं।
जिसे आवश्यकता हो उसे दोपहर का भोजन pack करके भी देती हैं।
पर उनके यहां एक बड़ा *अजीबोगरीब नियम है,*
हर महीने में सिर्फ *28 दिन* ही भोजन पकेगा।
शेष 2 या 3 दिन होटल में खाओ,
ये भी नही कि PG की रसोई में बना लो।
*रसोई सिर्फ 28 दिन खुलेगी। शेष 2 या 3 दिन Kitchen Locked रहेगी।*
हर महीने के आखिरी तीन दिन *Mess बंद।*
Hotel में खाओ, चाय भी बाहर जा के पी के आओ।
मैंने उनसे पूछा कि ये क्यों? ये क्या अजीबोगरीब नियम है।
आपकी kitchen सिर्फ 28 दिन ही क्यों चलती है ?
बोली , *हमारा Rule है।*
हम भोजन के पैसे ही 28 दिन के लेते हैं।
इसलिये kitchen सिर्फ 28 दिन चलती है।
मैंने कहा ये क्या अजीबोगरीब नियम है ?
और ये नियम भी कोई भगवान का बनाया तो है नही आखिर आदमी का बनाया ही तो है बदल दीजिये इस नियम को।
उन्होंने कहा No,
*Rule is Rule* ...
खैर साहब अब नियम है तो है।
उनसे अक्सर मुलाक़ात होती थी।
एक दिन मैंने बस यूं ही फिर *छेड़ दिया उनको* ,
उस 28 दिन वाले अजीबोगरीब नियम पे।
उस दिन वो खुल गईं बोलीं, तुम नही समझोगे डॉक्टर साहब,
शुरू में ये नियम नही था
मैं इसी तरह, इतने ही प्यार से बनाती खिलाती थी।
पर इनकी *शिकायतें* खत्म ही न होती थीं
कभी ये कमी, कभी वो कमी *चिर असंतुष्ट always Criticizing...*
सो तंग आ के ये 28 दिन वाला नियम बना दिया।
28 दिन प्यार से खिलाओ और बाकी 2 - 3 दिन बोल दो कि जाओ, *बाहर खाओ।*
*उस 3 दिन में नानी याद आ जाती है।*
आटे दाल का भाव पता चल जाता है।
ये पता चल जाता है कि बाहर *कितना महंगा और कितना घटिया खाना मिलता है।*
दो *घूंट चाय* भी 15 - 20 रु की मिलती है।
मेरी *Value* ही उनको इन 3 दिन में पता चलती है
सो बाकी 28 दिन बहुत *कायदे* में रहते हैं।
*अत्यधिक सुख सुविधा की आदत व्यक्ति को असंतुष्ट और आलसी बना देती है।*
हो सके तो एक बार
दिल से सोचिएगा जरूर
🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻
~ ~ * बहाने Vs सफलता *~ ~
****
1- मुझे उचित शिक्षा लेने का
अवसर नही मिला...
उचित शिक्षा का अवसर
फोर्ड मोटर्स के मालिक
हेनरी फोर्ड को भी नही मिला ।
**
2- मै इतनी बार हार चूका ,
अब हिम्मत नही...
अब्राहम लिंकन 15 बार
चुनाव हारने के बाद राष्ट्रपति बने।
**
3- मै अत्यंत गरीब घर से हूँ ...
पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम भी
गरीब घर से थे ।
*
4- बचपन से ही अस्वस्थ था...
आँस्कर विजेता अभिनेत्री
मरली मेटलिन भी बचपन से
बहरी व अस्वस्थ थी ।
**
5 - मैने साइकिल पर घूमकर
आधी ज़िंदगी गुजारी है...
निरमा के करसन भाई पटेल ने भी
साइकिल पर निरमा बेचकर
आधी ज़िंदगी गुजारी ।
**
6- एक दुर्घटना मे
अपाहिज होने के बाद
मेरी हिम्मत चली गयी...
प्रख्यात नृत्यांगना
सुधा चन्द्रन के पैर नकली है ।
**
7- मुझे बचपन से मंद बुद्धि
कहा जाता है...
थामस अल्वा एडीसन को भी
बचपन से मंदबुद्धि कहा जता था।
****
8- बचपन मे ही मेरे पिता का
देहाँत हो गया था...
प्रख्यात संगीतकार
ए.आर.रहमान के पिता का भी
देहांत बचपन मे हो गया था।
***
9- मुझे बचपन से परिवार की
जिम्मेदारी उठानी पङी...
लता मंगेशकर को भी
बचपन से परिवार की जिम्मेदारी
उठानी पङी थी।
*
10- मेरी लंबाई बहुत कम है...
सचिन तेंदुलकर की भी
लंबाई कम है।
*
11- मै एक छोटी सी
नौकरी करता हूँ ,
इससे क्या होगा...
धीरु अंबानी भी
छोटी नौकरी करते थे।
**
12- मेरी कम्पनी एक बार
दिवालिया हो चुकी है ,
अब मुझ पर कौन भरोसा करेगा...
दुनिया की सबसे बङी
शीतल पेय निर्माता पेप्सी कोला भी
दो बार दिवालिया हो चुकी है ।
*
13- मेरा दो बार नर्वस
ब्रेकडाउन हो चुका है ,
अब क्या कर पाउँगा...
डिज्नीलैंड बनाने के पहले
वाल्ट डिज्नी का तीन बार
नर्वस ब्रेकडाउन हुआ था।
**
14- मेरी उम्र बहुत ज्यादा है...
विश्व प्रसिद्ध केंटुकी फ्राइड चिकेन
के मालिक ने 60 साल की उम्र मे
पहला रेस्तरा खोला था।
*
15- मेरे पास बहुमूल्य आइडिया है
पर लोग अस्वीकार कर देते है...
जेराँक्स फोटो कापी मशीन के
आईडिया को भी ढेरो कंपनियो ने
अस्वीकार किया था पर आज
परिणाम सामने है ।
*
16- मेरे पास धन नही...
इन्फोसिस के पूर्व चेयरमैन
नारायणमूर्ति के पास भी धन नही था
उन्हे अपनी पत्नी के गहने बेचने पङे।
*
17- मुझे ढेरो बीमारियां है..
वर्जिन एयरलाइंस के प्रमुख भी
अनेको बीमारियो मे थे |
राष्ट्रपति रुजवेल्ट के दोनो पैर
काम नही करते थे।
*
आज आप जहाँ भी है
या कल जहाँ भी होगे
इसके लिए आप किसी और को
जिम्मेदार नही ठहरा सकते ,
इसलिए आज चुनाव करिये -
सफलता और सपने चाहिए
या खोखले बहाने ...
♥️🙏♥️
दादी माँ जितना स्वाति के बारे में सोच रही थी उतने में ही उनके मन में मल्होत्रा खानदान के लिए नफरत बढ़ रही थी २५ साल पहले दिल्ली में २ बड़े खानदान हुआ करते थे और उन दोनों खानदान के सबसे होनहार बेटे यानी रोहित के पापा और करन गुलेरिया दोनों की किस्मत ऐसी थी के दोनों ही मल्होत्रा खानदान की सबसे बड़ी बेटी स्वाति के प्यार में पड़े जब स्वाति रोहित के पापा की ज़िन्दगी से चली गयी तो रोहित के पापा बिलकुल पहले जैसे इंसान नहीं रहे थे।
कुछ सालो बाद वो हमेशा के लिए अपनी माँ से और हमारा खानदान से दूर ही हो गए। वहाँ करण गुलेरिया भी स्वाति के साथ शादी नहीं कर पाए और ये बात तो सभी जानते थी की आज करण गुलेरिया अपनी आखिरी साँसे गिन रहे थे बाहर लोग सिर्फ यही कह रहे थे की एक लड़की की वजह से दो बड़े खानदान के होनहार लड़के अपनी जिंदगी खराब कर ली और अपने खानदान की मान मर्यादा और इज्जत भी मिट्टी में मिला दी और इन सारी चीजों का दोष लोगों ने सिर्फ और सिर्फ स्वाति को दिया। ये सब कुछ सोच सोचकर दादी माँ ने मन बना लिया था की अनिका भी ज़रूर मल्होत्रा खानदान की परंपरा निभाएगी और जिस घर में जायेगी वहाँ ज़रूर तबाही मचाएगी। दादीमा की नफरत अनिका के लिए तब बढ़ गयी थी जब उनके इनफॉर्मर ने दादी माँ को ये बताया था की अनिका और कोई नहीं बल्कि स्वाति की बेटी थी।
अभी दादीमा ये सब कुछ सोच ही रही थी की पीछे से लीला ने आवाज देते हुए दादीमा से कहा, "बड़ी दादीमा, वो लोग आ गए हैं।"
अंजलि मल्होत्रा के आने की खबर सुनते ही दादी माँ ने व्हील चेयर पर अपनी पीठ सीधी कर ली। दादी मा जल्दी से उस लड़की का चेहरा देखना चाहती थी , जो अनिका की बेटी है। वो जानती थी की बेटी की शकल कही न कही माँ से मिलती होगी। जब दादीमा ने दरवाज़े पर नज़र डाली, वो सब से पहले कमरे में अंजलि मामी दाखिल हुई। दादी मा को अंजलि मामी पहनावे से काफी एलिगेंट लगी।
Ch 216 - द इन्विटेशन
कुछ देर बाद अंजलि मामी तैयार होकर, रेशमी साड़ी और ऑर्नामेंट्स पहनकर अपने कमरे से बाहर आयी और आर्यन को देख कर कहा, "चलो रिया।"
जब मामी आर्यन का हाथ पकड़कर बाहर ले जा रही थी तभी अनिका अपने बैडरूम से बाहर आयी स्टेयर केस के ऊपर खड़ी अनिका को देख कर अंजलि मामी ने कहा, "मैं रिया को अपनी दोस्त से मिलवाने ले जा रही हूँ कुछ ही देर में वापस लौट आएंगे।"
अनिका मोबाइल में अपना कुछ काम कर रही थी उसने अंजलि मामी की बात का जवाब नहीं दिया सिर्फ हाँ में अपना सिर हिला दिया। अंजलि मामी से अनिका ने ये भी नहीं पूछा की वो कहाँ जा रहे थे।
जब ड्राइवर अंजलि मामी और आर्यन को मारवा हाउस की तरफ ले जा रहा था तब रस्ते में अंजलि मामी ने आर्यन से कहा, " देखो, वहां जाकर बिल्कुल पोलाइट रहना तुमसे जो भी सवाल किया जाए उसको अच्छे से जवाब देना। इतना ध्यान रखना की उन्हें तुम्हारी किसी भी बात का बुरा नहीं लगाना चाहिए।"
आर्यन को ऐसा लगने लगा था जैसे अंजलि मामी उसे किसी परीक्षा में बैठने जा रही थी। आर्यन हमेशा से सब से पॉलिटेली बात करता था सबसे अच्छे से पेश आता था। अंजलि मामी ने जो कोई भी इंस्ट्रक्शंस आर्यन को दिए थे वो करना आर्यन के लिए कुछ अलग नहीं था मगर वो अच्छे से जानता था की ये सारे suggestion उसके लिए नहीं, रिया के लिए थे इसलिए अंजलि मामी की बात पर आर्यन ने सिर्फ हाँ में अपना सिर हिला दिया।आर्यन एक बात नहीं समझ पा रहा था की ऐसे कौन लोग थे जिनसे मिलकर अंजलि मामी उन्हें इम्प्रेस करना चाहती थी मगर आर्यन ने अंजलि मामी से कोई भी सवाल पूछे बिना पैसेंजर सीट की विंडो से बाहर देखने लगा।
जैसे-जैसे कार आगे बढ़ रही थी, आर्यन को लग रहा था जैसे ये रास्ते उसने पहले कई बात देखा थे फिर जब कार ने हाईवे से एक टर्न लिए तब सामने आलीशान मारवा हाउस दिखाई दिया मारवा हाउस को देखते ही आर्यन घबरा गया। आर्यन ने घबराकर अंजलि मामी से पूछा, "बड़ी मामी क्या हम मारवा हाउस में जा रहे हैं?"
आर्यन के मुँह से मारवा हाउस का नाम सुनकर अंजलि मामी चौंक गयी! अंजलि मामी ने आर्यन की बात की दाद देते हुए कहा, "अरे वाह रिया, तुम तो सच मच बहुत स्मार्ट हो।"
आर्यन समझ नहीं पा रहा था की वो कार को आगे बढ़ने से कैसे रोके कुछ ही सेकंड्स में कार मारवा हाउस के मैं गेट पर पहुंची सिक्योरिटी ने ड्राइवर से कुछ सवाल पूछे और गाड़ी को अंदर जाने की परमिशन दे दी। आर्यन शेयर के नीचे छुप गया था वो अब पूरी तरह से पैनिक हो गया था उसे समझ में नहीं आ रहा था की अचानक आयी मुसीबत से वो किस तरह बाहर निकले!
कार जैसे ही मारवा हाउस की सिक्योरिटी एंट्रेंस से दाखिल हुई। सारे सिक्योरिटी गार्ड एक के बाद कार के अंदर झांक कर देखने लगे आर्यन किसी तरह उनसे छुप छुपाकर कार के अंदर बैठा रहा। कुछ ही सेकंड्स में कार मारवा हाउस के मेन बिल्डिंग की एंट्रेंस के पास पहुंची कार ने जैसे ही एंट्रेंस के बाहर ब्रेक लगाई, आर्यन की साँसे तेज़ होने लगी।
जैसे ही कार रुकी, अंजलि मामी कार से बाहर निकली एक बटलर पहले से ही अंजलि मामी का इंतज़ार कर रहा था बटलर ने अंजलि मामी से कहा, "mrs मल्होत्रा, बड़ी दादीमा आपका इंतज़ार कर रही है।"आर्यन और वो बटलर एक दूसरे को पहले से जानते थे इस बटलर का नाम शिवराम था और शिवराम काफी सालो से बड़ी दादी माँ की देख रेख करता था क्युकी अंजलि मामी बड़ी दादी माँ की गेस्ट थी इस लिए शिवराम स्पेशल उन्हें लेने निचे आया था। आर्यन जानता था की अगर वो कार से बाहर निकला तो शिवराम अंकल उसे पहचान लेगा और उसके बाद एक बहुत बड़ी मुसीबत खड़ी हो जाएगी!
तभी अंजलि मामी ने आर्यन को आवाज़ लगाते हुए कहा, "रिया बेटा चलो, हम पहुंच चुके हैं अब गाड़ी से बाहर आओ।" अंदर बैठा नन्हा सा आर्यन बहुत घबरा चुका था।
यहाँ अंदर मारवा हाउस में पहले से मजूद रिया दादी माँ के कमरे में एंटर हुई और व्हील चेयर पर बैठी दादीमा के पास जाकर कहने लगी, "बड़ी दादीमा, आपने मुझे बुलाया? मैंने सुना कि आप मुझे एक नयी दोस्त से मिलना चाहते हो? कहाँ है वो? कब आएगी? और वो कौन है?"
दादी मा ने मुस्कुराते हुए रिया से कहा, "तुम्हारे सब सवालों का जवाब तुम्हे खुद ही लेना होगा। जब वो बच्ची आएगी तो तुम उससे दोस्ती करना, हो सकता है की आगे चलकर वो लड़की तुम्हारी बहन बन जाए।"
दादीमा की बात सुनकर रिया अपने दोनों हाथ कमर पर रखकर कुछ सोच में पड़ गयी। कुछ देर बाद रिया ने दादी मा से कहा, "क्या में अपनी बहन से मिलने वाला हूँ? क्या वो मेरे जितनी ही खूबसूरत है?"
दादी मा ने रिया की बातों का जवाब दिया, "मैंने अब तक उसे देखा नहीं हाँ मगर मैं इतना ज़रूर जानती हूँ की चाहे वो बच्ची कितनी भी खूबसूरत क्यों न हो मगर हमारे आर्यन जितनी प्यारी बिलकुल नहीं हो सकती।"
दादीमा की बात सुनकर रिया ने अपने दोनों हाथो से अपने चेहरे को छुपा दिया और कहा, "थैंक यू सो मच फॉर थे कॉम्पलिमेंट दादी माँ।"
इस लड़के की भी एक महिला मित्र थी..
इसको छोड़कर वो क्यों चली गयी??
उसका ध्यान किसी को नही है.. सबका ध्यान एक सफल पुरुष की महिला मित्र की ओर है...
वो कहता है कि बेटा! तेरा सिलेक्शन नही होगा तो ये तुझे भी छोड़कर चली जायेगी जैसे मेरी वाली चली गयी।
और चली ही गयी थी..
पहचानने से इनकार कर दिया था कि घर पर क्यों आये हो??
जिसमें क्षमता है भविष्य है उसी को सब कोई चुनता है, किसी आईएएस आईएएस या irs महिला अधिकारी को किसी चक्की वाले से प्यार नही होता..
प्यार होता है सम्भावना से... सुनहरे भविष्य से..
लेकिन बॉलीवुड के दर्शक निखट्ट __ हैं..
लड़कों को जैसे नैतिक बल मिल गया है कि अब ऐसी लड़की से मोहब्बत करेंगे जो उसके साथ तैयारी करे...उनकी गरीबी का मजाक न उड़ाए..
स्टडी मैटेरियल दे.. साथ मे मेहनत करेंगे। लिव इन में रहेंगे।
बाद में ऐसा कहकर सबको चौंका दे कि ये सिलेक्शन हमारी महिला मित्र की वजह से हुआ है..
फ़िल्म देखकर आधी जनता पागल हो चुकी है..
वहीं एक गौरी भैया का जीवन बर्बाद हुआ पड़ा है,
भेंड बकरी की जिंदगी में एक शेर बन भी गया तो क्या हुआ??
उससे लाखों को अपनी जवानी बर्बाद करने के बल मिल जाता है इससे ज्यादा कुछ नही होता।
"क्या कह रहे हैं आप!"
"सच में! वो मेरी भाभी कैसे हो सकती हैं भला! वो तो चार साल पहले ही मर चुकी हैं!"
मारे भय के मेरे माथे पर पसीना चुहचुहा आया!
"और वो मामा भी कब के मर चुके हैं!"--मनोहर बाबू ने दूसरा धमाका किया।
"आपका दिमाग तो ठीक है ना!"--मैं चीखा।
"एकदम ठीक है!"
अचानक पीछे से एक सर्द आवाज गूँजी!
मैं पलटा, और भय के मारे जड़ हो गया!
पीछे मनोहर बाबू के मामा ही खड़े थे! सर पर चारे का गट्ठर लिए हुए! और उनके ठीक पीछे भाभी खड़ी थीं, जोर जोर बिहँसते हुए। अंधेरे में उनके बाहर को निकले हुए दाँत और मांग में मोटा सिंदूर कुछ अजीब ही लग रहे थे!
"हहहहहहहहह, नाले पर मुलाकात हुई तब भी नहीं पहचान पाये!"
"भागो!"--मनोहर बाबू ने एक बार फिर से मेरा हाथ पकड़ा और बाहर की ओर दौड़ते चले गये! पीछे से दोनों की सम्मिलित आवाजें गूँज रही थीं....
"अरे ठहर जाओ, ठहर जाओ, हम कुछ नहीं करेंगे! बस जाते जाते वो बात बताते जाओ ना मनोहर!"
"वे लोग जानना क्या चाहते हैं?"
"ये तो मुझे भी नहीं पता!"--मनोहर बाबू ने मुझे चुप कराते हुए कहा।
थोड़ी ही देर बाद हम दौड़ते हुए वापस उसी नाले के पास जा पहुँचे थे! पीछे उनदोनों के दौड़ते कदमों की आहट साफ सुनायी दे रही थी!
"देखना, ये दोनों जाने ना पायें!"
"हमलोग यहीं किनारे पर हैं मालिक! छोड़ेंगे नहीं इन्हें!"
"अब क्या करें मनोहर बाबू! ये सब हो क्या रहा है आखिर?"--मैंने मरे स्वर में पूछा!
"कूद जाओ!"
"कहाँ!"
"सामने बरसाती नाले में, और कहाँ!"
और इससे पहले कि मैं कुछ समझ पाता, उन्होंने मुझे जोर से धक्का दे दिया!
मैं औंधे मुँह नाले में जा गिरा! पीछे मनोहर बाबू उनकी पकड़ में आ चुके थे!
जाने कितनी देर तक मैं बेहोश रहा। जब चेतना लौटी तो खुद को एक हस्पताल में पाया! डॉक्टर मेरे बगल के कस्बे वाले ही थे, साथ में घरवाले और मुहल्ले के कुछलोग भी थे!
"मैं यहाँ कैसे आ गया?"
"सबसे पहले तो ये बताओ कि तुम पिछली रात रामपुर वाले बरसाती नाले में के पास क्यूं पड़े थे!"
मैंने पिछली रात की बात ज्यों की त्यों बता दीं। सुनकर सभी अवाक् रह गये!
बाबूजी की आँखें सोचने की मुद्रा में सिकुड़ी हुई थीं--मनोहर! तुम मनोहर के साथ थे पिछली रात! पर ये कैसे संभव है?"
"क्यों? क्या बात है?"
"मनोहर तो पंद्रह दिन पहले ही मर चुका है!"
"अरे! पर कैसे....!"
"हार्ट अटैक से!"
धम्म!
लगा, जैसे मेरा सर फट जायेगा!
मैंने फिर से आँखें बंद कर लीं!
दो दिन बाद हस्पताल से छुट्टी मिली तो मैं घर लौटा! पूरे गाँव में चर्चा का केंद्र बना था मैं! लोग मेरे पास आते, तरह तरह के सवाल पूछते! पर क्या जवाब देता मैं!
मनोहर बाबू की पत्नी मिलीं, जार जार रो रही थीं....
"मुझे छोड़कर चले गये, दिल की दो बातें भी आखिरी समय में नहीं कहे! मुझे क्या पता था कि आखिरी समय में मुझे छोड़कर जाने के लिए कलकत्ते से गाँव आये थे! अब कैसे गुजर होगा मेरे दोनों बच्चों का!"
मनोहर बाबू के पिता को तो जैसे काठ मार गया था!
"साल भर पहले जाने क्यूँ नौकरी छोड़कर गाँव आया! पता नहीं खेतीबाड़ी में कौन सा लाभ दिखा उसे!"
उनके भाई अब सामान्य हो चले थे--"बड़ा अंतर्मुखी था वो, कभी थाह नहीं लगी उसके मन की! हमलोग तो बाहर कमाते-खाते हैं। खेतीबाड़ी के अलावा बाबूजी की पेंशन भी थी, कभी एक पैसे का हिसाब भी तो नहीं मांगा उससे!"
मैंने सबकी बातें चुपचाप सुनीं, पर कुछ समझ में नहीं आया! हाँ, हस्पताल वाले डॉक्टर साहब ने जो कुछ बतलाया, वो आश्चर्यजनक था...
"दो साल पहले मनोहर को सीने में दर्द की शिकायत थी! मैंने उसे बड़े शहर में बाइपास सर्जरी की सलाह दी थी! उसके बाद वो वापस कलकत्ता चला गया! वहाँ कुछ दिन रहने के बाद गाँव आकर रहने लगा! फिर मेरी उससे मुलाकात नहीं हुई। मैंने सोचा था कि वहाँ अपनी सर्जरी कराया होगा! पर नहीं, ये बात उसने घरवालों को भी नहीं बतायी थीं!"
बाकी बातें मेरी पत्नी ने बतायी--"मनोहर बाबू का शरीर दिन पर दिन गलता जा रहा था, पर किसी से कुछ कहते तब ना! जाने कौन सी बीमारी पालकर बैठे थे! किसी से कभी कुछ भी नहीं बताया!
और मरना भी हुआ तो ननिहाल जाकर! एक दिन पहले ही तो वहाँ गये थे। उन बिचारों के माथे भी अपयश मढ़ दिया! उनके ममेरे भाई भी बाहर रहते हैं, कुछ दिनों के लिए गाँव आये थे। शायद ये कलंक उनके माथे लगना था! मैंने तो आपको चिट्ठी भी लिखी थी उनके मरने की! शायद आपको मिली ही नहीं!"
चिट्ठी!
हाँ, वो तो मेरे कमरे में ही पड़ी रह गयी, बिना पढ़े ही! मनोहर बाबू मुझे क्या बताना चाह रहे थे, आजतक समझ नहीं पाया! और जब उनको दिल की बीमारी थी, तो उसका ही ढंग से ईलाज क्यों नहीं करवाये! क्या संकोचवश पैसे के लिए मुँह नहीं खोल पाये घर में! उनको अपनी मृत्यु का आभास था, शायद इसीलिए घर चले आये थे बीवी-बच्चों के पास! हो सकता है, खेतीबाड़ी की आमदनी और बाबूजी की पेंशन को लेकर किसी ने कुछ कटाक्ष किया हो, और बात उनके दिल को लग गयी!
#अनसुलझी_गुत्थी
दिसंबर की एक सांझ।
छ: बज चुके थे। मैं शॉल-स्वेटर ओढ़कर बाहर चलने को तैयार हो ही रहा था कि दरवाजे की सांकल बजी।
जाकर दरवाजा खोला सुखद आश्चर्य का झटका लगा! सामने मनोहर बाबू खड़े थे!
"आप! इस वक्त!"
"क्या हुआ! मुझे नहीं आना चाहिए था क्या?"--उनके चेहरे पर उदासी पसर गयी।
"अरे नहीं जी, ऐसी बात नहीं है! बस आपको एकाएक देखकर....!"
"मालिक से हिसाब करने आया था! सोचा, तुमसे भी मिल लूँ!"
"बढ़िया किये! आप तो लगभग मुझे भूल ही चुके थे!"
"भूला कहाँ था भई! आठ महीने तो हो गये मुझे कलकत्ता छोड़े हुए! और तुम भी गाँव कहाँ आते हो!"
"छुट्टी कहाँ मिलती है बाबू जो गाँव जाऊँ! वैसे कल सुबह की ट्रेन है मेरी!"
"कल! कल ही निकलोगे?"
"हाँ, कल से ठंड की छुट्टियां हो रही हैं दस दिनों की! वैसे हिसाब हो गया आपका?"
"हाँ, हो गया! मालिक ने पाई पाई जोड़कर सब दे दिया!"
"पर आपको अभी काम नहीं छोड़ना चाहिए था, कुछ दिन और कर लेते तो क्या हर्ज था!"
"बहुत दिन नौकरी की, क्या हासिल हुआ! एक धेला तो बचाकर नहीं रख पाया! फिर सोचा, क्या फायदा इसका! जनम भर ना परिवार का सुख और ना ही पैसे का! वैसे कल सुबह मैं भी गाँव चल रहा हूँ कलकत्ता मेल से!"
"वाह! फिर तो हम साथ चलेंगे!"
रात को हमने इकट्ठे खाना पाया। मनोहर बाबू तो जल्द ही गहरी नींद में चले गये, पर मुझे सामान भी पैक करना था! घर से आज शाम ही आयी हुई चिट्ठी मेज पर पड़ी थी, जिसे पढ़ने का समय नहीं मिला था।
मनोहर बाबू मेरे गाँव के ही थे। कलकत्ते में मुझसे पहले से ही रहते थे। मैं जहाँ स्कूल टीचर था, वहीं वो एक जूट मिल में क्लर्क थे। गाँव में एक बड़ा संयुक्त परिवार था उनका।
आमतौर पर जहाँ लोगों के पारिवारिक विवाद सुनने को मिलते रहते थे, वहीं उनके परिवार की लोग मिसाल देते थे! मनोहर बाबू थे भी बड़े खिलंदड़ स्वभाव के, हरदम हँसने-हँसाने वाले!
अब पता नहीं, ये मेरे मन का वहम था या फिर उनकी अभिनय कुशलता, कभी उन्हें ठीक से पढ़ नहीं पाया! जब जब वो गंभीर होते, उनके चेहरे पर ऐसे रहस्यमयी भाव आते, जो उनके स्वभाव से मेल नहीं खाते थे!
उनकी आँखों के भाव इतने गहरे होते कि कभी उनपर अनायास दया आती तो कभी मन को गहरी सोच में धकेल देतीं! कुल मिलाकर उनका व्यक्तित्व बड़ा अजीब सा था!
करीब साल भर पहले उन्होंने एकाएक काम छोड़ दिया और घर जाकर खेतीबाड़ी करने लगे! जब तक कलकत्ते में थे, महीने में एकाध बार उनसे मुलाकात हो ही जाती थी, पर अब....!
मैंने एक बार उनका चेहरा ध्यान से देखा! गहरी नींद में ऐसे सोये थे मानों कोई चिंता ही ना हो, जबकि उनके बेटे-बेटी अभी कुँवारे थे और पढ़ रहे थे!
रात के दस बज चुके थे!
मैंने सोने से पहले घर से आयी हुई चिट्ठी पढ़ने के लिए लिफाफा खोला!
चर्रर्रर्रर्
"जब सुबह घर ही चलना है तो चिट्ठी क्या पढ़नी! सो जाओ!"
एकाएक मैं चौंक गया!
अचानक से मनोहर बाबू बेड पर उठ बैठे थे और मुझे ही घूर रहे थे!
"ये तो है, फिर भी पढ़ लेता हूँ!"
"जैसी तुम्हारी मर्जी!"--कहकर उन्होंने फिर से चादर तान ली।
अभी मैंने चिट्ठी खोलकर पहली ही पंक्ति पढ़ी थी कि एक झटके से बत्ती गुल हो गयी! बाहर मुहल्ले में रोशनी का एक तेज झमाका और जोरदार आवाज हुई थी! संभवतः ट्रांसफार्मर का फ्यूज उड़ गया था!
"अब तो सो जाओ!"--मनोहर बाबू ने लेटे लेटे ही कहा।
मैंने भी चिट्ठी पढ़ने का ख्याल मन से निकाल दिया और चौकी पर उनके बगल में लेट गया!
अगली सुबह सात बजे!
लगभग दो घंटे देर से कलकत्ता मेल आयी! दिनभर का समय लगभग खामोशी में ही बीता! आमतौर पर हमेशा बोलने वाले मनोहर बाबू ज्यादातर समय खिड़की से बाहर चुपचाप जाने क्या निहारते जा रहे थे! कभी-कभार मुझसे नजरें मिलतीं भी तो चुरा लेते! जाने उन मौन आँखों में कैसी दैन्यता पसरी हुई थी!
"क्या बात है मनोहर बाबू! आज बड़े चुप चुप से हैं, कुछ बात है क्या?"
"आं, नहीं नहीं! बस जी थोड़ा उदास है!"
"क्यों?"
"ये आखिरी फेरा है ना! इतने बरस रहा इस शहर में! अब पता नहीं...!"
"घर जाने का फैसला भी तो आपका ही था ना!"
उन्होंने जवाब नहीं दिया!
दिनभर बस इसी तरह इक्का-दुक्का बातें होती रहीं! थोड़ी देर बाद मुझे हल्की सी झपकी आ गयी, आँख तब खुली, जब किसी ने मेरे कंधे को हल्का सा थपथपाया!
वो बगल की सीट वाली एक महिला थी!
"क्या बात है?"--मैंने पूछा।
"आपकी तबियत ठीक है?"
"हाँ क्यों?"
"नहीं! बस ऐसे ही....!"
फिर महिला ने कुछ नहीं कहा! चुपचाप जाकर अपनी सीट पर बैठ गयी! उसकी निगाहें मुझे घूरते हुए अजीब सी हो चली थीं!
मैंने बगल में बैठे मनोहर बाबू की ओर देखा!
उनके होठों पर रहस्यमयी चुप्पी थी....!
जिस कलकत्ता मेल को शाम पाँच बजे राजनगर स्टेशन पहुँचना था, वो कोहरे की वजह से लेट हुई और रात आठ बजे प्लेटफार्म पर पहुँची!
मेरा मन अनमयस्क हो चला! जबकि मनोहर बाबू के चेहरे पर सुकून नजर आ रहा था!
"अब तो कोई साधन भी नहीं मिलेगा गाँव जाने को!"--मैंने कहा।
#प्यार_का_बंधन...
अनुज नाम था उसका....मेरे आफिस में थर्ड ग्रेड वर्कर था....मेरा तबादला अभी यहाँ हुआ था आफिसर की पोस्ट पर मैने तीन चार दिन पहले ही ज्वाईनिंग की थी....!!!
अनुज बहुत मेहनती व समझदार था मुझे तो दीदी ही बोलता था पर एक दिन मेरे जूनियर प्रशांत ने उसे डाँटते हु़ये बोला कि वो मेडम है....तो सपना मैम बोला करो बस तब से वो मुझे मैम बोलने लगा....पर जाने क्यूँ मुझे उसका दीदी बोलना अच्छा लगता था....!!!!
आज वो बहुत खुश था तो मैंने कहा...क्या हुआ अनुज आज बहुत खुश हो...????
हाँजी मैम कल राखी है ना इसलिये घर जा रहा हूँ...!!!
मैंने कहा...अच्छा तुम्हारी बहन है..!!!
जोर से हँसता हुआ बोला....है ना पाँच है...तीन बड़ी शादीशुदा है व दो छोटी है...!!!
मैंने कहा...तोहफे ले लिये बहनों के लिये...तो बोला आज खरीदूँगा ज्यादा मँहगे तो नहीं ले सकता पर जो भी...बोलकर जल्दी जल्दी अपना काम करने लगा...!!!!!
उसे देखकर बहुत अच्छा लग रहा था...सच कहूँ तो आज भाई की कमी बहुत खल रही थी...मैं इकलौती बेटी हूँ अपनी मम्मी-पापा की....तभी मन में एक ख्याल आया और पहले अनुज की फाईल निकालकर उसके घर का पता लिख लिया व जल्दी ही आफिस से निकल गयी....इक नयी उंमग के साथ शॉपिंग की ढेर सारी और घर आ गयी...!!!!
मम्मी ने आते ही बोला...अरे ! सपना आज ये इतना सब क्या खरीद लायी....;;;;
मैंने बोली राखी की तैयारी है मम्मी...वो हैरत से मेरा मुँह देखने लगी कि जो बेटी हर राखी पर उदास बैठी रहती है आज इतनी चहक रही है...फिर मैंने मम्मी को अपनी प्लानिंग बताई और पापा को भी समझाया तो वो भी मान गये..!!!!
आज राखी के दिन पहली बार मैं इतनी खुश थी व जल्दी जल्दी तैयार भी हो गयी...मैं ,पापा व मम्मी हम तीनों कार से अनुज के घर पहुँच गये....!!!
दरवाजा खुला था व शोर आ रहा था सब बहनों में पहले कौन राखी बाँधेगा...यही मस्ती मजाक चल रहा था...बहुत सुंदर नजारा था.....तभी मुझे देख अनुज एकदम सकपका गया....!!!
अरे मैम आप यहाँ कैसे....तो मैंने राखी निकाली और बोली अगर आप सबको मंजूर हो तो आज पहले मैं राखी बाँधना चाहती हूँ....क्या मेरे भाई बनोगे अनुज...मेरी आँखों से आँसू बहने लगे....अनुज ने बोला मैम मैं आपको क्या बोलूँ....मैं आपको क्या दे सकता हूँ...?????
उसने अपना हाथ आगे बढ़ा दिया....मैं राखी बाँधी और सभी तोहफे निकाल कर सभी को दे दिये....अनुज के लिये घड़ी लायी थी वो भी उसके हाथ में बाँध दी और बोली...ये बंधन तोहफे का नही है....ये तो प्यार व विश्वास का है जो मुझे तुममें दिखा....अब से तुम मुझे मैम नही दीदी ही बोलना जैसे मुझे मिलते ही तुमने बोला था..
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एक *चूहा* एक कसाई के घर में बिल बना कर रहता था।
एक दिन *चूहे* ने देखा कि उस कसाई और उसकी पत्नी एक थैले से कुछ निकाल रहे हैं। चूहे ने सोचा कि शायद कुछ खाने का सामान है।
उत्सुकतावश देखने पर उसने पाया कि वो एक *चूहेदानी* थी।
ख़तरा भाँपने पर उस ने पिछवाड़े में जा कर *कबूतर* को यह बात बताई कि घर में चूहेदानी आ गयी है।
कबूतर ने मज़ाक उड़ाते हुए कहा कि मुझे क्या? मुझे कौनसा उस में फँसना है?
निराश चूहा ये बात *मुर्गे* को बताने गया।
मुर्गे ने खिल्ली उड़ाते हुए कहा… जा भाई.. ये मेरी समस्या नहीं है।
हताश चूहे ने बाड़े में जा कर *बकरे* को ये बात बताई… और बकरा हँसते हँसते लोटपोट होने लगा।
उसी रात चूहेदानी में खटाक की आवाज़ हुई, जिस में एक ज़हरीला *साँप* फँस गया था।
अँधेरे में उसकी पूँछ को चूहा समझ कर उस कसाई की पत्नी ने उसे निकाला और साँप ने उसे डस लिया।
तबीयत बिगड़ने पर उस व्यक्ति ने हकीम को बुलवाया। हकीम ने उसे *कबूतर* का सूप पिलाने की सलाह दी।
कबूतर अब पतीले में उबल रहा था।
खबर सुनकर उस कसाई के कई रिश्तेदार मिलने आ पहुँचे जिनके भोजन प्रबंध हेतु अगले दिन उसी *मुर्गे* को काटा गया।
कुछ दिनों बाद उस कसाई की पत्नी सही हो गयी, तो खुशी में उस व्यक्ति ने कुछ अपने शुभचिंतकों के लिए एक दावत रखी तो *बकरे* को काटा गया।
*चूहा* अब दूर जा चुका था, बहुत दूर ……….।
_*अगली बार कोई आपको अपनी समस्या बतायेे और आप को लगे कि ये मेरी समस्या नहीं है, तो रुकिए और दुबारा सोचिये।*_
*_समाज का एक अंग, एक तबका, एक नागरिक खतरे में है तो पूरा देश खतरे में है।_*
जय हिंद🇮🇳
💞🙏💞
इंसान की सोच ही उसके उसके व्यक्तित्व का परिचय कराती है :-
इंटरव्यूअर *: बीएमडब्ल्यू खरीदने के लिए आपको कितना समय लगेगा ?
* डॉक्टर *: मुझे लगता है कि मैं अपने प्रेक्टिस से 6-8 महीने में खरीद सकता
हूं।
* एमबीए *: मुझे कड़ी मेहनत के साथ 11-12 महीने की लगेंगे।
* इंजीनियर *: बहुत मेहनत की तो भी कम से कम 2-3 साल ।
* श्री रतन टाटा *: मुझे लगता है... लगभग 5 साल।
*
'इटरव्यूअर *: श्री टाटा क्यों?
* श्री रतन टाटा *: यह आसान नहीं है, बीएमडब्ल्यू एक बड़ी कंपनी है!
💞🙏💞
थोड़ी देर में रोना-धोना मच गया । आस पड़ोस के लोग आ गए। बेटे को बुलाया गया और अम्मा को अंतिम यात्रा के लिए तैयार किया गया अम्मा को नहला धुला कर, सुहागन की तरह तैयार कर, अर्थी पर लेटा कर बाहर लाया गया ।
बाबा ने देखा अम्मा के माथे पर बड़ी सी लाल बिंदी लगी थी । बाबा उठे और घर में गए । थोड़ी देर बाद बाहर आए और धीरे-धीरे अम्मा की अर्थी के पास गये । और अम्मा के माथे पर से बिंदी हटा दी,
" बाबा क्या कर रहे हो ? अम्मा सुहागन थी । आप बिंदी क्यों हटा रहे हो ?" बेटे ने कहा ।
" बेटा! उसका पति बिंदी खरीदने की औकात नहीं रखता था, इसलिए हटा रहा हूं" !
सुनकर सब लोग अवाक रह गए । बहू शर्मसार हो गई । सब ने देखा बाबा अपने हाथ में लाए हिंगलू से एक बड़ी सी लाल बिंदिया अम्मा के माथे पर लगा रहे हैं ।
थोड़ी देर बाद बहू की चित्कार छूट गई । बाबा भी अम्मा के साथ हमेशा हमेशा के लिए लंबी यात्रा पर रवाना हो गए थे।
मित्रों, इस भावनात्मक, हृदय स्पर्शी कहानी बहुत कुछ संदेश दे रहा है । अपने समाज मे सिर्फ 2-4 प्रतिशत ही बुजुर्गों की स्थिति परिवार में सम्मान जनक है । इसका मूल कारण कही संयुक्त परिवार का एकल परिवार में रूपांतरित होकर नाते ,रिश्ते की समाप्ति, धन की लिप्सा में अंधी दौड़ एवं लड़के, लड़कियों का अधिक पढ़ कर सभी से अधिक जानकारी व बुद्धिमान होने का झूठा अभिमान,किताबी ज्ञान का होना परन्तु व्यवहारिक ज्ञान की कमी ।
*कृपया हम सभी एक छोटा प्रयास से अपने घर के बुजुर्गों का उचित सम्मान करें, सभी को एक दिन बूढ़ा होना है । माता पिता के नही रहने पर उनका महत्व मालूम पड़ता है । पश्चिमी देशों का अनुसरण नही कर अपनी भारतीय संस्कृति का अनुसरण करें ।
सादर प्रणाम।
🙏🙏🙏🙏
उनके पास मेरे लिए समय ही नहीं है. मैं उन्हें बिल्कुल पसंद नहीं करता...” नीरव की बातें मेरे कान में पिघले हुए सीसे की भांति घुल रही थीं. एक बच्चा अपनी मां के बारे में ऐसा सोचे, इससे ज़्यादा आहत करने वाली बात और क्या हो सकती है? मेरा बेटा मुझसे दूर हो जाए, इससे तो बेहतर है कि मैं नौकरी छोड़ दूं. तभी शायद मैं उसकी उम्मीदों की मां बन सकूं.
नीरव शायद अपनी रौ में बहता ही जाता मानो मन की सारी भड़ास वह आज ही निकाल लेना चाहता हो. क्षितिज ने उसे कभी रोका भी तो नहीं, बल्कि उसके सामने मुझमें ही ग़लतियां निकालते रहते हैं. पर आशा के विपरीत क्षितिज की आवाज़ गूंजी. “चुप रहो! अपनी मां के बारे में इस तरह बात करते तुम्हें शर्म नहीं आती? उनकी रिस्पेक्ट करना सीखो. वे तुम्हारी ख़ुशियों और इच्छाओं को पूरा करने के लिए दिन-रात मेहनत करती हैं. उनको जितना भी समय मिलता है, वह तुम्हारे साथ बिताती हैं और तुम हो कि...
वह दुनिया की सबसे अच्छी मां ही नहीं, पत्नी भी हैं.” मेरी आंखों में नमी तैर गई. मैंने क्षितिज की ओर देखा. उसकी आंखों में आज पहली बार वह भाव दिखा जो जता रहा था कि वह मेरी भावनाओं की कद्र करता है. उसने मेरे हाथ को अपने हाथ में लिया तो मुझे आशवस्ति का एहसास हुआ. अपनों का विश्वास ही तो कठिन से कठिन परिस्थितियों से उबारने में मदद करता है. नीरव को सिर नीचा किए खड़े देख मैंने उसके बालों को सहलाया तो वह मुझसे लिपट गया, “आई एम सॉरी मम्मी, अब मैं कभी आपसे ग़लत ढंग से बात नहीं करूंगा. आई लव यू मम्मी.” उस पल मुझे लगा कि गुत्थियों के जंगल से निकल मैं एक शिखर पर आ खड़ी हुई हूं , जहां सम्मान के साथ मुझे एक अच्छी पत्नी व आदर्श मां होने का दर्जा दिया जा रहा है.
*🤔Surprise Test🤔*
एक प्रोफ़ेसर अपनी क्लास में आते ही बोले,
........“चलिए,आज आप सभी का *Surprise Test* हो जाय।"
सुनते ही घबराहट फैल गई *Students* में!
कुछ किताबों के पन्ने पलटने लगे तो कुछ लगे पढ़ने सर के दिए नोट्स।
“ये सब कुछ काम नहीं आएगा….”, प्रोफेसर साहब मुस्कुराते हुए बोले, *Questionpaper*
.............रख रहा हूँ आपके सामने, जब सारे पेपर बट जाएं तभी आप उसे पलट कर देखें।"
बाँट दिए गए पेपर्स सभी *Students* को।
“ठीक है ! अब आप पेपर देख सकते हैं।"बोले प्रोफेसर साहब।
अगले ही क्षण सभी *Question paper* को 😌😌😌 निहार रहे थे,
*लेकिन यह क्या?* .............कोई प्रश्न था ही नहीं उस पेपर में !
था तो *White* पेपर पर केवल एक *Black* स्पॉट⚫
*"यह क्या सर?* इसमें तो *Question* है ही नहीं!", एक छात्र खड़ा होकर बोला ।
“जो भी है आपके सामने है। आपको बस इसी को *Explain* करना है।लेकिन!ध्यान रहे इसके लिए आपके पास केवल 10 मिनट ही हैं *And ur time starts now.*"
चुटकी बजाते 😊 मुस्कुराते हुए बोले प्रोफेसर।
कोई चारा न था उन हैरान *Students* के पास।
वे जुट गए उस अजीब से प्रश्न का *Answer* लिखने में।
10 मिनट बीतते ही प्रोफेसर साहब ने फिर से बजाई चुटकी *Time is over.*और लगे *Answer Sheets* collect करने।
*Students* अभी भी हैरान परेशान।
प्रोफेसर साहब ने सभी *Answer Sheets* चैक कीं।
सभी ने ⚫ *Black स्पॉट* ⚫ को अपनी तरह से समझाने की कोशिश की थी, लेकिन किसी ने भी उस स्पॉट के चारों ओर मौजूद *White Space* के बारे में लिखने की जहमत ही नहीं उठाई।
प्रोफ़ेसर साहब गंभीर होते हुए बोले,“इस *Test* का आपके *Academics* से कोई लेना-देना नहीं है, ना ही मैं इसके कोई *Marks* देने वाला हूँ। इस *Test* के पीछे मेरा एक ही मकसद है..........
...............मैं आपको जीवन की एक अद्भुत सच्चाई बताना चाहता हूँ।
देखिये! यह पेपर 99% *White*है…...
.........लेकिन आप में से किसी ने भी इसके बारे में नहीं लिखा और अपना 100% *Answer* केवल उस एक चीज को *Explain* करने में लगा दिया जो मात्र 1% है….........
.............. यही बात हमारी *Life* में भी देखने को मिलती है।......…
.............. *Problems* हमारे जीवन का एक छोटा सा हिस्सा होती हैं, लेकिन हम अपना पूरा ध्यान इन्हींपर लगा देते हैं….....
...........कोई दिन रात अपने *Looks* को लेकर परेशान रहता है तो कोई अपने *carrier* को लेकर चिंता में डूबा रहता है, तो कोई पैसों का रोना रोता रहता है,कोई दूसरे की छोटी सी गलती को अपने दिमाग में रखे रखता है।
क्यों नहीं हम अपनी *Blessings Count* कर खुश होते हैं….....
..............क्यों नहीं हम पेट भर खाने के लिए उस सर्व शक्तिवान प्रभु को *Thanks* कहते हैं….......?
क्यों नहीं हम अपनी प्यारी सी फैमिली के लिए शुक्रगुजार होते हैं….....?
क्यों नहीं हम *Life* की उन 99% चीजों की तरफ ध्यान देते जो सचमुच हमारे जीवन को अच्छा बनाती हैं.........?
क्यों नहीं हम अपने मित्रों सम्बन्धियों की *Mistakes* को *Ignore* कर अपने *Relations* को टूटने से बचाते है..........?
*Students* प्रोफेसर साहब की दी गई इस सीख से गदगद थे।
आईये आज से ही हम *Life* की *Problems* को ज्यादा *Seriously* लेना छोडें,मित्रों/सम्बन्धियों की *Mistakes* को भूलें और जीवन की छोटी-छोटी खुशियों को..........
........... *ENJOY करना सीखें तभी हम ज़िन्दगी को सही मायने में जी पायेंगे......*
सही है न ।।
💞💞🙏🏻💞💞
माँ का श्राप
एक बेटी जो अब माँ बन गयी अपने संस्मरण ब्यक्त करते हुवे बता रही है -
बचपन में 'रामायण' से बहुत सारी अच्छी बातों के साथ एक बुरी बात भी सीख ली थी ... "श्राप" देना...
भाई-बहनों, दोस्तों को जब-तब "श्राप" दे ही देते थे.
हम खुद को किसी ऋषि-मुनि से कम थोड़े ना समझते थे.
सबसे ज्यादा दिया जाने वाला श्राप था 'जा, तू इस साल फेल हो जाये'
या 'जा, आज तेरी पिटाई हो'
'जा, तुझे अगले पूरे महीने जेब-खर्च ना मिले'
और भी ना जाने कितने श्राप...
और ये श्राप बाकायदा ऋषियों वाली मुद्रा में हाथ उठा कर और एकदम धरती हिलने, आसमान गरजने वाली फीलिंग के साथ दिए जाते थे
सब कुछ ठीक ही चल रहा था जब तक कि माँ इस खेल में शामिल नहीं हुई...
माँ तो हर बात पर "श्राप" देती थी.
उनकी बात न सुनो तो...'देखना एक दिन तरसोगे माँ के लिए.'
खाना न खाओ तो...'देखना एक दिन कोई पूछेगा भी नहीं खाने के लिए.'
सुबह जल्दी न उठो तो...'देखना जब जिम्मेदारी आएगी सब नींद उड़ जाएगी.'
कोई काम न करो तो...'देखना एक दिन चक्करघिन्नी की तरह घूमेगी.'
उनसे कोई काम कह दो तो... ' माँ हमेशा साथ नहीं रहेगी...'
माँ के श्राप तो ऋषि-मुनियों से भी ज्यादा ख़तरनाक निकले। एक भी "श्राप" खाली नहीं गया... सारे फलीभूत हुए।
सच मैं तरस जाती हूँ माँ के प्यार के लिए, साल में एक बार ही तो मिल पाती हूँ आपसे.
सच में कोई नहीं पूछता खाने के लिए क्योंकि अब तो मैं ही हूँ सबको बना कर खिलाने वाली.
सच में नींद उड़ गई है दिन भर जिम्मेदारियां ही घूमती हैं दिल और दिमाग़ में.
सच में चकरघिन्नी बन गई है आपकी बेटी... घर, बाहर बच्चे सब कुछ संभालते हुए
सच में अब माँ हमेशा साथ नहीं है हमारे दुख में, तकलीफ़ में.
माँ... आप क्यूँ शामिल हुई हम बच्चों के खेल में...
उस वक़्त नहीं समझ आती थी माँ की अहमियत ।
वैसे भी माँ को हमेशा 'फ़ॉर ग्रांटेड' लेते हैं हम लोग। हमें लगता है हमारी माँ तो हमेशा ही रहेगी, वो कहाँ जाएगी ।
लेकिन मैंने कहीं पढ़ा था कि ' लड़कों के लिए तो बहन, बेटी भी माँ का रूप ले लेती हैं और एक वक्त पर पत्नी भी माँ की तरह ख़याल रखती है लेकिन लड़कियों की ज़िंदगी मे दुबारा माँ नहीं आती.'
ये कड़वा है - पर सच है।
मैं शर्ट खरीदने के लिये एक प्रतिष्ठित शो रूम के लिए गाड़ी से जा रहा था कि फोन की घण्टी बज उठी,
“सर, महावीर होटल से बोल रहे हैं, हमारे यहाँ गुजराती-फ़ूड-फेस्टिवल चल रहा है।
पिछली बार भी आप आये थे। आप विजिटर बुक में अच्छे कमेंट्स देकर गए थे, सर!”
“देखता हूँ”, कहकर मैंने फोन बंद कर दिया।
गाड़ी, थोड़ी आगे चली ही होगी कि फिर से एक कॉल आया, “सर, आपके जूते घिस गए होंगे। नए ले लीजिए।"
"कौन बोल रहे हो, भाई? आपको कैसे पता चला मेरे जूते घिस गए हैं?"
"सर, मैं सुंदर फुटवियर से बोल रहा हूँ। हमारी दुकान से आपने डेढ़ साल पहले जूते खरीदे थे। हमारा कंप्यूटर बता रहा है आपके जूते फट रहे होंगे या फटने ही वाले होंगे!”
"भैया, क्या ये जरुरी है कि मेरे पास एक जोड़ी जूते ही हों? वक़्त-बेवक्त इस तरह फोन करना कहाँ की सभ्यता है, मेरे भाई?", कह कर मैंने फिर फोन काट दिया।
मैंने फोन काटा ही था कि घण्टी वापस घनघना उठी, “सर, आपकी गाड़ी की सर्विसिंग ड्यू हो गई है, छह महीने हो गए हैं।”
"भाई, आपको क्यों परेशानी हो रही है? मेरी गाड़ी की मैं सर्विसिंग करवाऊँ या न करवाऊँ? मेरी मर्ज़ी।
कोई प्राइवेसी नाम की भी चीज़ होती है, दुनिया में?"
गुस्से में मैंने फोन काट तो दिया पर वो एक बार फिर बज उठा, “सर, कल पैडमैन की आइनॉक्स में मैटिनी शो की टिकट बुक कर दूँ।" इस बार एक लड़की थी।
"क्यूँ मैडम?”
"सर, हमारा सिस्टम बता रहा है कि आप अक्षय कुमार की हर मूवी देखते हैं, इसलिये!”
मैं मना करते-करते थक चुका था, सो पीछा छुड़ाते हुए बोला, “चलो, बुक कर दो।"
"ठीक है, सर! मैं मोबाइल नम्बर नाइन नाइन टू..... वाली मैडम को भी बता देती हूँ। हमारा सिस्टम बता रहा है वो हमेशा आपके साथ टिकट बुक कराती रही हैं।"
अब तो मैं घबरा गया,
“आप रहने दीजिए।” कहते हुये मैंने एक बार फिर फोन काट दिया।
शो रूम पहुँचकर मैंने एक शर्ट खरीदी। बिल काउंटर पर गया तो उसने पूछा, “सर, आपका मोबाइल नम्बर?”
"मैं नहीं दूँगा।"
"सर, मोबाइल नंबर देने से आपको २०% लॉयल्टी डिस्काउंट मिलेगा।"
"भाई, भले ही मेरे प्राण माँग लो, लेकिन मोबाइल नम्बर नहीं दूँगा।"
मैंने दृढ़ता से जवाब दिया।
"सर, इतनी नाराजगी क्यों?"
"इस मोबाइल के चक्कर में मेरी प्रायवेसी की ऐसी की तैसी हो गई है।
मेरा नम्बर, पता नहीं कितनों में बँट गया है?
कल को नाई कहेगा, “सर, आपके बाल बढ़ गए होंगे!”
मुझे तो डर है की 60 की उम्र आते आते अर्थी वाला भी ये न कह दे कि,
“समय और बच्चों का आजकल कोई भरोसा नहीं है
अंतिम यात्रा के लिए एक सुन्दर-सी अर्थी बुक करवा लीजिये"
कटु सत्य
🥰🥰🥰🥰🥰🥰
BOSS SHOCKED..PAPPU ROCKED.........
एक बार एक कम्पनी के बॉस ने पप्पू का इंटरव्यूह लिया
बॉस: चलो मुझे तुम्हारी अंग्रेजी चैक करने दो
चलो GOOD का विलोम शब्द बताओ?
PAPPU: Bad.
BOSS: Come
PAPPU: Go.
BOSS:Ugly?
PAPPU: Pichhlli.
BOSS: Pichli?
PAPPU: UGLY.
BOSS: Shut Up !
PAPPU: Keep talking.
BOSS: Ok, now stop all this
PAPPU: Ok, now carry on all This.
BOSS:Abey, chup ho ja..chup ho ja..chup ho jaa.
PAPPU: Abey bolta ja..bolta ja..bolta ja.
BOSS: Arey, yaar.
PAPPU: Arey dushman. BOSS: Get Out
PAPPU: Come In.
BOSS: Oh my God.
PAPPU: Oh, my devil.
BOSS: shhhhhhh..
PAPPU: Hurrrrrrrrrrrrrrr..
BOSS: mere bap chup hoja..
PAPPU: mere bete bolta reh..
BOSS: You are rejected
PAPPU: I am selected.
BOSS: प्रभु आपके चरण कहाँ है
PAPPU: वत्स कण कण मेँ मेरे चरण है....
BOSS: SHOCKED
PAPPU: ROCKED
अंजलि मामी ने बड़े ही रेस्पेक्ट से दादीमा को नमस्ते कहा इससे पहले दादीमा से जो भी मिलने आता था, वो दादीमा की ज़रूरत से ज़्यादा खुशामत करता था। मगर अंजलि मामी के बात करने के तरीके से ऐसा बिलकुल नहीं लग रहा था की वो दादी मा को इम्प्रेस करने की कोशिश कर रही हो।
दादी मा ने अंजलि मामी को स्माइल देते हुए बैठने का इशारा किया और पूछा, "बच्ची नहीं आयी तुम्हारे साथ?"
दादी मा का सवाल सुनते ही अंजलि मामी के चेहरे के एक्सप्रेशन बदल गए। अंजलि मामी के ठीक पीछे लीला का बेटा शिवरामन खड़ा था। जब नीचे कार से उतरने के बाद अंजलि मामी ने आर्यन को कार से बाहर निकलने को कहा था तब आर्यन ने अचानक ही अपना मुँह अपने दोनों घुटनों के बीच छुपा लिया।
रिया को इस तरह हस्ते और मुस्कुराते हुए देखकर दादी मा मन ही मन बहुत खुश होने लगी थी। दादीमा ने इतने दिनों में नोटिस किया था की हमेशा चुपचाप और गुमसुम रहने वाला आर्यन अब काफी ज़ायदा एक्सप्रेसिव हो गया था। दादी मा को आर्यन में ये बदलाव बहुत अच्छा लग रहा था। दादी मा ने रिया को पास बुलाकर अपने गले से लगा लिया और कहा, " हमारे आर्यन जितना प्यारा बच्चा इस दुनिया में कहीं नहीं है। जब मेहमान चले जायेंगे तब दादीमा तुम्हे एक गिफ्ट देंगी।"
गिफ्ट की बात सुनते ही अपने दोनों हाथ हवा में उछालते हुए कहा, "ईई। दादीमा यू आर द बेस्ट दादीमा इन the हॉल वर्ल्ड मगर रुको अगर आप मुझे गिफ्ट देने वाली है तो मुझे भी अपनी नयी दोस्त के लिए गिफ्ट."
ये कहते हुए नन्ही सी रिया मारवा हाउस में बने हुए दूसरे रूम में चली गयी। रिया के जाने के बाद दादी मा ने शिवराम की माँ और उनकी दूसरी केयर टेकर लीला से कहा, "आज कल आर्यन काफी बदल गया है।"
लीला ने कहा, "आपने बिलकुल सही कहा बड़ी दादी आर्यन अब खुल कर बातें करने लगे है पहले हम जब भी आर्यन को मिलते थे, वो ज़्यादा बात नहीं करते थे। आर्यन के एक्सप्रेशन देख कर ऐसा लगता था जैसे आर्यन बहुत ही अर्रोगंट है मगर अब आर्यन ख़ुशी ख़ुशी सबके साथ घुल मिल कर बात करता है, हमेशा ही खुश रहता है उसके चेहरे पर हमेशा ही मुस्कान रहती है अक्सर ऐसे ही बच्चों को लोग पसंद करते हैं।"
फिर कुछ सोचते हुए दादी मा ने लीला से कहा, "क्या तुम्हे लगता है की आर्यन और उस बच्चे के बीच दोस्ती हो पाएगी? क्या आर्यन को वो बच्ची पसंद आएगी? आर्यन पहले आसानी से बच्चों के साथ घुलता मिलता नहीं था किसी अनजान बच्चे के साथ दोस्ती करने के बारे में आर्यन कभी सोच भी नहीं सकता था। मैंने सोचा था की अगर आर्यन को वो बच्ची पसंद नहीं आती तो फिर आर्यन खुद अपने पापा रोहित को मना करेगा की वो उस औरत से शादी ना करे मगर आज का आर्यन का स्वभाव देख कर मुझे लगता है की कही वो बच्ची आर्यन के साथ घुल मिल गयी तो हमारी पूरी बाज़ी बिगड़ जायेगी।"ये कहते हुए बड़ी दादी के चेहरे की मुस्कान धीरे-धीरे गायब हो गयी और वो गहरी सोच में डूब गयी दादीमा अच्छी तरह जानती थी की एक बार रोहित ने कोई डिसीजन ले लिया तो अब वो कभी उसके पीछे नहीं हटेगा मगर आर्यन इकलौता रास्ता था जो रोहित को अपने लिए गए डिसिशन से पीछे हटने पर मजबूर कर सकता था।
लीला ने दबी हुई आवाज़ में दादीमा से कहा, "आप फ़िक्र मत कीजिये बड़ी दादी, बच्चे हैं किसी न किसी बात पर ज़रूर लड़ लेंगे और अगर बात उनसे नहीं बनती तो हम कोई ऐसी बात पैदा करेंगे जिससे बच्चो के बीच में लड़ाई हो जाए और किसी तरह आर्यन बाबा को वो बच्ची पसंद ना आये।"
लीला की इस बात पर दादीमा लीला को घूर घूर कर देखने लगी! फिर दरवाज़े की और देखकर एक लम्बी साँस छोड़ते हुए दादीमा ने कहा, "ठीक है, तो इसका बंदोबस्त तुम्हे ही करना होगा लीला, ये मेरे बेटे रोहित की ज़िन्दगी का सवाल है। मैं नही चाहती की रोहित किसी ऐसी लड़की को अपनी जीवन साथी बनाये जो पहले से किसी और मर्द के साथ सम्बन्ध बनाकर उसका एक बच्चा पैदा कर चुकी है। किसी भी तरह हमे ये रिश्ता रोकना होगा। चाहे कुछ भी हो जाए, हमारा खानदान की शानो शौकत को इस तरह मिट्टी में मिलते नहीं देख सकती मैं।"
ये कहते हुए अचानक ही दादीमा ने अपनी नज़रें झुका ली और धीमी आवाज़ में लीला से कहा, "लीला शायद एक बात तुम नहीं जानती ये मल्होत्रा खानदान की लड़कियों में पता नहीं क्या बात है अमीर घराने के मरीजों को रिझाना उन्हें पहले से आता है। सालो पहले रोहित के पापा को मल्होत्रा खानदान की सबसे बड़ी बहन स्वाति बहुत अच्छी लगती थी वो किसी भी तरह स्वाति से शादी करना चाहता था पहले स्वाति ने रोहित के पापा को अपने जाल में फसाया था और आज ये लड़की रोहित को अपने झूठे प्यार से जाल फ़साना चाहती थी।
रोहित के पापा पर कई दिनों तक स्वाति के प्यार का भूत चढ़ा रहा वो शादी करना चाहते थे तो सिर्फ और सिर्फ स्वाति से मगर स्वाति ने करण मलेरिया को अपना जीवन साथी बनाने का फैसला कर लिया था ये बात पता चलने के बाद रोहित के पापा और करण गुलेरिया के बीच में बहुत दुश्मनी हो गयी थी बड़ी मुश्किल से दादीमा ने रोहित की माँ के साथ रोहित के पापा की शादी तय की थी। मगर शादी तय हो जाने के बाद भी रोहित के पापा ने ये साफ़ साफ़ कह दिया था की चाहे कुछ भी हो जाए, वो स्वाति को अपने दिल से नहीं निकाल सकते! रोहित की माँ भले ही उनकी पत्नी बनकर रहे मगर वो उसे कभी प्यार नहीं दे सकते थे।"जब दादीमा ये सारी बाते सोच रही थी तभी इण्टरकॉम पर सिक्योरिटी गार्ड्स का फ़ोन आया- "मैडम, मल्होत्रा खानदान से जो गेस्ट्स आपको मिलने आने वाले थे, वो आ गए हैं।"
क्या आपको पता है?
कि किवाड़ की जो जोड़ी होती है,
उसका एक पल्ला पुरुष और,
दूसरा पल्ला स्त्री होती है।
ये घर की चौखट से जुड़े-जड़े रहते हैं।
हर आगत के स्वागत में खड़े रहते हैं।।
खुद को ये घर का सदस्य मानते हैं।
भीतर बाहर के हर रहस्य जानते हैं।।
एक रात उनके बीच था संवाद।
चोरों को लाख-लाख धन्यवाद।।
वर्ना घर के लोग हमारी,
एक भी चलने नहीं देते।
हम रात को आपस में मिल तो जाते हैं,
हमें ये मिलने भी नहीं देते।।
घर की चौखट से साथ हम जुड़े हैं,
अगर जुड़े जड़े नहीं होते।
तो किसी दिन तेज आंधी-तूफान आता,
तो तुम कहीं पड़ी होतीं,
हम कहीं और पड़े होते।।
चौखट से जो भी एकबार उखड़ा है।
वो वापस कभी भी नहीं जुड़ा है।।
इस घर में यह जो झरोखे,
और खिड़कियाँ हैं।
यह सब हमारे लड़के,
और लड़कियाँ हैं।।
तब ही तो,
इन्हें बिल्कुल खुला छोड़ देते हैं।
पूरे घर में जीवन रचा बसा रहे,
इसलिये ये आती जाती हवा को,
खेल ही खेल में,
घर की तरफ मोड़ देते हैं।।
हम घर की सच्चाई छिपाते हैं।
घर की शोभा को बढ़ाते हैं।।
रहे भले कुछ भी खास नहीं,
पर उससे ज्यादा बतलाते हैं।
इसीलिये घर में जब भी,
कोई शुभ काम होता है।
सब से पहले हमीं को,
रँगवाते पुतवाते हैं।।
पहले नहीं थी,
डोर बेल बजाने की प्रवृति।
हमने जीवित रखा था जीवन मूल्य,
संस्कार और अपनी संस्कृति।।
बड़े बाबू जी जब भी आते थे,
कुछ अलग सी साँकल बजाते थे।
आ गये हैं बाबूजी,
सब के सब घर के जान जाते थे ।।
बहुयें अपने हाथ का,
हर काम छोड़ देती थी।
उनके आने की आहट पा,
आदर में घूँघट ओढ़ लेती थी।।
अब तो कॉलोनी के किसी भी घर में,
किवाड़ रहे ही नहीं दो पल्ले के।
घर नहीं अब फ्लैट हैं,
गेट हैं इक पल्ले के।।
खुलते हैं सिर्फ एक झटके से।
पूरा घर दिखता बेखटके से।।
दो पल्ले के किवाड़ में,
एक पल्ले की आड़ में,
घर की बेटी या नव वधु,
किसी भी आगन्तुक को,
जो वो पूछता बता देती थीं।
अपना चेहरा व शरीर छिपा लेती थीं।।
अब तो धड़ल्ले से खुलता है,
एक पल्ले का किवाड़।
न कोई पर्दा न कोई आड़।।
गंदी नजर ,बुरी नीयत, बुरे संस्कार,
सब एक साथ भीतर आते हैं ।
फिर कभी बाहर नहीं जाते हैं।।
कितना बड़ा आ गया है बदलाव?
अच्छे भाव का अभाव।
स्पष्ट दिखता है कुप्रभाव।।
सब हुआ चुपचाप,
बिन किसी हल्ले गुल्ले के।
बदल किये किवाड़,
हर घर के मुहल्ले के।।
अब घरों में दो पल्ले के,
किवाड़ कोई नहीं लगवाता।
एक पल्ली ही अब,
हर घर की शोभा है बढ़ाता।।
अपनों में नहीं रहा वो अपनापन।
एकाकी सोच हर एक की है,
एकाकी मन है व स्वार्थी जन।।
अपने आप में हर कोई,
रहना चाहता है मस्त,
बिल्कुल ही इकलल्ला।
इसलिये ही हर घर के किवाड़ में,
दिखता है सिर्फ़ एक ही पल्ला!!
मौन रहकर मृत्यु का वरण कर लिया उन्होंने! वास्तव में क्या हुआ होगा, उनके जाने के बाद वो गुत्थी अनसुलझी ही रह गयी!*
Читать полностью…"बाहर चलकर देखते हैं, फिर आगे की सोचेंगे!"--मनोहर बाबू ने कहा।
राजनगर कोई बहुत बड़ा स्टेशन नहीं था! इक्का-दुक्का टेंपो जो इस आखिरी ट्रेन के इंतजार में खड़े रहते थे, संभवत: जाड़े की वजह से वो भी पहले ही जा चुके थे या फिर कोई सवारी हमसे पहले ही बुक कराकर ले गयी थी।
"अब! अब क्या करेंगे!"--मैंने कहा।
"पैदल चलने की हिम्मत है?"
"क्या बोल रहे ह़ै मनोहर बाबू! जाड़े की इस सर्द रात में पंद्रह किलोमीटर! मरना है क्या?"
"स्टेशन पर रहे, तब भी ठंड से बचना मुश्किल है!"
"फिर क्या करें?"
"मेरे ननिहाल चलोगे? मुश्किल से चार किलोमीटर है यहाँ से!"
और कोई चारा भी क्या था! पौने घंटे चलकर रात गुजारने का ठौर मिल जाय, इससे अच्छा क्या होगा!
थोड़ी ही देर बाद हमदोनों सुनसान सड़क पर चले जा रहे थे!
"सोचो, अगर मैं ना होता तो तुम अकेले क्या करते!"
"क्या पता, आपकी वजह से ही कलकत्ता मेल लेट हुई हो!"
होहोहोहोहो
पहली बार मनोहर बाबू खुलकर हँसे!
तकरीबन आधे घंटे तेज तेज चले हम! शार्टकट के लिए मेनरोड तो कब का छोड़ चुके थे! सामने दूर एक छोटी सी बस्ती दिखायी दे रही थी, जहाँ इक्का-दुक्का रोशनियां टिमटिमा रही थीं!
"वो रहा मेरा ननिहाल! बस थोड़ी देर और। बस जरा ये नाला पार कर लें!"--मनोहर बाबू अचानक ठिठके।
"क्या हुआ?"
"कुछ नहीं, तुम जरा थोड़ी देर ठहरोगे?"
"क्या बात है?"
"बस, जरा दीर्घशंका महसूस हो रही है!"
"ठीक है, मैं तब तक पुलिया पर बैठ जाता हूँ!"--कहकर मैं नाले पर बनी छोटी सी पुलिया पर बैठ गया। मनोहर बाबू नीचे खाई में उतर गये।
सर्द हवायें सांय सांय करके चल रही थीं। दूर दूर तक गंगा के कछार तक फैले हुए खेत सुनसान पड़े हुए थे। तभी नीचे पानी में हलचल हुई!
मैंने समझा मनोहर बाबू हैं!
मैं आगे बढ़ा! सामने एक आकृति सर पर फसलों का गट्ठर उठाये चली जा रही थी! उसके ठीक पीछे एक नारी आकृति भुनभुनाती हुई चल रही थी!
"मनोहर बाबू!"--मैंने जोर से आवाज लगायी!
पुरुष आकृति रुक गयी! उसने पीछे चली आ रही नारी आकृति को डपटना शुरु किया!
थोड़ी दूर पर खड़ा मैं जब तक कुछ समझ पाता, नारी आकृति मेरी तरफ बढ़ने लगी!
"कौन है?"--मैंने धीमे स्वर में पूछा।
"ये सवाल तो मुझे पूछना चाहिए था! तू बता, तू कौन है!"
मैं क्या जवाब देता!
नारी आकृति पल-प्रतिपल मेरे नजदीक आती जा रही थी!
और बस कुछेक ही क्षण बाद!
स्याह कपड़ों में लिपटी बड़ा सा जूड़ा बाँधे वो मेरे सामने खड़ी थी!
अचानक नीचे खाई की तरफ कईलोगों का कोलाहल गूँजा! ऐसा लगा, जैसे नाले के मुहाने से कईलोग गुजर रहे हों!
"अरे ऊपर आ जाओ रे सब! ये यही है!"--नारी आकृति ने जोरों से घरघराते स्वर में हांक लगायी!
मेरे रोयें खड़े हो गये! सुनसान रात में ऐसी जगह पर यूँ एकाएक इतने लोगों की आमद भयाक्रांत कर देने वाली थी!
"भागो!"--अचानक जाने कहाँ से मनोहर बाबू प्रकट हुए और मेरा हाथ पकड़कर बस्ती की ओर दौड़ने का इशारा किया।
मैंने आव देखा ना ताव, बस भाग चला उनके साथ!
थोड़ी ही देर बाद हम बस्ती में खड़े एक मकान के दरवाजे की सांकल खटखटा रहे थे!
थोड़ी देर बाद दरवाजा खुला!
सामने एक वृद्ध खड़े थे! हमें देखकर चौंके--"अरे! तुम!"
मनोहर बाबू ने आगे बढ़कर उनके चरण छुए--"प्रणाम मामाजी!"
वृद्ध की आँखों से आँसू छलक पड़े--"अरे, आओ रे सब! देखो, मनोहर आया है!"
पल भर में ही सारा घर इकट्ठा हो गया!
सबकी नजरों के केंद्र में मनोहर बाबू ही थे!
"क्यों रे मनोहर! अपने मामा को भी भूल गया! उस मामा को, जो तुझे बचपन में दिन भर अपने कंधे पर लादे घूमते फिरते थे!"
"मैं किसी को नहीं भूला हूँ मामा! नाना-नानी के बाद आपलोग ही तो हो!"
"भाग झूठे! इतना ही अपना समझता तो हमसे भी अपने दिल की बात ना बताता!"
मनोहर बाबू ने नजरें झुका लीं!
"जा, अंदर तेरी भाभी बुला रही है! खाना खा ले!"
हमदोनों अंदर पहुँचे! रसोई में एक अधेड़ औरत आटा गूंथ रही थी।
"आओ बबुआ! सबको खिलाने के बाद भी तुम्हारे भाग्य से सब्जी बची हुई है। मैं रोटी सेंक देती हूँ!"
मनोहर बाबू ने कहा कुछ नहीं, बस चुपचाप उन्हें घूरे जा रहे थे, मानो कुछ सोच रहे हों!
"भाभी, तुम तो....!"
"हाँ हाँ बोलो!"
"तुम तो....!"
"बोलो ना! अटक क्यों रहे हो!"
"क्या कहूँ, कुछ समझ में नहीं आ रहा...!"
"तुमने कभी कुछ कहा है, जो आज कहोगे! भाभी तो बस मुँह से कहते हो!"
"ऐसी बात नहीं है भाभी, आपको कभी खुद से अलग नहीं माना!"
"और कितना झूठ बोलोगे बबुआ! अगर दिल से मानते होते तो दिल की बातें नहीं कहते!"
मनोहर बाबू चुप लगा गये!
और तब, जब हम खाना खाकर सोने के लिए दुआर पर जा रहे थे, मनोहर बाबू एकाएक बेचैन नजर आने लगे!
"क्या हुआ?"
"पता नहीं! सोच रहा हूँ, तुमसे कहूँ कि ना कहूँ....!"
जाने क्यूँ मेरा मन सिहरकर रह गया!
"अब बोलिये भी!"
"मेरा विश्वास करोगे?"
"क्यों नहीं!"
"मेरी भाभी को देखे?"
"हाँ हाँ, अभी तो खाना खिलायीं वे!"
"वो मेरी भाभी नहीं हो सकती!"
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एक बार मेरे शहर में एक प्रसिद्ध बनारसी विद्वान्
ज्योतिषी का आगमन हुआ...!!
माना जाता है कि उनकी वाणी में सरस्वती
विराजमान है। वे जो भी बताते है वह 100% सच
होता है।
501/- रुपये देते हुए एक मान्यवर ने अपना दाहिना
हाथ आगे बढ़ाते हुए ज्योतिषी को कहा
महाराज..
मेरी
मृत्यु कब कहां और किन परिस्थितियों में होगी?
ज्योतिषी ने उस मान्यवर की हस्त रेखाएं देखीं, चेहरे
और माथे को अपलक निहारते रहे।
स्लेट पर कुछ अंक लिख कर जोड़ते-घटाते रहे।
बहुत देर बाद वे गंभीर स्वर में बोले
मान्यवर, आपकी भाग्य रेखाएँ कहती है कि जितनी
आयु आपके पिता को प्राप्त होगी, उतनी ही आयु
आप भी पाएँगे।
जिन परिस्थितियों में और जहाँ आपके पिता की
मृत्यु होगी, उसी स्थान पर और उसी तरह, आपकी
भी मृत्यु होगी।
यह सुन कर वह मान्यवर भयभीत हो उठे और चल
पड़े......
एक घण्टे बाद...
वही मान्यवर वृद्धाश्रम से अपने वृद्ध पिता को साथ
लेकर घर लौट रहे थे.. !
*राजू के पास रात को सांताक्लॉज आया और बोला कि कोई Wish मांगो*
*राजू बोला की मेरी बीवी झगड़ा बहुत करती है कोई दूसरी बीवी दिलवा दो...,*
*सांताक्लॉज़ ने राजू को इतना मारा की अस्पताल जाना पड़ा...!!*
*फिर पता चला राजू की बीवी ही सांताक्लॉज़ बन कर आयी थी.🤣*
*सावधान रहें, सतर्क रहें।*
😂 😂 😂
Happy crismas day
*🌷"मेरा दरवाज़ा खटखटाने का शुल्क"🌷*
जिन घरों में मैं अखबार डालता हूं उनमें से एक का मेलबॉक्स उस दिन पूरी तरह से भरा हुआ था, इसलिए मैंने उस घर का दरवाजा खटखटाया।
उस घर के मालिक, बुजुर्ग व्यक्ति श्री बनर्जी ने धीरे से दरवाजा खोला।
मैंने पूछा, "सर, आपका मेलबॉक्स इस तरह से भरा हुआ क्यों है?"
उन्होंने जवाब दिया, "ऐसा मैंने जानबूझकर किया है।" फिर वे मुस्कुराए और अपनी बात जारी रखते हुए मुझसे कहा "मैं चाहता हूं कि आप हर दिन मुझे अखबार दें... कृपया दरवाजा खटखटाएं या घंटी बजाएं और अखबार मुझे व्यक्तिगत रूप से सौंपें।"
मैंने हैरानी से प्रश्न किया, " आप कहते हैं तो मैं आपका दरवाजा ज़रूर खटखटाऊंगा, लेकिन यह हम दोनों के लिए असुविधा और समय की बर्बादी नहीं होगी ?"
उन्होंने कहा, "आपकी बात सही है... फिर भी मैं चाहता हूं कि आप ऐसा करें ...... *मैं आपको दरवाजा खटखटाने के शुल्क के रूप में हर महीने 500/- रुपये अतिरिक्त दूंगा।"*
विनती भरी अभिव्यक्ति के साथ, उन्होंने कहा, *"अगर कभी ऐसा दिन आए जब आप दरवाजा खटखटाएं और मेरी तरफ से कोई प्रतिक्रिया न मिले, तो कृपया पुलिस को फोन करें!"*
उनकी बात सुनकर मैं चौंक-सा गया और पूछा, "क्यों सर?"
उन्होंने उत्तर दिया, "मेरी पत्नी का निधन हो गया है, मेरा बेटा विदेश में रहता है, और मैं यहाँ अकेला रहता हूँ । कौन जाने, मेरा समय कब आएगा?"
उस पल, मैंने उस बुज़ुर्ग आदमी की आंखों में छलक आए आंसुओं को देख कर अपने भीतर एक हलचल महसूस कीं ।
उन्होंने आगे कहा, *"मैं अखबार नहीं पढ़ता... मैं दरवाजा खटखटाने या दरवाजे की घंटी बजने की आवाज सुनने के लिए अखबार लेता हूं। किसी परिचित चेहरे को देखने और कुछ परस्पर आदान-प्रदान करने के इरादे से....!"*
उन्होंने हाथ जोड़कर कहा, "नौजवान, कृपया मुझ पर एक एहसान करो! यह मेरे बेटे का विदेशी फोन नंबर है। अगर किसी दिन तुम दरवाजा खटखटाओ और मैं जवाब न दूं, तो कृपया मेरे बेटे को फोन करके इस बारे में सूचित कर देना ..."
इसे पढ़ने के बाद, मुझे एहसास हुआ कि हमारे दोस्तों के समूह में बहुत सारे अकेले रहने वाले बुजुर्ग लोग हैं।
कभी-कभी, आपको आश्चर्य हो सकता है कि वे अपने बुढ़ापे में भी व्हाट्सएप पर संदेश क्यों भेजते रहते हैं, जैसे वे अभी भी बहुत सक्रिय हों।
*दरअसल, सुबह-शाम के इन अभिवादनों का महत्व दरवाजे पर दस्तक देने या घंटी बजाने के अर्थ के समान ही है; यह एक-दूसरे की सुरक्षा की कामना करने और देखभाल व्यक्त करने का एक तरीका है।*
*आजकल, व्हाट्सएप टेलीग्राम बहुत सुविधाजनक है । अगर आपके पास समय है तो अपने परिवार के बुजुर्ग सदस्यों को व्हाट्सएप चलाना सिखाएं!*
*किसी दिन, यदि आपको उनकी सुबह की शुभकामनाएँ या संदेश नहीं मिलता है, तो हो सकता है कि वे अस्वस्थ हों और उन्हें आप जैसे किसी साथी की आवश्यकता हो
🙏🙏🙏🙏
परीक्षा में गब्बरसिंह का चरित्र चित्रण करने के लिए कहा गया-😀😁
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दसवीं के एक छात्र ने लिखा-😉
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1. सादगी भरा जीवन-
:- शहर की भीड़ से दूर जंगल में रहते थे,
एक ही कपड़े में कई दिन गुजारा करते थे,
खैनी के बड़े शौकीन थे.😂
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2. अनुशासनप्रिय-
:- कालिया और उसके साथी को प्रोजेक्ट ठीक से न करने पर सीधा गोली मार दिये थे.😂
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3. दयालु प्रकृति-
:- ठाकुर को कब्जे में लेने के बाद ठाकुर के सिर्फ हाथ काटकर छोड़ दिया था, चाहते तो गला भी काट सकते थे😂
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4. नृत्य संगीत प्रेमी-
;- उनके मुख्यालय में नृत्य संगीत के कार्यक्रम चलते रहते थे..
'महबूबा महबूबा',😂
'जब तक है जां जाने जहां'.
बसंती को देखते ही परख गये थे कि कुशल नृत्यांगना है.😂😂
.
5. हास्य रस के प्रेमी-
:- कालिया और उसके साथियों को हंसा हंसा कर ही मारे थे. खुद भी ठहाका मारकर हंसते थे, वो इस युग के 'लाफिंग पर्सन' थे.😂
.
6. नारी सम्मान-
:- बंसती के अपहरण के बाद सिर्फ उसका नृत्य देखने का अनुरोध किया था,😀😂
.
7. भिक्षुक जीवन-
:- उनके आदमी गुजारे के लिए बस अनाज मांगते थे,
कभी बिरयानी या चिकन टिक्का की मांग नहीं की.. .😂
.
8. समाज सेवक-
:- रात को बच्चों को सुलाने का काम भी करते थे ..
सो जा नही तो गब्बर सिंह आ जायेगा
टीचर ने पढा तो आँख भर आई और बोली सारी गलती जय और वीरू की है!!
😁😂😂😂😂
न जाने कौन-सी उपलब्धि की चाह तुम्हें घर के बाहर रहने के लिए उकसाती है. और फिर मैं कौन-सा तुम्हें घर में ़कैद होने के लिए कह रहा हूं. तुम्हें घूमने-फिरने की मनाही तो नहीं है. नीरव जिस दौर से गुज़र रहा है, ऐसे में बिगड़ने की संभावना ज़्यादा रहती है. तुम घर पर रहोगी तो कम से कम यह तो देख सकोगी कि वह टीवी पर क्या देख रहा है, नेट स़िर्फंग के कितने भयानक परिणाम देख-सुन चुके हैं हम.” “पर तुम तो घर पर काफ़ी व़क़्त बिताते हो. तुम उस पर नज़र रख सकते हो. नीरव हम दोनों की ही ज़िम्मेदारी है.
जैसी जिसकी सुविधा हो क्या, मैनेज नहीं करना चाहिए? ” इस बार उसकी आवाज़ में न तो तल्खी थी, न ही रोष. क्षितिज की ओर से कोई जवाब न पाकर मैंने फिर कहा, “क्या कोई और रास्ता नहीं निकल सकता?” मैं अपनी तरफ़ से किसी भी तरह की कोशिश करने में कोताही नहीं करना चाहती थी. “जब रास्ता साफ़ दिख रहा है तो बेवजह दिमाग़ ख़राब करने से क्या फ़ायदा?” क्षितिज ने चिढ़कर कहा. “यानी हर स्तर पर समझौता मुझे ही करना होगा?” “तुम औरत हो और एक औरत को ही समझौता करना होता है. वैसे भी एक मां होने का दायित्व तो तुम्हें ही निभाना होगा. अपनी हद में रहना सीखो.” क्षितिज की बात सुन मेरा मन जल उठा. मैं घायल शेरनी की तरह वार करने को तैयार हो गई, “अच्छा आज यह भी बता दो कि मेरी हद क्या है?” “हद से मेरा मतलब है कि घर संभालो, नीरव को संभालो. खाओ-पीओ, मौज करो.” क्षितिज के स्वर में बेशक पहले जैसी कठोरता नहीं थी.
आवाज़ में कंपन था, लेकिन उसकी सामंतवादी मानसिकता के बीज प्रस्फुटित होते अवश्य महसूस हुए. एक सभ्य समाज का प्रतिनिधित्व करनेवाला पुरुष लाख शिक्षित हो, पर बचपन में उसके अंदर औरत को दबाकर रखने के रोपे गए बीजों को झाड़-झंखाड़ बनने से कोई नहीं रोक सकता. क्षितिज की बात सुन मैं हैरान रह गई. क्षितिज जैसे पढ़े-लिखे इंसान की मानसिकता ऐसी हो सकती है? क्या पत्नी से उसकी अपेक्षाएं बस इतनी ही हैं? मेरी इच्छाओं का मान रखना, मेरे व्यक्तित्व को तराशने तक का ख़याल नहीं आता उसे? मैं कब अपने मां होने की ज़िम्मेदारियों से पीछे हटना चाहती हूं, पर क्षितिज का साथ भी तो नीरव को सही सोच देने के लिए ज़रूरी है. अपने आंसुओं को पीते हुए इस बार बिना कोई जवाब दिए मैं अंदर कमरे में चली गई. समझाया तो उसे जाता है, जो समझने को तैयार हो, जिसके मन की खिड़कियां खुली हों. क्या नीरव की चिंता उसे नहीं है? वह तो बस उससे थोड़ा-सा सहयोग चाहती है. नीरव उन दोनों को लड़ते देख अपने कमरे में चला गया था.
उसे अपने ख़ुद पर भी ग्लानि हो रही थी. वह इतना छोटा तो नहीं कि ख़ुद मार्केट न जा सके. अब वह नौवीं में है और हर काम ख़ुद कर सकता है... वैसे भी पढ़ने और ट्यूशन में काफ़ी समय निकल जाता है. फिर क्यों वह हर समय... पर पल भर के लिए मन में आए ये विचार उसके अंदर जड़ जमाई सोच के आगे पानी के बुलबुले की मानिंद ही साबित हुए. ‘नो, मम्मी इज़ रॉन्ग’, वह बुदबुदाया. इधर क्षितिज को समझ नहीं आ रहा था कि वह किस तरह से इस ‘हद’ को परिभाषित करे. उसने तो वही कहा था, जो आज तक वह देखता आया था. उसकी दादी, मां, बुआ, चाची, यहां तक कि बहनें और भाभी भी इसी परंपरा का निर्वाह कर संतुष्ट जीवन जी रही थीं. ‘क्या वाकई में वे संतुष्ट हैं?’ उसकी अंतरात्मा ने उसे झकझोरा. अपनी मां को पिता की तानाशाही के आगे कितनी ही बार उसने बिखरते देखा था. पिताजी के लिए तो मां की राय का न कोई महत्व था, न ही उनका वजूद था.
मां जब भी कुछ कहतीं, पिताजी चिल्लाकर उन्हें चुप करा देते थे. सारी ज़िंदगी मां चूल्हे-चौके में खपती रहीं. केवल जीना है, इसीलिए जीती रहीं. अंत तक उनके चेहरे पर सुकून और संतुष्टि का कोई भाव नहीं था. मां का दुख हमेशा ही उसे दर्द देता था, फिर आज क्यों वह... उसकी बहनों को भी पिताजी ने कभी सिर उठाकर जीने का मौक़ा नहीं दिया. न मन का पहना, न खुलकर वे हंसीं. जहां क्षितिज की हर इच्छा को वह सिर माथे लेते थे, वहीं उसकी बहनों की हर छोटी से छोटी बात में कांट-छांट कर देते थे.
वे हमेशा ही डर-डर कर जीं और आज ब्याह के बाद भी उनकी दुनिया घर की देहरी के अंदर तक ही सिमट कर रह गई है. उससे छोटी हैं, पर समय से पहले ही कुम्हला गई हैं. एक वीरानी-सी छाई रहती है उनके चेहरे पर. ख़ुशी की कोई किरण तक उन तक पहुंचती होगी, ऐसा लगता नहीं. “पापा, बुक लेने चलेंगे? इस पास वाली मार्केट में नहीं, आगे वाली में मिलेगी, वरना मैं ख़ुद ले आता.” नीरव ने उसकी तंद्रा भंग की तो वह सोच के ताने-बाने से बाहर आया. “हां, क्यों नहीं.” क्षितिज ने उसका कंधा थपथपाया. “यू आर ग्रेट पापा, लेकिन मम्मी तो बस...